पटना में दलित उत्पीड़न मामले में आयी कमी, मगर 72 फीसदी मामले में कार्रवाई जीरो

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लापरवाही ऐसी की 2010 से 2016 की घटनाओं की  2019 में  दर्ज हुई  एफआईआर सैकड़ों ऐसे मामले हैं जिसमें चार्जशीट तक दाखिल नहीं हुई 19 दिसंबर, 2019 तक इस साल 610 मामले दर्ज किए गए हैंतीन वर्षों में 2175 मामले, सैकड़ो मामले में चार्जशीट न फाइनल रिपोर्ट 



पटना 27 दिसम्बर (हि.स ) दलित उत्पीड़न मामलो  में पटना में प्रतिवर्ष कमी आ रही है लेकिन 75 फीसदी मामलो  में कार्रवाई शून्य की स्थिति है, जो चिंतनीय है। वर्ष 2017 से 19 दिसंबर, 2019 तक 2175 मामले दर्ज किये गये हैं जिसमें सैकड़ों मामलो में पुलिस ने चार्जशीट तक दाखिल नहीं की है। सन् 2010-16 में दलित उत्पीड़न की हुई घटनाओं की एफआईआर 2019 में दर्ज की गई है। अब ऐसी स्थिति में खुद ही अंदाजा लगाया  जा सकता हैं कि इन मामले की  सही जांच हो पाएगी  या नहीं ।

पटना जिले में दलित उत्पीड़न के तीन वर्षों के आंकड़े को देखें तो प्रतिवर्ष दलित उत्पीड़न के मामलो में कमी आयी है। वर्ष 2017 में दलित उत्पीड़न के 872 मामले सिर्फ पटना में दर्ज किए गए हैं। वर्ष 2018 में 693 दलित उत्पीड़न के मामले में एफआईआर हुआ है। हलांकि इसी तरह एक वर्ष में 179 मामले में कमी आयी थी। वहीं पटना जिले में दलित उत्पीड़न मामले में 19 दिसंबर, 2019 में 610 मामले दर्ज किये गये। 2017 के आंकड़े के अनुसार मात्र दो वर्ष में एक चौथाई कमी आयी है।

वर्ष 2017-2019 में पटना जिले में कुल 2175 दलित उत्पीड़न के मामले दर्ज किए गए हैं। इन मामले में न तो कोई चार्जशीट दाखिल हुई है और न ही फाइनल रिपोर्ट लगाई गई । लगभग सभी थानो के ऐसे सैकड़ों मामले हैं जिसमें पुलिस ने दलित उत्पीड़न मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है।  वर्ष 2019 में दलित उत्पीड़न मामले के लंबित होने तक कुछ हद तक तो समझ में आती है लेकिन बीते वर्ष 2018 में दलित उत्पीड़न मामले में घोर स्थिलता या लापरवाही बरती गयी है। कुछ ऐसे ही हालात पटना जिले के तमाम थाने की है, जहां दलित उत्पीड़न के मामले दर्ज तो होते हैं लेकिन कार्रवाई शुन्य के बराबर होती है। थाना द्वारा केस दर्ज नहीं किये जाने की पुरानी शिकायतें रही हैं। वरीय पुलिस पदाधिकारियों व कोर्ट के संज्ञान के बाद कई दिनों बाद एफआईआर होती रही है। लेकिन दलित उत्पीड़न में पटना पुलिस की लापरवाही और बढ़कर है। वर्षों गुजर जाने के बाद  2019 में दर्जनों मामलों को दर्ज किया गया है। ऐसी स्थिति में इतना लंबा समय गुजरने की स्थिति में साक्ष्य, सबूत और गवाह का कमजोर होना स्वाभाविक हैं।

 


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