बरमेश्वर मुखिया की हत्या से सात साल पूर्व जल उठा था बिहार

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भोजपुर में सात साल पहले किसानों के बड़े नेता और राष्ट्रवादी किसान महासंघ के संस्थापक बरमेश्वर मुखिया की  एक जून 2012 को अहले सुबह हुई हत्या से बिहार में जबरदस्त गम और गुस्से का माहौल पैदा हो गया था और तब देखते ही देखते पूरे बिहार में आग लग गई थी।



आरा,02 जून (हि. स.)। भोजपुर में सात साल पहले किसानों के बड़े नेता और राष्ट्रवादी किसान महासंघ के संस्थापक बरमेश्वर मुखिया की  एक जून 2012 को अहले सुबह हुई हत्या से बिहार में जबरदस्त गम और गुस्से का माहौल पैदा हो गया था और तब देखते ही देखते पूरे बिहार में आग लग गई थी।
 रणवीर सेना के चर्चित संस्थापक ब्रह्मेश्वर सिंह उर्फ ‘मुखिया’ की आरा में एक जून 2012 को हत्या कर दी गई थी। ब्रहमेश्वर सिंह उर्फ बरमेश्वर मुखिया बिहार की जातिगत लड़ाइयों के इतिहास में एक जाना माना नाम है। भोजपुर ज़िले के खोपिरा गांव के रहने वाले मुखिया ऊंची जाति के ऐेसे व्यक्ति थे जिन्हें बड़े पैमाने पर निजी सेना के संस्थापक  के रुप में जाना जाता है। बिहार में नक्सली संगठनों और बडे़ किसानों के बीच खूनी लड़ाई के दौर में एक वक्त ऐसा आया जब बड़े किसानों ने मुखिया के नेतृत्व में अपनी एक सेना बनाई थी।
 सितंबर 1994 में बरमेश्वर मुखिया के नेतृत्व में जो संगठन बना उसे रणवीर सेना का नाम दिया गया। रणवीर सेना को सवर्णों में भूमिहार जाति का खुला समर्थन हासिल  था।साथ ही सवर्णों का भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन मिला था. यही कारण था कि रणवीर सेना ने नब्बे के दशक में भोजपुर सहित बिहार में उठ रहे नक्सली फन को कुचल डाला था। तब इस संगठन को भूमिहार किसानों की निजी सेना कहा जाता था। इस सेना की खूनी भिड़ंत अक्सर नक्सली संगठनों से हुआ करती थी। बाद में खून खराबा इतना बढ़ा कि राज्य सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था। नब्बे के दशक में रणवीर सेना और नक्सली संगठनों ने एक दूसरे के ख़िलाफ़  बड़ी कार्रवाइयां भी कीं।
 इसमें सबसे बड़ा लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार एक दिसंबर 1997 को हुआ था जिसमें 58 दलित मारे गए थे। इस घटना ने राष्ट्रीय स्तर पर बिहार के जातिगत तनाव को उजागर कर दिया था। पूरी दुनिया में इस घटना की निंदा हुई थी। इस घटना में भी मुखिया को मुख्य अभियुक्त माना गया था। ये नरसंहार 37 ऊंची जातियों की हत्या से जुड़ा था जिसे बारा नरसंहार कहा जाता है। बारा नक्सली संगठनों ने ऊंची जाति के 37 लोगों को मारा था जिसके जवाब में बाथे नरसंहार को अंजाम दिया गया। इसके अलावा मुखिया बथानी टोला नरसंहार में अभियुक्त थे जिसमें उन्हें गिरफ्तार किया गया। 29 अगस्त 2002 को पटना के एक्जीविशन रोड से उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उन पर पांच लाख रुपये का इनाम था और वे जेल में नौ साल रहे।
 दिलचस्प बात यह थी कि बथानी टोला मामले में सुनवाई के दौरान पुलिस ने कहा कि मुखिया फरार है जबकि मुखिया उस समय जेल में थे। इस मामले में मुखिया को फरार घोषित किए जाने के कारण सज़ा नहीं हुई और वो आठ जुलाई 2011 को रिहा हुए। बाद में बथानी टोला मामले में उन्हें हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी। 277 लोगों की हत्या से संबंधित 22 अलग- अलग नरसंहारों  में इन्हें अभियुक्त बनाया गया था। इनमें से बाद में 16 मामलों में उन्हें साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था। अन्य छह मामलों में ये जमानत पर थे। जब बरमेश्वर मुखिया जेल से छूटे तो उन्होंने 5 मई 2012 को अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के नाम से संस्था बनाई और ऐलान किया था कि वो किसानों के हित की लड़ाई लड़ते रहेंगे। जब मुखिया आरा  जेल में बंद थे तो इन्होंने बीबीसी से इंटरव्यू में कहा था कि किसानों पर हो रहे अत्याचार की लगातार अनदेखी हो रही है। मुखिया का कहना था कि उन्होंने किसानों को बचाने के लिए संगठन बनाया था लेकिन सरकार ने उन्हें निजी सेना चलाने वाला कहकर और उग्रवादी घोषित कर के प्रताड़ित किया है।
 उनके अनुसार किसानों को नक्सली संगठनों के हथियारों का सामना करना पड़ रहा था। बरमेश्वर मुखिया ने निजी सेना की स्थापना कर नब्बे के दशक में आइपीएफ जैसे संगठन को न सिर्फ चुनौती दी थी बल्कि किसानों और खासकर सवर्णों के खेत- खलिहान पर आइपीएफ के  लाल झंडा गाड़ कर कब्जा करने के मंसूबों पर न सिर्फ पानी फेर दिया था बल्कि किसानों को ताकत दी थी और उनके खेत खलिहान की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

 


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