प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जीवन के कुछ अनछुए पहलू

0

बात पुरानी है, पर आज भी प्रासंगिक है। यह अनौपचारिक बातचीत नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व की बनावट के कुछ अनकहे पहलुओं पर रोशनी डालती है। तब मोदी दूसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री थे और विधानसभा चुनाव करीब थे। उनके अनायास बुलावे पर उनके घर पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले हमारे हालचाल पूछे। हमने भी हालचाल पूछते हुये कहा- आप इतने बडे़ सरकारी घर में अकेले रहते हैं। आप पर काम का काफी दबाव रहता है। आपने अभीतक एक दिन की छुट्टी नहीं ली है। आप लगातार ऑनलाइन और ऑफलाइन घंटों काम करते हैं। ऐसे में आप परिवार के किसी सदस्य को अपने साथ क्यों नहीं रख लेते, ताकि वह आपके खानपान, विश्राम आदि का ध्यान रख सके।

मोदी का जवाब समझने लायक था। यह जवाब बताता है कि वे अपनी छवि के प्रति कितने सतर्क रहते हैं। उन्होंने जवाब दिया- मोरारजी देसाई कितने कट्टर नैतिकतावादी थे। उन्होंने प्रधानमंत्री निवास में बेटे कांति देसाई को साथ रखा। इसके कारण मोरारजी की छवि पर कैसे आंच आई। इसलिये मैं किसी को साथ नहीं रखता। मैंने अपने परिवार वालों को साफ कह रखा है कि वे कभी भी मेरे मुख्यमंत्री निवास में पांव न रखें। उन्हें जब भी मेरी जरूरत हो, मुझे फोन करें, मैं उनके पास दौड़ा चला आऊंगा। उन्हें मेरे पास आने की जरूरत नहीं। आये तो लोग उनके साथ फोटो खींचकर, नजदीकी दिखाकर दुरूपयोग करने का प्रयास कर सकते हैं, अनावश्यक विवाद खडे़ हो सकते हैं।

मोदी बोले- जहां तक मेरी देखभाल का सवाल है, इसके लिये मुझे किसी सहारे की जरूरत नहीं। मैं अपना ध्यान खुद रख सकता हूं। रोजाना 24 घंटे में से लगभग दो तिहाई समय काम करता हूं। फिर भी मेरी दिनचर्या सुव्यवस्थित है। मैं आपने खानपान और फिटनेस का पूरा ध्यान रखता हूं। इसलिये आपने मेरे बीमार पड़ने की खबरें नहीं सुनी होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिले संस्कार और प्रशिक्षण ने मुझे स्वावलम्बी बनाया है। सांसारिक जीवन में आमतौर पर होने वाली अपेक्षाएं भी मुझ में नहीं हैं। अच्छे वस्त्रविन्यास का, सुशोभन दिखने का शौक जरूर है।

परिवार के हालचाल पूछने पर मोदी ने बताया कि जिस कमरे में बैठकर हम बात कर रहे हैं, उतने से कमरे में मेरी मां रहती है। वो आज भी दस-बीस रुपये वाली हवाई चप्पल पहनती है। मेरे उस घर में फर्नीचर के नाम पर एक प्लास्टिक की कुर्सी है। भाईबंद अपने छोटे-मोटे काम-धंधे से गुजारा करते हैं।

हमने कहा, अभी तक हम जितने भी मुख्यमंत्रियों के निवास पर गये, वहां काफी तामझाम देखा। नेताओं, कार्यकर्ताओं, अफसरों, कर्मचारियों आदि का जमावड़ा देखा। लेकिन आपके मुख्यमंत्री निवास पर ऐसा कुछ नहीं दिखा, बल्कि एकदम उलट नजारा दिखा। इस निवास के बाहरी प्रवेश द्वार से लेकर भीतर तक बहुत ही कम अधिकारी-कर्मचारी दिखे। नेता, कार्यकर्ता वगैरह तो नजर ही नहीं आये। इस बडे़ फर्क की कोई खास वजह ?

मोदी बोले- अपने पास उतने ही चुनिंदा अधिकारी-कर्मचारी रखता हूं, जितने की वाकई जरूरत है। नेता, कार्यकर्ता, अफसर आदि जो भी मिलने आते हैं, उन्हें बात होते ही यहां से रवाना कर देता हूं। काम होने के बाद किसी को यहां रुके रहने नहीं देता। रुके रहे तो फोटो खींचकर नजदीकी दिखाकर बेजा इस्तेमाल करने की आशंका रहती है। मुख्यमंत्री निवास में छाए सन्नाटे की स्थिति की खास वजह यह है कि अगर आप चापलूसों से घिरे रहते हैं तो वे आपका यशोगान करने में आपका मूल्यवान समय बर्बाद करते हैं और आपको जमीनी हकीकत का अहसास नहीं होने देते। आप चापलूसों से जितना दूर रहेंगे, उतने जमीन से जुडे़ रहेंगे। चापलूसों से दूर रहने से आपका कीमती वक्त बचता है। मैं यही करता हूं। इसी कारण मेरे पास पर्याप्त समय होता है, जिसे मैं कम्प्यूटर पर बिताता हूं। इससे मुझे रोजाना काम की काफी जानकारियां भी मिलती हैं।

हमने कहा, आप हम करीब पौने घंटे से बात कर रहे हैं। इस दौरान न आपके पास कोई फाइल आई, न आपके फोन की घंटी बजी और न ही कोई स्टाफ किसी काम से भीतर आया। जबकि दूसरे मुख्यमंत्रियों के यहां ऐसा नहीं होता। उनसे इतनी लंबी बातचीत के दौरान बीच-बीच में किसी न किसी रूप में व्यवधान आते रहते हैं। यह बड़ा अंतर कैसे ?

मोदी बोले- मैं जिनसे भी मिलता हूं, उन्हें अपना क्वालिटी टाइम देता हूं। बातचीत के दौरान सिर्फ मैं और वो ही होते हैं, और कोई नहीं। इससे दोनों के बीच विचारों का आदान-प्रदान पूर्णतः हो पाता है। इससे उन्हें भी संतोष मिलता है और मुझे भी। इसलिये मैंने स्टाफ को कह रखा है कि जब मैं किसी से भेंट करूं, तब कोई फोन, फाइल या व्यक्ति हमारे बीच नहीं आना चाहिये।

हमने कहा, कुछ लोग आपको अड़ियल क्यों मानते हैं? आपके कपड़ों पर भी सवाल उठाते हैं। मोदी ने सहज भाव से स्वीकार किया- हां, मैं एरोगेंट हूं और हूं तो हूं। इसके अलावा और कोई आरोप मुझ पर चिपकता ही नहीं। भ्रष्ट या अनैतिक होने का आरोप तो कोई लगाता भी नहीं। ताजा मिसाल देखिये, जो बताती है कि मुख्य विपक्षी दल के पास मुझ पर आरोप लगाने के लिये क्या सामान बचा है। हाल में कांग्रेस के सभी प्रमुख नेताओं की मौजूदगी में अहमदाबाद में कांग्रेस का बड़ा सम्मेलन हुआ। उसमें मुझ पर सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया कि मोदी के पास 250 जोड़ी कुर्ते-पायजामे हैं। और तो कोई आरोप उनको सूझा ही नहीं। मैंने भी सार्वजनिक रूप से इस आरोप को सहर्ष स्वीकार किया, साथ में यह भी कहा कि कांग्रेस नेताओं ने 50 के आगे 2 का आंकड़ा या 25 के बाद शून्य गलती से लगा दिया है।

हमने कहा, आपके मुख्यमंत्री निवास का प्रवेश द्वार मालूम नहीं था। सो, दो गेट पर भटकने के बाद हम प्रवेश द्वार पर पहुंचे। तीनों गेट पर हमें किसी ने रोका-टोका नहीं। तीनों जगह मात्र दो-दो सुरक्षाकर्मी खडे़ दिखे। उनके पास भी कोई खास हथियार नहीं थे। मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर सांकेतिक अवरोधक लगा था। वहां कार रोकने पर बिना वर्दी वाले शख्स ने सिर्फ हमारा नाम पूछा और बेरिकेड हटा दिया। आपके निवास के द्वार पर भी बिना वर्दी वाला आदमी खड़ा था। उसने मुझे कहा कि आप अंदर आ जाइये, आपकी गाड़ी चला रहा शख्स पार्किंग में गाड़ी लगा देगा। इस पर मैंने कहा कि ये ड्राइवर नहीं है। मेरे मित्र हरीश नीमा हैं इसलिये मैं भी पार्किंग में जाकर इन्हें साथ लेकर जाऊंगा। यह सुनकर उस आदमी ने हमें पार्किंग में न भेजकर सीधे आपके पोर्च में हमारी गाड़ी लगवा दी।

हमने यह भी कहा कि हमने आपको न तो हमारी कार का नम्बर बताया था और न ही साथ आये मित्र का नाम। फिर भी हमारी गाड़ी की कोई जांच नहीं हुई। अन्य मुख्यमंत्रियों से मिलने जाने पर उनके निवास पर तैनात सुरक्षाकर्मी आगंतुक रजिस्टर में देखते हैं कि मिलने वालों की सूची में हमारा नाम है या नहीं। फिर कार की पूरी जांच करके ही अंदर जाने देते हैं पर यहां ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मुख्य प्रवेश द्वार पर भी मेटल डिटेक्टर और सुरक्षा का तामझाम नहीं दिखा। ऐसा क्यों, जबकि आपको जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त है।

मोदी बोले- दिखाई देने वाली (विजिबल) सुरक्षा व्यवस्था से बचाव सुनिश्चित होता है क्या ? आतंकी हमले के कितने नये तरीके आ गये हैं। उनके आगे दिखावटी सुरक्षा कारगर नहीं होती भाई। इंदिरा गांधी को तो उन्हीं के सुरक्षा गार्डों ने प्रधानमंत्री निवास में मार डाला। उनके बाद राजीव गांधी को सर्वोच्च सुरक्षा प्राप्त होने के बावजूद कैसे सरेआम बम से उड़ा दिया गया। मोदी के इस जवाब से साफ हुआ कि वे अदृश्य सुरक्षा व्यवस्था पर ज्यादा भरोसा करते हैं।

(लेखक मप्र के पूर्व सूचना आयुक्त एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *