मथुरा, 21 फरवरी(हि.स.)। कान्हा की नगरी में शहर मथुरा के चारों तरफ चार शिव मंदिर हैं। पूर्व में पिपलेश्वर, पश्चिम में भूतेश्वर, दक्षिण में रंगेश्वर महादेव और उत्तर में गोकर्णेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर स्थापित हैं, जो शहर कोतवाल कहलाए जाते हैं। सभी मंदिरों में महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर शिव भक्तों की पूजा अर्चना को लेकर भीड़ का तांता लगा हुआ है।
भूतेश्वर महादेव का मंदिर कृष्ण जन्मभूमि के दक्षिण में है। इसमें ऐतिहासिक शिवलिंग एवं पाताल देवी के विग्रह हैं। भूतेश्वर महादेव का शिवलिंग नाग शासकों द्वारा स्थापित किया गया। श्री भूतेश्वर जी मथुरा के रक्षक सुप्रसिद्ध चार महादेवों में पश्चिम दिशा के क्षेत्रपाल माने जाते हैं।
पिपलेश्वर महादेव बंगाली घाट के निकट स्थित हैं। इस प्राचीन मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां के महादेव प्रेतों पर नियंत्रण रखते हैं। इस मंदिर के निकट ही यमुना जी कलकल बहती हैं। यहां के दर्शन करने से सभी कष्टों का समापन हो जाता है।
टीले पर बने गोकर्णेश्वर महादेव का मंदिर मसानी क्षेत्र में आकाशवाणी के पीछे स्थित है। शहर के उत्तर में यह मंदिर भगवान गोकर्णेश्वर को समर्पित किया गया था। शहर के उत्तर क्षेत्र में बसे लोगों के साथ ही सावन में यहां ग्रामीण अंचलों से भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि भगवान का गाय के कर्ण से प्राकट्य हुआ था। इसीलिए गोकर्णेश्वर महादेव कहा जाता है। गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर में जो व्यक्ति लगातार 40 दिन तक भगवान को शिव स्त्रोत का पाठ और गन्ने के रस से अभिषेक करता है, उसके बीमारियां पास नहीं आतीं। धनलक्ष्मी हमेशा उसके यहां वास करती हैं।
वहीं दक्षिण दिशा में रंगेश्वर महादेव है, जिनका वर्णन भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में भी मिलता है। मंदिर के सेवायत लखमीनाथ ने बताया कि मामा कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण व बलराम दोनों भईयों में झगड़ा हो गया कि कंस मामा को किसने मारा, उनका झगड़ा देख पताल से प्रकट हुए महादेव ने कहा कि रंग है रंग दोनों भईयों का रंग है, तो दोनों में सुलह हो जाती है, तभी से यहां कोतवाल स्वरूप रंगेश्वर महादेव पीतल धातू में प्रकट है, जिनकी पूजा अर्चना से आपसी मतभेद, सहित हर कष्ट दूर हो जाते हैं। इन सभी मंदिरों में शिवरात्रि के पर्व पर आस्था का सैलाब उमड़ा और पूजा अर्चना व कामनाओं को दौर जारी है।