युद्ध से पीछे क्यों हट रहा है अमेरिका ?

0

ट्रम्प ने ज़ोर देकर कहा कि ईरान को मिडल ईस्ट में अब ना तो आणविक शक्ति बनने की इजाज़त देंगे और ना हीं आतंकवाद को बढ़ावा देने का अवसर देंगे।



वाशिंगटन 09 जनवरी (हिस)।  युद्ध का बिगुल बजाने के लिए तत्पर और सैन्य शक्ति में सबसे ऊपर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पीछे क्यों हट रहे हैं? क्या ईरान ने भी  बीच बचाव के रास्ते ढूँढने शुरू कर दिए हैं? ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्ला खमनेई ने यह कर अपनी बात भले पूरी कर ली हो कि ईरान ने इराक़ स्थित अमेरिका के दो सैन्य ठिकानों ‘ ऐन अल-असद एयर बेस (एंबार प्रांत) और अर्बील बेस पर  22 मिसाइलें दाग़ कर डोनाल्ड ट्रम्प के मुंह पर एक करारा तमाचा जड़ा है।  साथ ही ये भी आह्वान किया है कि अमेरिका मध्य पूर्व से बाहर हो जाए। इसके बावजूद ईरान के शिया मिलिसिया ने बुद्धवार शाम बग़दाद में ग्रीन ज़ोन में  स्थित अमेरिकी ठिकानों पर दो राकेट फेंके। इस पर माइक पेंस ने सीबीएस न्यूज़ चैनल के साथ बातचीत में दावा किया है कि ईरान ने अपने मिलिसिया ग्रुप से कहा है कि अमेरिकी हितों को टारगेट ना करें। लेकिन फिर ये दो राकेट किस ओर से दागे गए थे, इस पर शंकाएं बनी हुई हैं।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प बुद्धवार को  देश के नाम संदेश में ये कहने से नहीं चूके कि ‘ईरान ने इराक़ स्थित अमेरिकी ठिकानों पर मिसाइलें दाग़ी ज़रूर थीं, पर अमेरिकी सैनिक इतने सतर्क थे कि ईरानी मिसाइलें व्यर्थ गईं। कोई हताहत होता, तो वे ज़रूर कड़ा जवाब देते। इनमें थोड़े-बहुत साज-ओ-सामान का जो नुक़सान हुआ है, उसका आकलन किया जाएगा।’ ट्रम्प ने अपने संबोधन में यहाँ तक कहा कि ईरान युद्ध से पीछे हट गया है, यह उसके लोगों और दुनिया के लिए अच्छा है। अब उसे सुधरने का मौक़ा मिलेगा। ट्रम्प ने ज़ोर देकर कहा कि ईरान को मिडल ईस्ट में अब ना तो आणविक शक्ति बनने की इजाज़त देंगे और ना हीं आतंकवाद को बढ़ावा देने का अवसर देंगे। इसके बावजूद भी वो ऐसा करता है तो नाटो देश उसे ऐसा करने नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि अमेरिका की सैन्य और आर्थिक शक्ति दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है की वे इसका उपयोग करेंगे ही। ट्रम्प यह कहते रहे हैं कि ईरान ने उनके मिलिट्री ठिकानों अथवा हितों को टारगेट करने की कोशिश की तो वे मिलिट्री एक्शन लेंगे। ट्रम्प ने कहा कि ईरान जब तक अपने व्यवहार में परिवर्तन नहीं लाएगा,  उसके खिलाफ वित्तीय एवं आर्थिक प्रतिबंध और कड़े किए जाते रहेंगे।

डोनाल्ड ट्रम्प के दस मिनट के राष्ट्र के नाम संबोधन के समय उपराष्ट्रपति माइक पेंस और रक्षा मंत्री मार्क टी एस्पर के साथ मिलिट्री जनरल मिली एवं नेशनल सिक्युरिटी काउंसिल के चेयरमैन राबर्ट ओ ब्रायन थे। ट्रम्प के इस संबोधन पर विशेषकर रिपब्लिकन पार्टी के सदस्यों ने संतोष प्रकट किया है। लेकिन प्रतिनिधि सभा में स्पीकर नैंसी पेलोसी अपनी बात पर अड़ी हुई है कि आख़िर ट्रम्प को ईरानी कुद्स कमांडर क़ासिम सुलेमानी को मौत के घाट उतारने की इतनी जल्दी क्यों थी? खमनेई पहले कहते रहे हैं कि बस, अब उनसे आणविक शर्तों पर चलने को कोई ना कहे। असल में, ट्रम्प ने संबोधन में तीन मुद्दे उठाए। एक, खाड़ी में तनाव कम हो। ईरानी मिसाइलों से कोई अमेरिकी आहत नहीं हुआ, इसलिए उन्होंने भी कोई धमकी नहीं दी। दूसरे, अमेरिका सहित पाँच बड़े देशों रूस, चीन, जर्मनी, इंग्लैंड और फ़्रांस के बीच आणविक संधि को दोषपूर्ण बताया। तीसरे, उन्होंने नाटो को एक बार फिर खाड़ी में ज़्यादा संलिप्त होने की सलाह दी, जो संभवतया नाटो देशों को रुचिकर ना लगे।

इस युद्ध से कौन कितना पीछे हटा है, स्थिति अभी भले ही स्पष्ट ना हो, लेकिन दोनों की सेनाएँ अपनी-अपनी जगह डटी हुई हैं। अमेरिका के सहयोगी ‘नाटो’ सदस्य देशों ने अपनी सेनाएं इराक़ से हटाना शुरू कर दिया है। नाटो महासचिव ज़ेंस स्टोलनबर्ग ने कहा है कि ईरान के कुद्स कमांडर क़ासिम सुलेमानी की शुक्रवार को एक अमेरिकी ड्रोन हमले में मृत्यु के बाद कनाडा, जर्मनी, इटली, पोलैंड, डेनमार्क और क्रोशिया आदि एक दर्जन देश अपनी अपनी सेनाएं इराक़ से हटा कर कुवैत और जॉर्डन भेज रहे हैं।

 


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *