बिहार में लाल पत्थर से निर्मित एकलौते ठाकुरबाड़ी को है भागीरथ का इंतजार

0

बेगूसराय, 28 जून (हि.स.)। स्वर्णभूमि और अंगुत्तराप के नाम से वर्णित बेगूसराय अपने गर्भ में एक से बढ़कर एक इतिहास को सहेजे हुए है। बेगूसराय आज भी कई ऐतिहासिक धरोहरों को अपने दामन में समेटे अतीत के गहराइयों में दफन होते धरोहरों की कहानियां सुना रहा है । जिन धरोहरों को कभी यहां का गौरव माना जाता था। वह आज अपने हालत पर आंसू बहा रहा है और इस गौरवशाली इतिहास की धरोहरों के संरक्षण की जिम्मेदारी ना सरकार, ना ही स्थानीय लोग ले रहे हैं। ऐसी ही एक अदभुत धरोहर है सलौना की बड़ी ठकुरबाड़ी। जहां थे घंटी, शंख, हवन संग मीठे पवन के झोंके, बदलते वक्त के संग बदली दुनिया और दब गई कहानी भी अतीत की गहराई में, जिससे सियाराम जी भी ना रहे अछूते। यह हालत हो गई है अदभुत धरोहर बेगूसराय जिला के सलौना की बड़ी ठाकुरबाड़ी की। यह विशाल मंदिर पूरी के जगन्नाथ मंदिर का एहसास देता है।

कहा जाता है कि लाल पत्थर से निर्मित और ढ़ाई सौ साल से अधिक पुराने इस मंदिर को बनाने में लगभग 16 साल लगे थे। उस समय पांच लाख की लागत से इसकी शुरुआत की गई और 36 सौ बीघा जमीन की उपज से जो भी रकम आता था, वह इस मंदिर के निर्माण में ही लगाया जाता था। इसी जमीन से हुई उपज राम लला के देख रेख मे उपयोग की जाती थी। मुख्य गुंबद के साथ-साथ चारों ओर का परकोट का गुंबद सोना से सजाया गया था। करोड़ों की लागत से राम सीता की मूर्ति स्थापित थी। गांव के बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि इसके सर्वप्रथम सेवक इटावा (यूपी) के स्वामी मस्तराम महाराज थे। उनके बाद लक्ष्मी दास, विष्णु दास, स्वामी भागवत दास, महंत रामस्वरूप दास पूरी तरह से कर्तव्यनिष्ठ होकर मंदिर के प्रांगण और राम लला की सेवा में समर्पित होकर जीवनपर्यन्त इस धरोहर की नींव बने रहे। उसके बाद इस मंदिर के दिवारों को बचाते रहे महंत विपिन बिहारी दास। लेकिन इनका निधन होते ही मंदिर की बदहाली का समय आ गया, सभी लोग इस धरोहर से दूर होते चले गए।
लाल पत्थर से निर्मित इस मंदिर रुपी ठाकुरबाड़ी की अद्भुत कलाकृति शायद बिहार में कहीं और नहीं है। लोग कहते है इस तरह का एक मंदिर सिर्फ हरिद्वार में देखा गया है। स्थानीय निवासी डॉ. रमण कुमार झा कहते हैं कि यह आज भी कई ऐतिहासिक धरोहरों को अपने दामन में समेटे कहानियां सुना रहा है। जिन धरोहरों को कभी यहां का गौरव माना जाता था। आज अपने हालत पर आंसू बहा रहे इस गौरवशाली इतिहास को सजाने, संवारने, बचाने का जिम्मा ना सरकार ले रही है और ना स्थानीय लोग। मंदिर का पुनरुद्धार नितान्त आवश्यक है। मंदिर के सहारे बहुत कुछ बेहतर किया जा सकता है। अगर यहां स्वास्थ्य या शिक्षा का केंद्र बनाकर विस्तार किया जाए तो एक अदभुत प्रयास होगा और क्षेत्र का भविष्य बदल देगा। मंदिर में आकर तथा इस धरोहर को देखकर सवाल उठते हैं कि इस मंदिर के सहारे बसा यह गांव आज अपने आराध्य और उनकी बाड़ी को कैसे भूल गया। जिस ठाकुरबाड़ी ने सलौना रेलवे स्टेशन एवं स्कूल इत्यादि दिया, आज वही अपनी बदहाली पर मौन खड़ा किसी भागीरथ का इंतजार कर रहा है कि कोई आए और उद्धार करे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *