भाजपा-कांग्रेस में अगला अध्यक्ष कौन?
नई दिल्ली, 10 जून (हि.स.)। देश की आजादी के बाद पहली बार ऐसा मौका पड़ रहा है जब दोनों राष्ट्रीय पार्टियों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को राष्ट्रीय अध्यक्षों की एक साथ जरूरत है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल पहले ही पूरा हो चुका था लेकिन लोकसभा चुनाव की वजह से राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव स्थगित कर दिया गया था। दूसरी ओर 2014 और 2019 की हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इस्तीफे पर अड़े रहने के कारण पार्टी को नये अध्यक्ष चुनने की दरकार है।
दोनों पार्टियों की कहानी समझते हैं लेकिन पहले बात करते हैं बीजेपी के अध्यक्ष की। अमित शाह ने 2013 में पार्टी की कमान राष्ट्रीय के अध्यक्ष के रुप में संभाली थी। उस समय बीजेपी अपने पुनर्जन्म से लगभग 10 महीने दूर थी। अध्यक्ष बनने के बाद अपनी जिम्मेदारियों का झोला लेकर शाह ने अपना काम करना शुरु कर दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव आते-आते मोदी का नाम और शाह की रणनीति की इतनी गर्माहट बन गई थी कि इनके सिवाय पार्टी में और कोई दिखाई नहीं दे रहा था। फिर रिजल्ट भी ऐसा आया जिससे राजनीति के तमाम रिकार्ड तोड़कर बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बन गई। इसका श्रेय सीधे तौर पर अमित शाह को मिला और उनको पार्टी में ‘चाणक्य’ कहा जाने लगा। अब बात आ जाती है 2014 और 2019 के बीच के कार्यकाल की, जिसमें पार्टी में कई तरह के उतार-चढ़ाव आए। एक बार स्थिति ऐसी आई थी कि शाह को इस्तीफा देने की नौबत तक आ गई थी। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव हारने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी ऐसा लगा था कि जमीन पैरों से खिसकने लगी। लेकिन फिर से दोनों ने ऐसी रणनीति बनाई जिससे पार्टी ने अपने ही दम पर 2019 में अपना ही रिकार्ड तोड़ते हुए अकेले 303 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया। इसके बाद अमित शाह सबसे बड़े गेम चेंजर के रुप में उभरे। नतीजतन प्रधानमंत्री ने उन्हें अपने कैबिनेट में गृहमंत्री बनाया। लेकिन अब पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अमित शाह की जगह कौन लेगा? इतने बेस्ट परफोर्मेंस के बाद कौन है जो इस सीट को संभाल पाएगा। हालांकि शाह को पार्टी अध्यक्ष के रूप में एक और कार्यकाल मिल सकता था लेकिन पार्टी में ‘एक व्यक्ति,एक पद’ का फार्मूला लागू होने के कारण शाह को अध्यक्ष पद से हटना ही होगा। माना जा रहा है कि पार्टी के अध्यक्ष के लिए जेपी नड्डा, भूपेन्द्र यादव, कैलाश विजयवर्गीय और राम माधव में से किसी एक के नाम पर मुहर लग सकती है, क्योंकि इनके पास पार्टी को संभालने का अनुभव है। सूत्रों की मानें तो नड्डा का नाम दौड़ में सबसे आगे है। नड्डा के प्रभारी रहते बीजेपी ने यूपी में दोबारा वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद सब छोड़ चुके थे। मंत्रिमंडल में नड्डा का नाम शामिल न होने के बाद से ही उनके पार्टी अध्यक्ष बनने के कयास लगाए जा रहे हैं। नड्डा फिलहाल पार्टी की सबसे पावरफुल संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति के सचिव हैं। नड्डा 2010 से नवम्बर 2014 तक नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और अमित शाह के साथ पार्टी के महासचिव और उपाध्यक्ष के रूप में काम कर चुके हैं। नड्डा 1991 में पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी के पार्टी अध्यक्ष रहते हुए बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
इसके अलावा बीजेपी महासचिव भूपेन्द्र यादव को अमित शाह के बेहद करीबी हैं। इस चुनाव में बिहार और गुजरात के बतौर प्रभारी भूपेन्द्र पार्टी के दिग्गजों की आंख के तारे बन गए। अब बात करें 2019 के सबसे बड़े मैजिकमैन कैलाश विजयवर्गीय की, तो उनका कद पार्टी में बहुत तेजी से बढ़ा है। वह भी अध्यक्ष पद की कतार में हैं। कैलाश ने अपनी संगठन क्षमता के दम पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के गढ़ में बीजेपी को बड़ी कामयाबी दिलाई है। साथ ही 2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव को देखते हुए उनके नाम को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
जेपी नड्डा हों, राम माधव हों, भूपेंद्र यादव या फिर कैलाश विजयवर्गीय, चारों ने सांगठनिक क्षमता को लेकर खुद को साबित किया है। लेकिन अंतिम फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को ही लेना है। इसमें आरएसएस का निर्णय भी बहुत अहम रहेगा। राम माधव अभी पार्टी राष्ट्रीय महासचिव के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के पूर्ण सदस्य भी रह चुके हैं। वह लेखक और पत्रकार भी रहे हैं। पार्टी में इनकी गंभीरता हमेशा बरकरार रही है। अपनी लेखनी व मजबूत कार्यशैली से यह स्थिति को संभालने के लिए माने जाते हैं।
अब कांग्रेस के अध्यक्ष की बात करें तो पिछले लगभग सौ साल से अधिकांश समय गांधी परिवार से ही यहां अध्यक्ष बनता रहा है। हालांकि 37 वर्षों तक गैर गांधी भी अध्यक्ष रहा है। राहुल गांधी 2017 में अध्यक्ष बने थे। इससे पहले करीब दो दशक तक सोनिया गांधी अध्यक्ष रही थीं। बीजेपी ने इस बात को पकड़ते हुए इस मुद्दे को बहुत भुनाया था। बहरहाल, यह सब तो पार्टियों में चलता रहता है लेकिन अब अहम सवाल यह है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए लाइन में कौन हो सकता है क्योंकि राहुल गांधी तो इस्तीफे पर अड़े हैं। अब चुनौती यह है कि कांग्रेस के पास ऐसा कौन-सा चेहरा है जिस यह पद मिले। राहुल ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका विकल्प प्रियंका नहीं होंगी। देश की इस सबसे बड़ी पार्टी की विडंबना यह है कि गैर गांधी परिवार के अलावा मौका बहुत कम ही मिलता है। लेकिन इस समय पार्टी बड़े संकट में है क्योंकि राहुल का चेहरा चल नहीं रहा तो अब क्या किया जाए। यह प्रश्न पुराना नहीं है लेकिन अब कांग्रेस को एक बार फिर यह प्रथा तोड़नी चाहिए क्योंकि अब राजनीति का फॉर्मेट बिल्कुल बदल चुका है। इसलिए अब सही समय है कि गैर गांधी परिवार के मजबूत नेता को अध्यक्ष बनाया जाए जिससे इनके परिवार से यह बात भी हट जाएगी कि सिर्फ गांधी परिवार का ही इस पार्टी पर कब्जा है। जब परिस्थितियां साथ न दे तो स्थिति बदल देनी चाहिए। देश की सबसे पार्टी अंत की ओर जा रही है। नए जमाने की दुनिया में बदलते परिवेश में अब सब बदल रहे हैं। इसलिए कांग्रेस को भी नया व अलग करने की जरूरत है, वरना परिणाम सबके समक्ष है।
दरअसल खेल बिल्कुल स्पष्ट है कि यदि आप बदलाव नहीं करते तो सबसे पहले अपने ही आप से कटने लगते है। हालांकि राहुल गांधी इस्तीफे की जिद पर अड़े हैं लेकिन बात यही है कि इस पद के लिए अगला चेहरा कौन हो सकता है। कुछ लोगों को मानना है कि इस्तीफा देना एक ड्रामा है लेकिन हम इस बात को प्रमाणिकता के साथ इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि राजनीति में जितने मुंह, उतनी बात।