31 मार्च: इतिहास के पन्नों में

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नई दिल्ली, 31 मार्च (हि.स.)। इतिहास में 31 मार्च के दिन ऐसी घटनाएं दर्ज हैं, जिनका देश-दुनिया के लिए अलग महत्व है। इनमें महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन का निधन और भारत में डाक सेवा की शुरुआत प्रमुख घटनाक्रम है। इसके अलावा तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा आज के दिन ही अपने शिष्यों के साथ शरण लेने भारत पहुंचे थे।
न्यूटनः दुनिया के महान भौतिकशास्त्रियों में शामिल आइजक न्यूटन का 31 मार्च, 1727 को 84 साल की आयु में निधन हो गया। 4 जनवरी 1643 में इंग्लैंड के लिंकनशायर में पैदा हुए न्यूटन गुरुत्वाकर्षण के नियम और गति के सिद्धांत की खोज के लिए दुनिया भर में मशहूर हुए। उनका शोध प्रपत्र ‘प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांत’ में 1687 में प्रकाशित हुआ। उस शोध पत्र में सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गयी थी। वैज्ञानिकों के बीच न्यूटन का विशिष्ट स्थान है।
डाक सेवा की शुरुआतः 1774 में आज के दिन ही पहला डाकघर खुलने के साथ भारतीय डाक सेवा की शुरुआत हुई। वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में प्रथम डाकघर स्थापित किया। इसके तकरीबन 12 साल बाद मद्रास और उसके कुछ वर्षों बाद बंबई प्रधान डाकघर की स्थापना हुई। देश की प्रगति में डाक सेवाओं का भी विशेष योगदान रहा है।
दलाई लामा का भारत आगमनः  तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने 31 मार्च 1959 को अपने शिष्यों के साथ भारत में कदम रखा था। इससे पहले 17 मार्च को वे तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही निकले थे और हिमालय के पहाड़ों को पार करते हुए लगभग 15 दिनों बाद भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे। भारत में दलाई लामा को शरण मिलना चीन को बहुत बुरा लगा। उस समय चीन में माओत्से तुंग का शासन था और भारत में पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का शासनकाल था। 1950 के दशक से शुरू हुए दलाई लामा और चीन का विवाद आजतक खत्म नहीं हुआ है। दलाई लामा के भारत में शरण लेने से चीन के साथ भारत के रिश्तों पर खासा असर पड़ा। वर्ष 1989 में दलाई लामा को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला।
अन्य अहम घटनाएंः
1504ः सिखों के गुरु अंगद देव जी का जन्म। वे गुरु नानक देव जी के बाद सिखों के दूसरे गुरु थे।
1870ः अमेरिका में पहली बार किसी अश्वेत नागरिक ने वोट दिया। अश्वेतों को समान अधिकार दिलाने की दिशा में यह अहम कामयाबी थी।
1889ः पेरिस का मशहूर एफिल टावर आधिकारिक तौर पर खुला। फ्रांस की क्रांति की शताब्दी के मौके पर बनी 300 मीटर ऊंची लोहे की इस इमारत को गुस्ताव एफिल की प्राद्योगिक दक्षता का बेमिसाल नमूना माना जाता है।
1990ः संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से मरणोपरांत सम्मानित किया गया।

 


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