कोसी नदी किनारे मिले अवशेषों में नगरीय सभ्यता के प्रमाण

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भागलपुर जिले में मिले पांच हजार वर्ष पुराने ताम्र-पाषाणिक काल के अवशेष पुराविदों के अनुसार भदरिया की तरह गुवारीडीह भी चम्पा-संस्कृति का विस्तार



पटना, 07 दिसम्बर (हि.स.)। भागलपुर जिले में पांच हजार वर्ष पुराने ताम्र पाषाणकालीन युग और 2500 वर्ष पुराने बुद्धकालीन पुरावशेष मिले हैं। पुराविदों के अनुसार भदरिया की तरह गुवारीडीह भी चम्पा-संस्कृति का विस्तार है। गुवारीडीह पुरास्थल के शोध और विश्लेषण में पिछले 10 महीनों से लगे तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के प्राचीन इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष डॉ. बिहारीलाल चौधरी कहते हैं कि उस समय यहां पर नगर-अधिवास होने के प्रमाण हैं। यहां पर मिली सामग्रियों के आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि यह स्थल ताम्र-पाषाणिक काल का अवशेष हो सकता है जो कि पांच हजार वर्ष पुराना है।

डॉ. चौधरी का अनुमान है कि यह स्थल अंग जनपद (भागलपुर प्रक्षेत्र) की राजधानी चम्पा का विस्तार रहा होगा जो कि 2500 पुराना बुद्धकालीन होगा। उन्होंने राज्य के पुरातत्व विभाग से अनुरोध किया है कि स्थल का निरीक्षण जरूर करें।
मृदभांड, लौह-उपकरण और औजार, मवेशियों के जीवाश्म मानवनिर्मित पाषाण उपकरण मिले:
बिहपुर प्रखंड के जयरामपुर के निकट कोसी नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित गुवारीडीह के प्राचीन टीले से ये अवशेष में पक्की ईंट की बनी दीवारों की संरचना सहित बहुतायत में एनबीपीडब्ल्यू संस्कृति से जुड़े अनेकों रंगों वाले मृदभांड, कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले लौह-उपकरण और औजार, मवेशियों के जीवाश्म, मानवनिर्मित पाषाण उपकरण और औजार सहित विभिन्न संस्कृति वाले मृदभांड भी प्राप्त हुए हैं।
एक माह पहले बांका जिले के भदरिया के चांदन नदी में भी मिले थे प्राचीन अवशेष
करीब एक माह पहले बांका जिले के भदरिया गांव स्थित चांदन नदी की धारा में प्राचीन भवनों के अवशेष मिले थे। बरामद अवशेष लगभग 1300 स्क्वायर फीट में बिखरा है। नदी में प्राचीन भवनों के अवशेष के अलावा भवन में प्रयुक्त ईंट के आकार औऱ प्रकार को लेकर कई इतिहासकार ने इसे छठी-सातवीं शताब्दी यानि बौद्ध काल का बताया है। बौद्ध ग्रंथों में भगवान बुद्ध के 1200 बौद्ध भिक्षुओं के साथ वैशाली से भदरिया गांव आने का जिक्र है। इन्हीं ग्रंथों में भदरिया के कुशल व्यवसायी मेणडक की चर्चा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह एक व्यापारिक केंद्र रहा होगा। भवनों के अवशेष तथा ईंट के आकार से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह 2500 वर्ष पुराने हैं। इस नदी की पहचान ग्रीक लेखकों ने भी पौराणिक काल की पवित्र नदी ‘ईरणभव’ के रूप में की है।

 


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