लखनऊ में भाजपा के सामने जीत का अंतर बढ़ाने की है चुनौती

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लखनऊ, 02 मई (हि.स.)। पांचवें चरण में होने वाले मतदान में भाजपा के लिए लखनऊ की सीट भी सबसे अहम है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सीट से यहां केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को टक्कर देने के लिए सपा-बसपा गठबंधन ने शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को और कांग्रेस ने प्रमोद कृष्णम को चुनाव मैदान में उतारकर लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है। इसलिए भाजपा के सामने सीट जीतने के साथ ही जीत का अंतर बढ़ाने की चुनौती है।
पिछली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां 10,33,883 वोट पड़े थे। इसमें राजनाथ सिंह ने 561106 वोट पाकर कांग्रेस उम्मीदवार डॉ. रीता बहुगुणा जोशी को 2,72,749 वोट से हराया था। इससे पहले 2009 के चुनाव में भी बीजेपी से चुनाव लड़ रहे लालजी टंडन के सामने कांग्रेस से डॉ. रीता बहुगुणा जोशी खड़ी थीं और लाल जी टंडन ने उन्हें 40,901 वोट से हराया था। 2009 के चुनाव में51 वोट पड़े थे। इस कारण कहा जा सकता है कि जीत का अंतर भी कम था। 2014 में हार के बाद डॉ. रीता बहुगुणा जोशी 2017 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गईं। वह इस समय में यूपी सरकार में मंत्री तथा इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से भाजपा की उम्मीदवार भी हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यहां डॉ. रीता बहुगुणा जोशी के समर्थकों का वोट भी केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के खाते में जाएगा। उधर, कांग्रेस उम्मीदवार प्रमोद कृष्णम संभल के रहने वाले और पूनम सिन्हा बिहार की रहने वाली हैं, जबकि राजनाथ सिंह चंदौली के रहने वाले हैं। इस तरह यहां सभी उम्मीदवार बाहरी हैं। यदि यहां की आबादी पर नजर डालें तो 71.1 प्रतिशत हिन्दू और 26.36 प्रतिशत मुस्लिम हैं। मुस्लिम में भी शिया की संख्या भी काफी है। लखनऊ सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने से मुस्लिम समुदाय के शिया वर्ग का झुकाव भाजपा की तरफ रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक हर्ष वर्धन त्रिपाठी ने बताया कि लखनऊ में पढ़े-लिखे, शहरी, सरकारी कर्मचारी, ब्राह्मण और कायस्थ के साथ ही पहाड़ी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। ये परंपरागत ढंग से भाजपा के मतदाता हैं। पिछले दो चुनावों में रीता बहुगुणा जोशी के यहां आने से पहाड़ी मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की तरफ हो गया था लेकिन अब पुन: उनके भाजपा की तरफ लौटने का अंदेशा है। इस कारण भाजपा के जीत का अंतर बढ़ने की पूरी संभावना है और भाजपा के लिए यही चुनौती भी है।


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