देश में समाज तोड़क विपरीत संवाद किये जा रहे खड़े : भागवत

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आरएसएस सरसंघचालक ने वामपंथ पर इशारों में साधा निशाना सामाजिक परिवर्तन गतिविधियों में सज्जनों को सहभागी बनाने का दिया मंत्र



गोरखपुर, 25 जनवरी (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के पांच दिवसीय कार्यकर्ता बैठक के दूसरे दिन की तीन सत्रों में चलने वाली बैठक को सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने संबोधित किया। वामपंथ की ओर इशारा करते हुए उन्होंने लम्बे समय से समाज तोड़क विपरीत सम्वाद खड़ा करने की बात कही और इसे दूर करने को सामाजिक समरसता को जरूरी बताया।

उन्होंने स्वयंसेवकों को गांव जाने और सामाजिक परिवर्तन के लिए होने वाली गतिविधियों में सज्जन लोगों को सहयोगी बनाने का मंत्र भी दिया। बैठक में पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र की कार्यकारिणी, अवध, काशी, गोरक्ष, कानपुर प्रान्त टोली, प्रान्त कार्यकारिणी के अलावा पर्यावरण, सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, धर्मजागरण, समग्र ग्राम विकास व गो सेवा जैसी गतिविधियों की प्रान्त टोलियां शामिल हैं।
शनिवार को सरसंघचालक ने कहा कि सभी समाज को एकसाथ लेकर चलना है। गांव-गांव जाकर भारतीय जीवन मूल्यों के प्रकाश में सामाजिक परिवर्तन की चल रहीं गतिविधियों में सज्जनों को जोड़ें और इस कड़ी को बढ़ाते चलें। स्वस्थ्य समाज का निर्माण हो जाएगा। उन्होंने कहा कि बिना किसी प्रचार व शासन सत्ता के सहयोग से कार्य को गति दें। सहज रीति से कार्यकर्ता सज्जनों के साथ मिलकर कार्य करें। सामाजिक परिवर्तन का प्रकट रूप स्वतः खड़ा होगा। पूरे समाज से आपसी भेदभाव को दूर करने का कार्य ही स्वयंसेवक का गुण है। हमें समाज को सभी विकारों से मुक्त करके समरस भाव वाले सामाजिक परिवेश को तैयार करना है।
तीन सत्रों में सम्पन्न बैठक में सरसंघचालक ने सभी गतिविधियों में चल रहे कार्यों की जानकारी ली। सामाजिक समरसता के कार्यकर्ताओं से चर्चा की। इस दौरान उन्होंने कहा कि कुछ विकृतियों के कारण समाज का तानाबाना टूटा है। जाति-पाति, विषमता, अस्पृश्यता जैसे सामाजिक विकार समाज से शीघ्र समाप्त करना है। समाज का मन बदलें। सामाजिक अहंकार और हीनभाव दोनों समाप्त करने से ही लक्ष्य प्राप्त होगा।
यह दिया मंत्र
– पर्यावरण के असंतुलन व उसके दुष्प्रभावों से समाज को बचाने के लिए पौधरोपण करें और करने को प्रेरित करें।
– जल संरक्षण और प्लास्टिक मुक्त समाज के लिए समाज का प्रबोधन करें। जरूरत पड़े तो प्रशिक्षण करने का आग्रह करें।
– ग्राम्य विकास की चर्चा करें। कृषि पर जोर दें। कृषि परम्परा में न जमीन दूषित होती है, न अन्न।
– रासायनिक खाद के उपयोग से जमीन खराब हो गयी है और अन्न विषयुक्त हो गये हैं।
जताई चिंता
– रासायनिक खेती ने जल, जमीन और जन सहित सबको नुकसान पहुंचाया है।
– संघ के प्रयासों से आज देश में जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
– आदर्श जीवन में यम-नियम का पालन जरूरी है। उसी प्रकार आदर्श और उन्नत खेती के लिए पांच नियम, ‘स्वच्छता, स्वाध्याय, तप, सुधर्म और सन्तोष’ का पालन करें।
यह भी बताया
– स्वच्छता के तहत अपने गांव को साफ सुथरा रखना।
– स्वाध्याय के अन्तर्गत कृषि के सन्दर्भ में भारतीय पद्धति का अध्ययन करना।
– तप की अवधारणा के अनुरूप अपनी जमीन को भगवान मानकर बिना किसी स्वार्थ के उसकी सेवा करते हुए कृषि करना।
– अपने सुधर्म का पालन करना और संतोष अर्थात् धैर्य पूर्वक जैविक खेती को अपनाना। अच्छे परिणाम के लिए धैर्य और संतोष जरूरी है।


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