दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 15 शहर

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मुंबई, 05 मार्च (हि.स.)। वैश्विक स्तर पर 20 शहर सबसे प्रदूषित शहरों की सूची शामिल किए गए हैं, जिसमें 15 शहर भारत के हैं। यह ग्रीनपीस और एयरविजुअल के साझे में किए गए सर्वे ‘2018 वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट’ में सामने आया है। यह रिपोर्ट वायु प्रदूषण पर आधारित है। इस रिपोर्ट में वर्ष 2018 में पीएम 2.5 के प्रदूषण स्तर के डाटा को सामने लाया गया है।
रिपोर्ट में शामिल 3000 शहरों के पीएम 2.5 डाटा को देखकर पता चलता है कि पूरी दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण की वजह से ख़तरा मंडरा रहा है। भारत का गुरुग्राम और ग़ाज़ियाबाद दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। वहीं फ़रीदाबाद, भिवाड़ी और नोएडा दुनिया के छह सबसे प्रदूषित शहरों में हैं। जबकि दिल्ली दुनिया की 11 वीं सबसे प्रदूषित शहर है। लखनऊ नौंवे स्थान पर है। एक ज़माने में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर रहा बिजिंग इस बार 122 वें स्थान पर चला गया है। हालांकि अभी भी बिजिंग विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता मानक से पांच गुना अधिक प्रदूषित है। ग्रीनपीस साऊथ ईस्ट एशिया के कार्यकारी निदेशक एब साना के मुताबिक वायु प्रदूषण हमारे भविष्य और जीविका को गंभीर ख़तरे में डाल रहा है। हालांकि हम इसे बदल सकते हैं। मानव मृत्यु के साथ-साथ 225 खरब डॉलर का घाटा मजदूरी के क्षेत्र में हो रहा है और उससे भी ज़्यादा स्वास्थ्य पर ख़र्च करना पड़ रहा है। वायु प्रदूषण का हमारे स्वास्थ्य और जेब दोनों पर प्रभाव पड़ रहा है। हम इस रिपोर्ट से चाहते हैं कि लोग वायु प्रदूषण के प्रभाव को जाने क्योंकि एक बार लोगों को प्रदूषण के कुप्रभाव का ज्ञान हो गया, तभी वे इसे रोकने के लिए आगे आएंगें। आइक्यूएयर के सीईओ फ़्रेंक हम्मस के अनुसार यह रिपोर्ट दुनिया भर में लगे हज़ारों वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन से ली गयी डाटा की समीक्षा के बाद तैयार की गई है। अब लोग अपने सेलफ़ोन से एयर विज्युअल प्लेटफ़ॉर्म से इस डाटा को देख सकते हैं। बहुत सारे शहरों की वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए बड़े स्तर पर निगरानी स्टेशन लगाने की ज़रूरत है।
फ्रेंक के अनुसार इससे पहले ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट ‘एयरोपोक्लिप्स 3’ में यह बात सामने आ चुकी है कि सबसे प्रदूषित शहरों की संख्या भारत में 241 हो चुकी है। जबकि शुरुआत में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्य योजना (एनसीएपी) के अंतर्गत सिर्फ़ 102 शहरों को ही चिन्हित किया गया था। ग्रीनपीस इंडिया की पूजारिनी सेन बताती हैं कि रिपोर्ट ने एकबार फिर साबित किया है कि वायु प्रदूषण से निपटने के हमारे प्रयास दुरुस्त नहीं हैं। हमें पहले से ज़्यादा प्रभावी क़दम उठाने की जरूरत है। अगर हम भारतीयों को साफ़ हवा में सांस लेते देखना चाहते हैं तो हमें एनसीएपी, जीआरएपी जैसी योजनाओं को और भी प्रभावी, व्यापक और क़ानूनी सीमाओं के अंदर ज़मीनी स्तर पर लागू करना होगा। साफ़ हवा मुमकिन है। बिजिंग का उदाहरण हमारे सामने है। हमारे पास वायु प्रदूषण से होनेवाले संभावित ख़तरे को पुख्ता करने के लिए पर्याप्त शोध और तथ्य मौजूद हैं। 


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