गोपालगंज लोस क्षेत्र में सबसे ज्यादा वोटरों ने दबाया नोटा

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लोकसभा चुनाव में गोपालगंज सुरक्षित सीट पर सबसे ज्यादा संख्या 51,660 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। यहां कुल 5.04 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया है, जो देश में सबसे ज्यादा है और पिछले चुनाव के मुकाबले यहां नोटा का इस्तेमाल करने वाले मतदाताओं की संख्या पांच इसबार पांच गुना बढ़ गई।



गोपालगंज, 27 मई (हि.स.)। लोकसभा चुनाव में गोपालगंज सुरक्षित सीट पर सबसे ज्यादा संख्या 51,660 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। यहां कुल 5.04 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया है, जो देश में सबसे ज्यादा है और पिछले चुनाव के मुकाबले यहां नोटा का इस्तेमाल करने वाले मतदाताओं की संख्या पांच इसबार पांच गुना बढ़ गई।

इस चौंकाने वाले तथ्यों के बाद आने वाले दिनों में राजनीतिक पार्टियों को इसपर विचार करना पड़ेगा। गोपालगंज के लोग आने वाले दिनों में इसका कम प्रयोग करें।1906 मतदान केन्द्रों में से ऐसा कोई मतदान केंद्र नहीं था, जहां मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल नहीं किया। नोटा की संख्या हर राउंड में बढ़ती गई और शाम होते होते नोटा का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 51 हजार 660 पर पहुंच गई।
लोकसभा चुनाव में गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र से 13 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। जिसमें जदयू और राजद प्रत्याशियों को छोड़ दिया जाय तो 11 प्रत्याशियों को नोटा से भी कम वोट मिले। मतगणना के बाद यह राजनीतिक पार्टियों और मतदाताओं के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। 2009 के पहले गोपालगंज लोकसभा सामान्य सीट थी। सवर्ण बहुल क्षेत्र होने के कारण अधिकांश बार सवर्णों का इस सीट पर कब्जा रहा। 2009 के बाद सुरक्षित होने के बाद सवर्ण नेताओं की इस सीट से नजर हट गई।
लोगों की राय मानी जाय तो यहां से चुनाव जीते पूर्णवासी राम बगहा के थे। जीतने के बाद यहां के लोगों से उनका खास लगाव नहीं था। इसी प्रकार भाजपा के सांसद बने जनक राम पर विकास नहीं करने का आरोप लगा। लोगों को कहना है कि चुनाव जीतने के बाद नेता क्षेत्र का विकास नहीं, अपने विकास में लग जाते हैं। इसी वजह से मतदाताओं में नोटा के प्रयोग का चलन बढ़ रहा है। चुनाव आयोग के आंकड़े को देखा जाये तो 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में 5 लाख 80 हजार 964 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। इसबार यह संख्या बढ़कर 6 लाख 20 हजार 564 हो गई है।
लोगों की क्या है राय
70 वर्षीय योगेन्द्र सिंह बताते हैं कि एक बड़ा वर्ग नेताओं से दूर होता जा रहा है। वो चुनाव में हिस्सा तो ले रहे हैं लेकिन नेताओं पर उनका विश्वास नहीं है। चुनाव में झूठे वादे कर चुनाव जीतने के बाद वह जनता से दूर हो जाते हैं। 25 वर्षीय कुमार सत्यम ने बताया कि चुनाव आयोग ने देश के मतदाताओं को उम्मीदवारों के साथ नापसंदगी यानी नोटा का विकल्प देकर मतदाताओं के हित में अच्छा काम किया है। मतदाताओं को नापंसद उम्मीदवारों को नोटा के जरिये रिजेक्ट करने का अवसर मिला है।  सुयोग्य उम्मीदवार नज़र नहीं आता तो जनता क्या करें? 50 वर्षीय संजीव कुमार पिंकी ने कहा कि क्या हमारी व्यवस्था ऐसा उम्मीदवार नहीं दे सकती जो जनता के हित और कल्याण के लिये प्रतिबद्ध हो, किन्हीं परिस्थितियों में कोई भी सुयोग्य उम्मीदवार नज़र नहीं आता तो जनता क्या करे? इस परिस्थिति में नोटा ही एक विकल्प बचता है।

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