दरअसल विदेश मंत्री जयशंकर ने कतर इकनॉमिक फोरम को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत के साथ विवादित सीमा पर चीन की सैन्य तैनाती और बीजिंग सैनिकों को कम करने के अपने वादे को पूरा करेगा या नहीं, इस बारे में अनिश्चितता दोनों पड़ोसियों के संबंधों के लिए चुनौती बनी हुई हैं। उन्होंने कहा था कि क्या भारत और चीन आपसी संवेदनशीलता और सम्मान पर आधारित संबंध बना सकते हैं और क्या पेइचिंग सीमावर्ती क्षेत्र में दोनों पक्षों के किसी बड़े सशस्त्र बल को तैनात नहीं करने की लिखित प्रतिबद्धता का पालन करेगा। इस पर चीन ने भारत के अतिक्रमण को सीमा पर तनाव का असली कारण बताते हुए कहा है कि हमें सीमा मुद्दे को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने के लिए इसे द्विपक्षीय संबंधों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
चीन वार्ता की टेबल पर तो सहमत दिखता है लेकिन जमीनी हालात जस के तस हैं । भारत - चीन कूटनीतिक स्तर की वार्ता या परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र ( डब्ल्यूएमसीसी) की 25 जून को हुई 22 वें दौर की बैठक में दोनों पक्ष पूर्वी लद्दाख में एलएसी के साथ शेष मुद्दों का शीघ्र समाधान खोजने की आवश्यकता पर सहमत हुए। बैठक में सितम्बर, 2020 में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुए समझौते को ध्यान में रखते हुए इस बात पर भी सहमति बनी कि मौजूदा द्विपक्षीय समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार वरिष्ठ सैन्य कमांडरों के बीच 12वें दौर की वार्ता जल्द से जल्द आयोजित की जाए। चीन ने 09 अप्रैल को हुई कोर कमांडर स्तरीय 11वीं वार्ता में एलएसी के अन्य विवादित क्षेत्रों गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स से अपनी सैन्य टुकड़ी को हटाने से इनकार कर दिया था।