लोकसभा अध्यक्ष ने यूरोपीय संसद के अध्यक्ष को लिखा पत्र, सीएए की सच्चाई से अवगत कराया

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इसे भारतीय संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद पारित किया गया है।



नई दिल्ली, 28 जनवरी (हि.स.)। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के मुद्दे पर यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा है कि एक विधान मंडल का दूसरे विधान मंडल पर फैसला देना अनुचित है। इस चलन का निहित स्वार्थी तत्व दुरुपयोग कर सकते हैं। बिरला ने पत्र में लिखा है-‘ अंतर संसदीय यूनियन का सदस्य होने के नाते हमें अन्य विधान मंडलों की संप्रभु प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए।’
लोकसभा अध्यक्ष ने यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को पत्र में सीएए को समझाते हुए बताया है कि यह पड़ोसी देशों में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हुए लोगों को आसानी से नागरिकता देने के लिए है, न कि किसी की नागरिकता छीनने के लिए। इसे भारतीय संसद के दोनों सदनों में चर्चा के बाद पारित किया गया है।
इस बीच, यूरोपीय संघ (ईयू) ने यूरोपीय संसद में विभिन्न राजनीतिक दलों की तरफ से पेश नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) पर बहस और वोटिंग से अपने आपको अलग कर लिया है। यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि यूरोपीय संसद में जो विचार व्यक्त किए जाते हैं या इसके सदस्य जो विचार सामने रखते हैं वह जरूरी नहीं है कि ईयू के अधिकारिक विचार हों। संघ ने 13 मार्च को ब्रसेल्स में होने वाली भारत और ईयू की 15वीं बैठक का जिक्र करते हुए कहा है कि भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना जरूरी है।
भारत के लिए यह राहत की बात है कि यूरोपीय संघ का एक प्रमुख देश फ्रांस भी उसके साथ आता दिख रहा है। फ्रांस के नई दिल्ली स्थित दूतावास के कूटनीतिक सूत्रों के मुताबिक, ‘हमने पहले भी कहा है और आज फिर दोहरा रहे हैं कि सीएए भारत का आंतरिक कानूनी मामला है। आगे हमारा जो भी कदम होगा इसी सोच के साथ होगा।’ फ्रांस ईयू के संस्थापक देशों में है और उसका खुलकर साथ मिलने से भारत के लिए यूरोपीय संसद के सदस्यों के सामने अपनी बात रखने में मजबूती आएगी।
यूरोपीय संघ के आधिकारिक बयान और फ्रांस के साथ आने के बावजूद यूरोपीय संसद में 29 जनवरी को सीएए, एनआरसी व जम्मू-कश्मीर पर चर्चा होने के संकेते मिल रहे हैं। 30 जनवरी को इस पर वोटिंग भी हो सकती है। यूरोपीय संसद के विभिन्न संसदीय दलों ने सीएए को लेकर छह प्रस्ताव सदन पटल पर रखे हैं। यह सभी प्रस्ताव भारत सरकार के सीएए को लेकर उठाए गए कदमों की निंदा करते हैं।
सबसे ज्यादा निंदनीय प्रस्ताव 154 सांसदों वाली एसऐंडडी समूह की तरफ से रखा गया है। इसमें कहा गया है कि सीएए की वजह से दुनिया में सबसे बड़ी नागरिकता संबंधी समस्या पैदा हो सकती है। 182 सांसदों वाले ईपीपी समूह ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि सीएए भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को काफी नुकसान पहुंचाएगा। यूरोपीय संसद के 751 में से 600 सांसदों ने इन प्रस्तावों का समर्थन किया है। इससे पहले कभी भी भारत को लेकर इतना बड़ा प्रस्ताव यूरोपीय संसद में नहीं आया है।
उधर, भारतीय विदेश मंत्रालय ने दोहराया है कि सीएए पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है। इसे एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ाया गया है। कोई भी देश जब नागरिकता देता है, तो उसके लिए कुछ शर्तें तय करता है। यूरोपीय संघ के भी कुछ सदस्य देश इस तरह के नियमों का पालन करते हैं। मंत्रालय के सूत्रों ने भरोसा जताया है कि यूरोपीय संसद में इस प्रस्ताव को लाने वाले भारत से विचार- विमर्श कर वस्तु स्थिति की जानकारी लेंगे। उल्लेखनीय है कि यूरोपीय संघ, भारत का बड़ा कारोबारी साझेदार है। वह सबसे अधिक सामान आयात करता है।

 


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