भारतीय हॉकी महिला टीम को ‘टोक्यो ओलंपिक’ ने बहुत कुछ सिखाया: रानी रामपाल

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भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल का हरियाणा के कुरुक्षेत्र से शुरू हुआ हॉकी का सफर टोक्यो ओलंपिक तक बहुत अधिक गरीबी और संघर्ष के रास्ते से होकर गुजरा है। रानी के पिता चांगा (घोड़ा गाड़ी) चलाकर और मां दूसरे घरों में काम करके घर का खर्च चलाती थी। घोर गरीबी के बीच हॉकी खेलते हुए भारतीय महिला हॉकी टीम का न केवल प्रतिनिधित्व करना बल्कि टीम में कप्तान के रूप में अपनी जगह बना लेना वास्तव में किसी असंभव सपने को पूरा करने से कम नहीं कहा जा सकता है, लेकिन रानी रामपाल ने अपने अथक परिश्रम से इसे संभव कर दिखाया।

टोक्यो ओलंपिक में भारत की महिला हॉकी टीम ने इतिहास रचते हुए क्वॉर्टर फाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया को हरा कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था, देश की बेटियों की इस कामयाबी पर हर कोई उन्हें बधाई देता हुआ दिखा। भारत की ओर से गुरजीत कौर ने 22वें मिनट में गोल किया था। वहीं जीत की हीरो सविता पूनिया भी थीं, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया की टीम के सामने दीवार बनकर प्रदर्शन किया और सात पेनॉल्टी कॉर्नर के बावजूद कोई भी गोल नहीं होने दिया था, जब कप्तान रानी से ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए इस मुकाबले के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ओलंपिक में ऑस्ट्रेलिया से जब मैच होना था तब बहुत सारे विचार हमारी टीम के सदस्यों के मन में उमड़ रहे थे।

उन्होंने कहा कि हार मानना बहुत सरल है, साथ ही यह कहना कि हम नहीं कर पा रहे, दूसरी टीम हमसे मजबूत है, लेकिन इस डर से मुक्त होकर इस सोच के साथ खेलना कि हम सब कुछ कर सकते हैं तो सफल भी होंगे। खेल के मानसिक दबाव के बीच सकारात्मक और उत्साहित मानसिकता से प्रेरित होकर खेलना निश्चित तौर पर चुनौती पूर्ण रहता है। हमने तय किया था कि अंत तक हार नहीं मानना है, इसलिए ऑस्ट्रेलिया से संघर्ष करते वक्त भी हमारे जेहन में यही था कि अंत तक यानी अंतिम सेकंड तक हमें संघर्ष करते रहना है। यही कारण है कि सभी के उत्साह और प्रयास के बूते हम ऑस्ट्रेलिया टीम को हरा पाए।

रानी कहती हैं कि पहले हमें अन्य देशों की टीमों को देखकर लगता था कि हम इन से जीत पाएंगे कि नहीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हमको हार नहीं माननी है और आखरी समय तक फाइट करनी है, खेलते वक्त पूरी टीम का यही भाव रहता है। मुझे अपनी पूरी टीम पर गर्व है, हमने एक-दूसरे से कहा था कि हम जान लगा देंगे और हमने किया भी वही। जिसके कारण हमें जीत हासिल हुई।

उन्होंने कहा कि जब हम जीते तो हमें विश्वास ही नहीं हुआ, आज हर कोई हमारे लिए ताली बजा रहा है। साथ ही वे यह भी जोड़ती गईं कि हम मेडल नहीं ला सके लेकिन हमारे प्रदर्शन के बाद महिला हॉकी को जो प्यार और इज्जत मिल रही है वो पहले कभी मेडल लाने पर भी नहीं मिली थी। यकीन मानिए, देश में हॉकी को लेकर काफी बदलाव आया है। लोग अब महिला टीम के मैचों को भी देखने में रुचि ले रहे हैं। भारतीय हॉकी महिला टीम को लेकर लोगों का नजरिया बहुत बदला हुआ दिखाई दे रहा है।

जब पूछा गया कि टोक्यो ओलंपिक की आपकी नजर में सबसे बड़ी उपलब्धि क्या रही है? तो उनका कहना था कि टोक्यो ओलंपिक का यदि सबसे बड़ा अचीवमेंट माना जाए तब यह कहना होगा कि यहां हमने बहुत कुछ सीखा है। अब हम किसी भी टीम के साथ फियरलेस (डर के बिना) या निडरता से खेल सकते हैं। अभी पूरी टीम का ध्यान आनेवाले बड़े टूर्नामेंट पर है, जिसके लिए हमारी तैयारियां जोरों के साथ जारी हैं। हमें विश्वास है कि वर्ल्ड कप और कॉमनवेल्थ गेम में हमारा प्रदर्शन बेहतर रहेगा। फिटनेस और ऊर्जा के स्तर पर भी हमारी टीम बहुत मजबूत हुई है। हालांकि रानी रामपाल ने यह भी कहा कि इस बात का दर्द हमारे अंदर हमेशा रहेगा कि पदक के इतने करीब होने के बावजूद क्यों चूके। रानी ने उम्मीद जताई कि टोक्यो ओलिंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रदर्शन आने वाली पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा। यह एक बहुत कठिन हार थी, लेकिन हमने बहुत प्रयास किया। हर एक खिलाड़ी ने अपना शत प्रतिशत दिया है।

यहां उल्लेखनीय है कि ओलंपिक में पहली बार सेमीफाइनल खेलने वाली भारतीय टीम ब्रॉन्ज के लिए कड़े मुकाबले में ब्रिटेन के हाथों 4-3 से हार गई थी। कहना होगा कि भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही टोक्यो ओलंपिक में पदक न जीत पाई हो पर उन्होंने जो शानदार प्रदर्शन किया उसपर पूरे देश को गर्व है। भारत की इन बेटियों के शानदार खेल को देखते हुए पूरे देश को यह विश्वास है कि भारतीय महिला हॉकी टीम पेरिस ओलंपिक में देश के लिए पदक जरूर जीतने में सफल होगी।

मध्य प्रदेश के उनके अनुभव को लेकर जब उनसे पूछा गया तो रानी बोलीं कि हमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यहां बुलाया और जो मान-सम्मान दिया है, वह हम सभी को काफी अच्छा लगा है। मध्य प्रदेश में जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम की घोषणा की गई है, वह बहुत अच्छा है। आज और आने वाले समय में खिलाडि़यों को जितनी अधिक सुविधाएं मिलेंगी वह उतना ही अच्छा प्रदर्शन करने में सफल होंगे। खेल के अच्छे संसाधन होंगे तो हमारे प्लेयर्स को बहुत लाभ होगा।

वे कहती हैं कि लड़कियों का सम्मान कैसे किया जाए, यह मध्यप्रदेश से अन्य राज्यों को सीखना चाहिए। मध्यप्रदेश में सरकार लड़कियों को बढ़ावा दे रही है। मध्य प्रदेश में हॉकी के लिए वर्ल्ड क्लास फैसिलिटी है । मध्य प्रदेश सरकार ने जिस तरह से स्पोर्ट्स में महिलाओं के प्रति खेलों में रुचि बढ़ाने के लिए कार्य किया है, वह बहुत अच्छा है । मुख्यमंत्री शिवराजजी ने मध्यप्रदेश को खेलों का हब बना दिया है।

जब उनसे उनके बारे में जानना चाहा, तो वे कुछ संकुचित दिखी, फिर उन्होंने बताया कि सात साल की उम्र में हॉकी पकड़ी थी। अब यकीन ही नहीं होता कि इतने वर्ष हॉकी खेलते हुए हो गए। हमारी शाहबाद मारकंडा सिटी जहां से मेरी हॉकी की शुरुआत हुई, यह हॉकी की नर्सरी है, वहां से अब तक 50 से 60 लड़किया भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। जब हॉकी खेलना मैंने शुरू किया था उस समय नौ खिलाड़ी इण्डिया को रिप्रजेन्ट करते थे। पांचवीं कक्षा में हॉकी कोच बलदेव सिंह के पास प्रशिक्षण लेना शुरू किया। 16 वर्ष की आयु में भारतीय टीम से खेलना शुरू किया।

उन्होंने कहा कि शाहबाद का फायदा यह है कि यहां किसी भी पृष्ठभूमि का कोई भी खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बन सकता है। अकादमी में हर कोई एक दूसरे का समर्थन करता है और एक दूसरे से सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहता है। मेरे सीनियर्स ने मुझे ट्रेनिंग के लिए अपनी पुरानी हॉकी किट दीं। ये उनका दूसरा ओलिंपिक है । इससे पहले ओलिंपिक से लौटने के बाद वे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित की गई थीं । इसके अलावा भारत सरकार की ओर से रानी रामपाल को खेल रत्न अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है।

बतादें कि भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल ने खुद सोशल मीडिया instagram पर एक पोस्ट की है और उसमें उन्होंने बताया है कि कैसे उनके संघर्ष के दिन रहे हैं। ये पोस्ट विस्तार से लिखी गई है। 27 जुलाई को लिखी गई उनकी इस पोस्ट को अब तक 67 हजार 435 लोग लाइक कर चुके हैं और अपने विचार भी यहां हजारों लोगों द्वारा व्यक्त किए गये हैं।


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