मां कात्यायनी की कृपा मात्र से रोग, शोक व कष्ट दूर हो जाते हैं

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मां कात्यायनी

मां दुर्गा की नव शक्तियों के छठे स्वरूप मां के चरणों में कोटिश: प्रणाम। मां कात्यायनी की कृपा मात्र से अनुरागियों के रोग, शोक व कष्ट दूर हो जाते हैं तथा जीवन में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बहुत बढ़ गया, तब भगवान् ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिये एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम माँ कात्यायनी की पूजा की। इसी कारण से यह ‘कात्यायनी’ कहलायीं।

माँ कात्यायनी अपने भक्त को निश्चित फल प्रदान करती हैं। भगवान् कृष्ण को पति रूपमें पाने के लिये व्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये व्रज मण्डलकी अधिष्ठात्री देवी के रूपमें प्रतिष्ठित हैं। भगवान श्री कृष्ण ने भी माता कात्यायनी की पूजा की थी।

माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है।

माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।

माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए। मां का आशीर्वाद और कृपा दृष्टि हम सभी पर सदैव बना रहे, यही मेरी कामना है।


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