कूटनीतिक परिवर्तन सुधारेगा भारत-नेपाल का रिश्ता: डॉ. राव

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गोरखपुर, 20 जून (हि.स.)। चीन से तनातनी के बीच भारत-नेपाल के मध्य हुए सीमा विवाद को कूटनीतिक परिवर्तन से हल किया जा सकता है। इसमें गुरु गोरक्षनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। केवल राजनयिक और राजनैतिक प्रयासों से उतना सकारात्मक प्रभाव नहीं मिलने की उम्मीद है, जितनी नाथपंथ के प्रयासों से मिलने की संभावना है।
यह कहना है नेपाल शोध अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ. प्रदीप राव का।  विशेष बातचीत में डॉ. राव ने कहा कि चीन से तनातनी के बीच मौजूदा समय में नेपाल-भारत रिश्तों की अनदेखी किसी भी स्तर पर लापरवाही और चिंता का मूल विषय है। चीन के दबाव में आए नेपाल ने सदियों पुराने रोटी-बेटी के रिश्तों को दर-किनार कर दिया है। इस वजह से भारत और विदेश मंत्रालय को अपनी कूटनीति में परिवर्तन करना होगा। नेपाली जनमानस से गोरक्षनाथ मंदिर और नाथपंथ के मधुर रिश्तों से दोनों देशों के पुराने रिश्तों में रवानगी लाई जा सकती है।
वजहें बताते हुए डॉ. राव कहते हैं कि राजदूत केवल नेपाल के पॉलिटिकल लोगों के साथ बैठते-उठते हैं। यहां जनता की भावनाओं की अनदेखी संभव है। इसलिए भारत सरकार को नेपाल के साथ चल रही मौजूदा विदेश नीति और समस्या निदान को जारी कूटनीति में परिवर्तन लाना होगा। नेपाली जनता अगर भारत के साथ खड़ी हो जाय तो नेपाल सरकार बढ़ाव में आ सकती है और समस्या के निदान की ओर भारत का कदम बढ़ सकता है। नेपाली जनता को साथ लेने के लिए नाथपंथ और योगी आदित्यनाथ की अनदेखी नहीं कि जा सकती। वजहें साफ हैं।
नेपाल की प्रचंड सरकार द्वारा नेपाल की मुद्रा से गुरु गोरक्षनाथ के प्रतीकों को हटाने की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए डॉ. राव कहते हैं कि उस समय जनता के दबाव में आने से ही प्रचंड सरकार द्वारा नेपाली मुद्राओं से गुरु गोरक्षनाथ और नाथ सम्प्रदाय के प्रतीकों को हटाने में सफलता नहीं मिली थी और वह मुद्रा प्रतीकों में कोई परिवर्तन नहीं कर सके थे।
वह बताते हैं कि तराई बेल्ट के नेपालियों पर तो गुरु गोरक्षनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा तो है ही, नेपाल के मूल लोगों के मन-मस्तिष्क में भी गोरक्षनाथ के प्रति अटूट विश्वास और श्रद्धा है। इस वजह से कोई भी राजनैतिक दल लोगों को नाराज़ करना नहीं चाहेगा और उसे जनता के सामने झुकना ही पड़ेगा। प्रचंड के नेतृत्व वाली कम्युनिष्ट पार्टी की सरकार को भी घुटने टेकने पड़े थे और गोरक्षनाथ के प्रतीकों को नेपाली मुद्रा से हटाने के निर्णय से अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। यह सब कुछ नाथ सम्प्रदाय के प्रति अगाध श्रद्धा को दर्शाने वाला संकेत है। आज भी गोरक्षनाथ मंदिर के प्रति नेपालियों में विश्वास और श्रद्धा है।
डॉ. प्रदीप राव के मुताबिक नाथपंथ और नेपाल का संबंध सांस्कृतिक-धार्मिक स्तर पर काफी महत्वपूर्ण है। महायोगी गोरखनाथ नेपाल के राजगुरू रहे। नेपाल की मुद्राओं पर गोरखनाथ के नाम का अंकन है। पहले उस पर उनकी चरण पदुकाएं अंकित रहती थी, अब पृथ्वीनाथ की कटार अंकित है। इनका कहना है कि किसी भी राष्ट्र की मुद्रा उसकी पहचान होती है। भारत में आशोक चक्र और महात्मा गांधी हैं, ठीक वैसे ही नेपाल की मुद्री पर गोरखनाथ और नाथपंथ से जुड़े प्रतीक आज भी अंकित हैं। यह नेपाली जन-मानस में रचा बसा है। इसलिए वर्तमान खड्ग प्रसाद ओली की अगुवाई वाली नेपाली कम्युनिस्ट सरकार को भी जनता के सामने झुकना पड़ेगा।

 


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