द हेग, 23 जनवरी (हि.स.)। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) ने गुरुवार को म्यांमार को आदेश दिया कि उनके देश में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई की जाए और साथ ही उनके खिलाफ हो रहे अपराधों के सबूतों को सुरक्षित रखा जाए।
ज्यादातर गाम्बिया देश के मुसलमानों ने यूएन में बीते नवम्बर को ये मुकदमा दाखिल किया। जिसमें म्यांमार पर रोहिंग्याओं पर अत्याचार करने का आरोप लगा था। साथ ही 1948 के अधिवेशन के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।
17 जजों के पैनल ने सर्वसम्मति ने निर्णय लेते हुए कहा कि म्यांमार को उसकी शक्तियों के हिसाब से वह हर कदम उठाना चाहिए जिससे रोहिंग्याओं पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लग सके। अदालत ने चार महीनों के भीतर रिपोर्ट पैनल के समक्ष रखने को कहा है।
दरअसल, 2017 में सैन्य कार्रवाई के बाद 7,30,000 रोहिंग्या म्यांमार से भाग कर बांग्लादेश की सीमा पर बने शिविरों में रहने को मजबूर हो गए थे। जांचकर्ताओं ने कहा था कि सेना ने रोहिंग्याओं के नरसंहार के लिए अभियान चलाया था।
कोर्ट का रोहिंग्या मामले पर फैसला सुनाने से पहले फाइनेंशियल टाइम्स ने म्यांमार की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की का आलेख छापा, जिसमें उन्होंने कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ युद्ध अपराध हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने इसे बढ़ा-चढ़ाकर बताया। पिछले महीने इंटरनेशनल कोर्ट में सुनवाई के दौरान सू की ने जजों से केस को खारिज करने की भी मांग की थी।
उल्लेखनीय है कि 100 से अधिक म्यांमार सिविल सोसायटी समूहों ने बयान जारी किया है कि उन्हें उम्मीद है कि आईसीजे के प्रयासों से सच सामने आएगा।