राजकमल प्रकाशन समूह में चार प्रतिष्ठित प्रकाशनों का हुआ विलय

0

नई दिल्ली, 27 फऱवरी (हि.स.)। देश के प्रतिष्ठित राजकमल प्रकाशन समूह में चार प्रकाशनों का विलय हो गया है जिनमें साहित्य भवन प्राइवेट लिमिटेड, पूर्वोदय, सारांश और रेमाधव प्रकाशन शामिल है। यह जानकारी राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने दी है।
इस विलय के बारे में अशोक महेश्वरी ने बताया कि अतीत के गर्त में जाती इन हजारों पुस्तकें जो श्रेष्ठतम भारतीय मनीषियों द्वारा रची गई हैं और पाठकों को प्रिय हैं, जिनमें भारतीय परंपरा और चिंतन की धारा एकत्र है उसे इस विलय के माध्यम से हम बाजार में बेहतर ढंग से वापस ले आएंगे। यह राजकमल प्रकाशन का पाठकों की दिशा में एक बड़ा कदम है।
वहीं साहित्य भवन के वर्तमान निदेशक अलंकार टण्डन ने विलय के बारे में बताया कि साहित्य भवन से लगभग सभी साहित्यिक विधाओं में एक हजार से अधिक दुर्लभ किताबें प्रकाशित हुई हैं। राजकमल प्रकाशन समूह हिन्दी में अग्रणी प्रकाशन संस्थान है। ऐसे समूह में साहित्य भवन प्रा.लि. का शामिल होना न केवल पब्लिकेशन इंडस्ट्री के लिए, बल्कि साहित्यिक दृष्टिकोण से भी एक मह्त्वपूर्ण परिघटना है। हम प्रसन्न हैं और समूह के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।
पूर्वोदय प्रकाशन के प्रदीप कुमार ने बताया कि हमारे लिए यह बहुत सम्मान की बात है कि पूर्वोदय प्रकाशन की विरासत अब राजकमल प्रकाशन समूह के प्रतिष्ठित हाथों में है। पूर्वोदय प्रकाशन ने कई दशकों से बेहतरीन एवं गुणवत्तापूर्ण साहित्य पाठकों के लिये उपलब्ध कराया है। उम्मीद है कि राजकमल प्रकाशन समूह में पूर्वोदय प्रकाशन का शामिल होना हिन्दी भाषा और साहित्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को और आगे बढ़ायेगा।
रेमाधव के सह-संस्थापक माधव भान ने बताया कि राजकमल प्रकाशन हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ प्रकाशन है। रेमाधव पब्लिकेशन्स का ऐसे संस्थान के साथ जुड़ना हमारे लिए गौरव की बात है। मुझे खुशी है कि रेमाधव की किताबें, अपनी परंपरा के अनुरूप शानदार प्रोडक्शन के साथ अब राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित होंगी।
सारांश प्रकाशन के संस्थापक मोहन गुप्त का कहना है कि सारांश एक सपने की फलश्रुति थी। मुझे इसकी गुणवत्ता की रक्षा की चिंता थी। किसी के आर्थिक हितों के लिए मैं इसके नाम का दुरूपयोग नहीं होने देना चाहता था। लेकिन अशोक महेश्वरी की कार्यशैली और उनके व्यवहार को काफी समय तक देखने के बाद भरोसा हुआ कि वे इस गौरवशाली संस्थान की परंपरा को न केवल सुरक्षित रखने बल्कि आगे बढ़ाने में भी समर्थ हैं। अब सारांश उनका है और मैं आश्वस्त हूं कि वे मेरे इस सपने को भी सुरक्षित रखेंगे।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *