ऊंचे विंध्य पर्वत पर घने जंगल के बीच वैष्णव रूप में विराजमान हैं मदारन माता

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madaran mata

महोबा : वीर भूमि बुंदेलखंड की धरा एक से बढ़कर एक पावन तीर्थ हैं। उन्हीं में से एक मदारन देवी जनपद मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर घने जंगल में ऊंचे विंध्य पर्वत पर विराजमान हैं। यह स्थान समूचे बुंदेलखंड के सबसे प्राचीन एवं प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। मां अपने सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

उत्तर प्रदेश के महोबा जनपद में मां मदरण देवी वैष्णव रूप में ऊंचे विंध्य पर्वतों पर घने जंगल के मध्य खुले आसमान के नीचे विराजमान हैं। जहां सैकड़ों श्रद्धालु अपनी मनोकामना के साथ मां के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मां के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जातीं हैं।

मंदिर के पुजारी माता प्रसाद तिवारी के अनुसार सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां घनघोर जंगल हुआ करता था। जहां पर मंदारन नामक आदिवासी निवास करते थे। जिनकी माता पर अटूट श्रद्धा थी और वह भक्ति भाव से मां की आराधना करते थे।इसी आदिवासी जनजाति के नाम पर मंदिर का नाम मदारान देवी मंदिर पड़ा है। सिद्धपीठ मां मदारन माता के दर्शन मात्र से भक्तों का कल्याण हो जाता है।

ऐसी मान्यता है कि मां मदारन देवी अपने सिंहासन के ऊपर छत को वर्जित मानती हैं। जिस वजह से सदियां बीत जाने के बाद भी आज तक मंदिर में छत नहीं डल सकी है। सैकड़ों वर्षों से खुले आसमान के नीचे विराजमान होने के बाद भी माता के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।घने जंगल में वैष्णव रूप में विराजमान मां मदारन देवी को चंदेलों की आराध्य देवी माना जाता है।

कई बार हुआ छत डालने का प्रयास

मां मदारन देवी मंदिर के पुजारी माता प्रसाद तिवारी ने जानकारी देते हुए बताया कि तीन बार मंदिर में छत डालने का प्रयास किया गया। दिन भर काम करने के बाद बनाई गई दीवार अगले दिन सुबह पहुंचने पर गिरी मिलती थी। ऐसा एक दो बार नहीं बल्कि पूरा तीन बार हुआ है। जिसके बाद मां ने उनके पूर्वज पुजारी जी को स्वप्न में खुले आसमान के नीचे ही विराजमान रहने की बात कही।


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