सीएए के समर्थन में आये देशभर के बुद्धिजीवी

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वक्तव्य में कहा है कि वे भारतीय संसद और सरकार को भारत के सभ्यतागत लोकाचार को ध्यान में रखते हुए अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए खड़े होने के लिए बधाई देते हैं।



नई दिल्ली, 21 दिसम्बर (हि.स.)। वरिष्ठ स्तंभकार और लेखक स्वप्नदास गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता,नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति  सुनैना सिंह समेत शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और शोधकर्ताओं के एक समूह ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का समर्थन करते हुए शनिवार को कहा कि यह अधिनियम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को शरण और नागरिकता प्रदान करने की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करता है।

इन शिक्षाविदों का कहना है कि यह बेहद दुखद है कि देश में जानबूझकर भय का माहौल बनाया जा रहा है, जिससे देश के कई हिस्सों में हिंसा की आशंका है। हम समाज के हर वर्ग से संयम बरतने और सांप्रदायिकता और अराजकतावाद के जाल में नहीं फंसने की अपील करते हैं।

शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और शोधकर्ताओं की ओर से एक वक्तव्य जारी कर कहा गया है कि 1950 के लियाकत-नेहरू समझौते की विफलता के बाद से विभिन्न नेताओं और राजनीतिक दलों जैसे कांग्रेस, माकपा आदि ने वैचारिक सोच से ऊपर उठकर शरण देने की मांग की है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले ज्यादातर धार्मिक अल्पसंख्यक दलित जातियों से हैं।

वक्तव्य में कहा है कि वे भारतीय संसद और सरकार को भारत के सभ्यतागत लोकाचार को ध्यान में रखते हुए अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए खड़े होने के लिए बधाई देते हैं।

बयान में कहा गया कि सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों की चिंताओं को सुना है और उसका उचित समाधान किया जा रहा है। हमारा मानना ​​है कि सीएए भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान के साथ पूर्णता सामंजस्य में है क्योंकि यह भारत की नागरिकता प्राप्त करने में किसी भी देश के किसी भी धार्मिक संप्रदाय को रोकता नहीं है, न ही यह किसी भी तरह से भारत में नागरिकता के मापदंड को बदलता है।

इन एक हजार से अधिक शिक्षाविद, वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसर हैं।  भारतीय और विदेशों में दर्जनों कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर, एम्स, आईआईएमएस और आईआईटी से समर्थन मिला है।

 


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