सद्भाव के लिए काम करने वाला ही होगा विश्वगुरु : भैयाजी जोशी

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कुम्भ नगरी (प्रयागराज), 30 जनवरी (हि.स.)। कुम्भ मेला के परेड क्षेत्र स्थित गंगा पंडाल में आयोजित ‘सर्वसमावेशी संस्कृति कुम्भ’ को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने कहा कि यह आयोजन भविष्य के भारत की तैयारी है। जिस प्रकार से कुम्भ में किसी सम्प्रदाय या धर्म की सीमा टूट जाती है और यहां आने वाले श्रद्धालु एक होकर, ईश्वर की एक सत्ता की पूजा करते हैं, वैसे ही यह सर्वसमावेशी संस्कृति कुम्भ सभी पंथों, धर्मों और सम्प्रदायों को एक करेगा। सद्भाव के लिए कार्य करने वाला देश ही विश्वगुरु होगा।
उन्होंने बुधवार को यहां कहा कि कुम्भ का आयोजन किसी सम्प्रदाय विशेष से जुड़ा नहीं है। यह सनातन काल से किया जा रहा हिन्दू संस्कृति का प्रयास है। भिन्न-भिन्न पूजा और साधना पद्धतियों के बावजूद भी इन विविधताओं में एकात्मता का दर्शन होता है। दूसरी ओर कुछ दूषित शक्तियों ने इसे खंडित करने का प्रयास किया। अलगाव से भारत की सूरत बिगाड़ने की कोशिशें की, लेकिन उन्हें यह जानना होगा कि विभिन्न धर्म ग्रंथों और भारतीयता के प्रतीक 18 पुराणों और अन्य हिन्दू धर्मशास्त्रों का सार एक ही ईश्वर बताया गया है। यह सभी पंथ, सम्प्रदाय और धर्म के लोग भी अच्छी तरह जानते हैं।
उन्होंने ‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति’ की चर्चा करते हुए कहा कि सत्य एक है और वहां पहुंचने के अलग-अलग मार्ग हैं। चर-अचर-सृष्टि को एक बताते हुए उन्होंने कहा कि चैतन्य एक है। चैतन्य ही ईश्वर है और ब्रह्मांड में रहने वाला उस ईश्वर के अस्तित्व को महसूस करता है।
उन्होंने हिंदुत्व को ‘नर से नारायण तक चलने वाली यात्रा’ की खोज करने वाला धर्म बताते हुए भारतीय मनीषियों के विश्व कल्याण संबंधी कल्पना और प्रयास के अनेक उदाहरण दिए। हिन्दू संस्कृति में प्रकृति, नदी, पत्थर, प्राणियों, जानवरों, कीटों आदि की पूजा करने को सृष्टि कल्याण के प्रति सकारात्मक कदम बताया। विश्व को बाजार के रूप में देखने वालों को भारतीय मनीषियों के बताए परस्पर सहयोग रूपी मार्ग पर चलने का सुझाव भी दिया।


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