सीबीएसई की बोर्ड परीक्षाओं के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में भी बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो चुकी हैं। ऐसे में छात्रों को उचित परामर्श तथा मार्गदर्शन की बहुत जरूरत होती है। वैसे तो अधिकांश छात्र-छात्राएं खेलकूद व मौज-मस्ती छोड़ जनवरी-फरवरी माह में अपनी वार्षिक या बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी में जी-जान से जुट जाते हैं। लेकिन कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं, जिन्हें वार्षिक या बोर्ड परीक्षा के नाम से ही कड़ाके की ठंड में भी पसीने छूटने लगते हैं। दरअसल यही वह समय होता है, जब उनकी सालभर की पढ़ाई का मूल्यांकन होना होता है। इसी परीक्षा की बदौलत उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए आधार मिलता है। कुछ छात्र तो इन परीक्षाओं की तैयारी में रात-दिन इस कदर जुट जाते हैं कि उन्हें अपने खाने-पीने की भी सुध नहीं रहती। कुछ मामलों में स्थिति यह हो जाती है कि खानपान के मामले में निरंतर लापरवाही बरतने के कारण छात्रों का स्वास्थ्य गिरता जाता है। इसका सीधा-सीधा प्रभाव उनकी स्मरण शक्ति पर पड़ता है। नतीजतन, परीक्षा की भरपूर तैयारी के बावजूद उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिल पाती।
विशाल शर्मा के साथ भी 12वीं की परीक्षा में यही हुआ। विशाल अपनी कक्षा का होनहार छात्र था और जोर-शोर से परीक्षा की तैयारी में जुटा था। पढ़ाई में वह इस कदर मग्न रहता था कि उसे अपने खाने-पीने का भी ध्यान न रहता। परिणाम स्वरूप उसका स्वास्थ्य गिरता गया और परीक्षा के दिनों में वह बीमार पड़ गया। बीमारी की हालत में ही उसे परीक्षा देनी पड़ी। जब वह परीक्षा देने बैठा, तब वह शारीरिक व मानसिक अस्वस्थता की दशा में याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भी भूल गया। नतीजा यह रहा कि वह फेल होते-होते बचा और कामचलाऊ अंकों से ही परीक्षा उत्तीर्ण कर सका।
कहने का तात्पर्य यह है कि परीक्षा के दिनों में खूब मन लगाकर पढ़ाई करना और कड़ी मेहनत करना तो जरूरी है ही। लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है। अगर आपका शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो आप परीक्षा की तैयारी बेहतर ढंग से कैसे कर पाएंगे? परीक्षा में सफलता-असफलता को लेकर भी बहुत से छात्र तनावग्रस्त हो जाते हैं। उनके मन में परीक्षा नजदीक आते ही एक अजीब बेचैनी छा जाती है। दरअसल ऐसे छात्र सालभर का समय मौजमस्ती में गुजार देते हैं और जब परीक्षाएं नजदीक आती हैं तो उन्हें हौव्वा मानकर घबराने लगते हैं। इसके अलावा समय सारिणी बनाकर नियमित अध्ययन न करना भी उनके तनावग्रस्त होने का प्रमुख कारण होता है।
कुछ छात्र परीक्षा की तैयारी के लिए अपना कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाते और लक्ष्य निर्धारित न होने के कारण एकाग्रचित्त होकर परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाते। ऐसे में परीक्षा को लेकर उनका चिंतित और तनावग्रस्त होना स्वाभाविक ही है किन्तु परीक्षा के दिनों में जरूरत से ज्यादा तनावग्रस्त रहना निश्चित रूप से हानिकारक साबित होता है। तनावग्रस्त रहने के कारण लाख कोशिशों के बाद भी पढ़ाई में उनका मन नहीं लग पाता। अतः यह बेहद जरूरी है कि आप शुरू से ही पढ़ाई के प्रति रूचि बनाए रखें, अपना लक्ष्य निर्धारित करें ताकि ऐसी परिस्थितियां ही उत्पन्न न होने पाएं, जिनके कारण परीक्षा को हौव्वा मानकर आपको तनावग्रस्त रहना पड़े।
वही छात्र परीक्षाओं को हौव्वा मानते हैं, जो सालभर तो मौजमस्ती करते घूमते फिरते हैं और ठीक परीक्षा के मौके पर उन्हें किताबों की सुध आती है। तब उन्हें समझ ही नहीं आता कि परीक्षा की तैयारी कैसे और कहां से शुरू की जाए। इसी हड़बड़ी और तनाव के चलते वे परीक्षा में पिछड़ जाते हैं। यदि आपने सालभर नियमित रूप से मन लगाकर पढ़ाई की है तो कोई कारण नहीं, जो परीक्षा से आपको किसी प्रकार का भय सताए। अगर आप समय सारिणी बनाकर अध्ययन-मनन करें तो कठिन से कठिन हर विषय भी आपको आसानी से समझ में आ सकता है लेकिन समय सारिणी बनाते समय इसमें सिर्फ अपने मनपसंद विषय को ही वरीयता न दें, बल्कि सभी विषयों पर बराबर ध्यान देने का प्रयास करें। कोशिश करें कि जिस विषय में आप स्वयं को कमजोर महसूस करते हैं, उस पर कुछ ज्यादा ध्यान केन्द्रित किया जाए। घर का वातावरण तथा अभिभावकों की सजगता भी परीक्षा में छात्रों की सफलता-असफलता का निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाती है। परीक्षाओं के दौरान मन लगाकर पढ़ाई करने के साथ-साथ स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है। बहुत से छात्र परीक्षाओं की तैयारी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें अपने खानपान की भी सुध नहीं रहती। ऐसे में जरूरी है कि अभिभावक उनके खानपान का पूरा ध्यान रखें क्योंकि अगर उनका स्वास्थ्य ही ठीक नहीं रहेगा तो वे परीक्षा की तैयारी भी सही ढंग से नहीं कर पाएंगे। बाहर के भोजन की बजाय उन्हें घर का बना खाना ही देना चाहिए। साथ ही फल इत्यादि पौष्टिक आहार भी देना चाहिए।
परीक्षा के दिनों में पर्याप्त नींद लेना श्रेयस्कर होता है। रात-रातभर जागकर पढ़ना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं। जिस दिन परीक्षा देनी है, उस रात तो पर्याप्त नींद लेना और भी जरूरी है वरना कहीं ऐसा न हो कि परीक्षा देते समय आपको आलस्य सताने लगे और आप चाहकर भी सही ढंग से परीक्षा न दे पाएं। मस्तिष्क की एकाग्रता बनाए रखने के लिए व्यायाम व योगाभ्यास करना बेहद जरूरी है।
परीक्षा के दिनों में छात्रों को सर्वाधिक जरूरत होती है अभिभावकों के मोरल सपोर्ट की। अतः अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को उचित मार्गदर्शन, सकारात्मक सहयोग व अपेक्षित समय देते हुए प्रोत्साहन भरे दृष्टिकोण से उनका मनोबल बढ़ाएं। घर का वातावरण शांत व स्वच्छ रखें।