प्रधानमंत्री गांव-गांव घूमेगा तो देश का क्या होगा

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प्रधानमंत्री गांव-गांव घूमे। एक-एक व्यक्ति को गले लगाए। हर किसी की बातें सुने। यह अपेक्षा हर आम और खास की होती है। लेकिन क्या यह व्यावहारिक धरातल पर संभव है? साल में 365 दिन होते हैं। एक दिन में 24 घंटे होते हैं। 365 में 24 का गुणा करें तो एक साल में कुल 8760 घंटे होते हैं। अमूमन 6 घंटे आदमी सोता है। दो घंटे उसके नित्यक्रिया, भोजन और नाश्ते में खर्च हो जाते हैं। साल में प्रधानमंत्री के शयन के घंटों पर ही विचार करें तो वह 2190 घंटे होता है। इसे घटाने के बाद प्रधानमंत्री के पास बचते हैं केवल 6570 घंटे। प्रियंका गांधी कह रही हैं कि प्रधानमंत्री के पास अमेरिका, रूस, चीन समेत दुनियाभर के देशों में घूमने के लिए वक्त है लेकिन वे अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गांवों में कभी नहीं गए। किसी ग्रामीण से गले नहीं मिले। उसकी बात नहीं सुनी। यह सब कुछ इस तरह कहा गया जैसे कि पूर्व के प्रधानमंत्री अपने क्षेत्र के गांवों में जाते रहे हों। लोगों की बातें सुनते रहे हों और उनका समाधान करते रहे हों। प्रियंका गांधी की ये बातें जो भी सुनेगा, उसे उनके अल्पज्ञान पर हंसी ही आएगी। प्रधानमंत्री अगर जागने के बाद अपने सारे काम रोक दें और केवल ग्रामीणों से बातें करें तो वह कितने आदमी से बात कर पाएंगे? इस पर भी विचार कर लेते हैं। एक व्यक्ति को अगर वह पांच मिनट दें तो एक घंटे में केवल 12 व्यक्तियों की समस्याएं सुन सकते हैं। मतलब सालभर में केवल 547 लोगों से बात कर सकते हैं। उनकी समस्याएं सुन सकते हैं। मतलब पांच साल में प्रधानमंत्री केवल 2835 लोगों की बातें सुन सकते हैं। उनकी समस्या वह वहीं सुलझा दें तो और बात है। वर्ना इसके लिए भी उनके पास समय नहीं होगा। एक गांव से दूसरे गांव जाने में तो इस संख्या और समय में और भी कमी आ जाएगी। ये 2835 आदमी भी प्रधानमंत्री को अपनी बात सुनाकर संतुष्ट होंगे या नहीं, इस पर विचार करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। उसे कई काम करने होते हैं। प्रियंका के विजन पर किसी भी बौद्धिक व्यक्ति को तरस आना स्वाभाविक है। एक अरब 35 करोड़ के देश में क्या प्रधानमंत्री 2835 लोगों के लिए चुना जाता है, कांग्रेस को इसका जवाब देने के लिए भी तत्पर रहना चाहिए। कांग्रेस को लगे हाथ यह भी बताना चाहिए कि उनके कितने सांसद अपने संसदीय क्षेत्र का पांच साल में कम से कम एक बार दौरा कर चुके हैं।
सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने बतौर सांसद क्या रायबरेली और अमेठी के सभी गांवों का दौरा कर लिया है। एक संसदीय क्षेत्र में कई गांव होते हैं। कोई सांसद चाहकर भी अपने सभी गांवों का दौरा नहीं कर सकता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जनता की बातें न सुनने का आरोप लगाने से पहले कांग्रेस को इस बात का भी विचार करना होगा कि रेडियो पर अपने मन की बात कहने के लिए भी वे जनता से सुझाव मांगा करते थे और उसका जिक्र मन की बात कार्यक्रम में किया करते थे। इसलिए विरोध के नाम पर हवा में गांठ लगा देना ठीक नहीं है। एक अरब 35 करोड़ के देश में केवल कुछ लोगों तक ही अपना जीवन खपा देना कांग्रेसी विचारशील ही कर सकते हैं। इन पांच सालों में नरेंद्र मोदी ने देश के सभी अंचलों तक पहुंचने की कोशिश की है। उन देशों की भी यात्रा की है जहां कांग्रेस के किसी नेता ने जाने की सोची ही नहीं।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को अब तक की सबसे कमजोर सरकार बताया है। कमजोर को हटाने के लिए,उसके अधिकारों को छीनने के लिए जोर नहीं लगाना पड़ता। उसके लिए तो बंदरघुड़की ही काफी होती है। शहजोर को हटाने के लिए गुहार जुटानी पड़ती है। एकता बनानी पड़ती है। पूरे देश में नरेंद्र मोदी के खिलाफ राजनीतिक दल एकजुट हो रहे हैं। अगर नरेंद्र मोदी कमजोर होते तो उनके खिलाफ राजनीतिक दलों को एक क्यों होना पड़ता। विपक्षी दलों को पता है कि अकेले दम पर कोई भी नरेंद्र मोदी को शिकस्त दे पाने की स्थिति में नहीं है। नरेंद्र मोदी को कमजोर बताने के पहले प्रियंका गांधी को डॉ. मनमोहन सिंह की स्थिति पर विचार कर लेना चाहिए जिनके लाए गए आदेश को उनके प्रिय भाई ने बकवास कहकर फाड़ दिया था। उस भाई ने, जिसे प्रधानमंत्री बनाने का वह सपना देख रही हैं। प्रियंका ही नहीं, पूरी कांग्रेस को लग रहा है कि संविधान और लोकतंत्र संकट में है। लेकिन संविधान और लोकतंत्र को कमजोर करने का असल काम तो कांग्रेस ने ही किया। कांग्रेस कह रही है कि नरेन्द्र मोदी सरकार में जनता के बुनियादी सवालों का सामना करने की हिम्मत नहीं है। उसने संविधान, लोकतंत्र और संस्थाओं को नष्ट करने की पूरी योजना बना ली है। सेना पर हमले कांग्रेस करती है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर आक्षेप कांग्रेस करती है। सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय पर अंगुली कांग्रेस उठाती है। कांग्रेस का तर्क है कि सरकार देश की बात नहीं सुन रही। प्रियंका गांधी कह रही हैं कि इस सरकार में आपकी बात सुनने की हिम्मत ही नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री गांव-गांव नहीं जाते, क्योंकि वहां सच्चाई दिखती है। एक बार को मान लें कि राहुल गांधी कुछ गांवों में गए हैं। उस समय कांग्रेस की सरकार थी। कुछ दलित गरीब महिलाओं के यहां उन्होंने भोजन भी किया। कांग्रेस बता सकती है कि आज वे किस स्थिति में हैं। उनकी माली हालत में क्या सुधार आया। प्रियंका जी कह रही हैं कि मोदी जी ने सिर्फ उद्योगपतियों का विकास किया। सरकार की जो गरीबों के लिए योजनाएं चल रही हैं, वे सब क्या अकारण हैं? प्रियंका वाड्रा कहती हैं कि यह राजनीति जो आपको दुर्बल बनाती है, आपको नकारती है, जो आपको सत्ता नहीं देना चाहती, उसका क्या करना चाहिए? सवाल यह है कि देश का विभाजन क्यों हुआ। इसलिए कि जवाहर लाल नेहरू देश का पहला प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। आज भी इस परिवार में प्रधानमंत्री बनने की मृगतृष्णा है। हर चुनाव देश और संविधान की संरक्षा का होता है। हिंदू आतंकवाद और राम को कपोल कल्पना बताने वाली कांग्रेस के नेता मंदिरों में जाकर अपने को हिंदू बताने जताने की कोशिश करते हैं। राहुल गांधी कुर्ते पर जनेऊ पहनते हैं। देश की जनता कांग्रेस नेताओं के इस आचरण से बखूबी वाकिफ है। नेहरू अपने को मुस्लिम, ईसाई मानते थे लेकिन हिंदू बाईचांस हूं, ऐसा कहने में भी उन्हें गर्व होता था। फैजाबाद के कुमारगंज से अयोध्या के हनुमानगढ़ी तक 47 किलोमीटर का रोड शो कर प्रियंका गांधी ने हिंदुओं का ध्यान खींचने की कोशिश की है। उनका मकसद हिंदुओं के साथ खड़ा होना नहीं है। वे तो बस उनके वोट चाहती हैं।कांग्रेस को समझना होगा कि मतदाता सुयोग्य और मजबूत हाथों में ही सत्ता की बागडोर सौंपते हैं।

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