मतदान को लेकर बीरभूम में भय और तनाव का माहौल

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कोलकाता, 28 अप्रैल (हि.स.)। लोकसभा चुनाव के चौंथे चरण में सोमवार को पश्चिम बंगाल की
जिन 8 सीटों पर मतदान
होना है उनमें बीरभूम जिले की दो सीटें शामिल हैं। जिले में राजनीतिक हिंसा आम बात है और रोज ही विपक्षी कार्यकर्ताओं को सत्तारूढ़ तृणमूल के गुस्से का शिकार होना पड़ता है। झूठे मामलो में
फंसाये जाने की वजह से हजारों लोग आज भी जेलों में बंद हैैैं। अब जब 29 अप्रैल को यहां चौथे चरण का मतदान होना है तो तो बीरभूम जिले के मतदाता सबसे अधिक चिंतित और डरे हुए हैं। मतदान से एक दिन पहले इस बारे में पूछने पर बीरभूम से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार रामप्रसाद दास ने कहा कि 2018 पंचायत चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने जमकर हिंसा का सहारा लिया था लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीति के इतिहास में पंंचायत चुनाव एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुए हैं।
दास ने कहा, “पिछले साल का पंचायत चुनाव पश्चिम बंगाल की राजनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था और कोई भी इससे इन्कार नहीं कर सकता। यह टीएमसी द्वारा किया गया एक हिंसक इतिहास के रूप में दर्ज है। 2018 में सत्तारूढ़ पार्टी को अपनी जीत पर संदेह हो गया और उन्होंने विपक्ष को नामांकन दाखिल नहीं करने के लिए मजबूर किया।”
नाम न छापने की शर्त पर, बीरभूम जिले के एक निवासी ने कहा, “हम कभी भी अपने वोट को मिस नहीं करते हैं लेकिन हम डरते हैं। पंचायत चुनाव के दौरान बंगाल जिस स्थिति से गुज़रा वह भयभीत था, हालांकि, इस बार केंद्रीय बल की उपस्थिति निश्चित रूप से राहत देने वाली है।”
माकपा उम्मीदवार रामचंद्र डोम ने कहा, “लोग बंगाल में चिंतित हैं। 2018 में पंचायत चुनाव हुए, लोगों को संदेह है कि वे इस बार सफलतापूर्वक अपना वोट डाल पाएंगे या नहीं।”
उन्होंने दावा किया, “टीएमसी ने बंगाल में भाजपा को यहां लाने में भूमिका निभाई। बीरभूम जिले से वाम मोर्चे को रोकने के लिए उनके बीच एक गुप्त समझ है।”
सीपीएम उम्मीदवार ने कहा, “विपक्ष के उम्मीदवारों को पंचायत चुनाव के दौरान नामांकन दाखिल करने की अनुमति नहीं थी, जिसके परिणामस्वरूप तृणमूल के उम्मीदवार जीते थे … हालांकि, लोकसभा चुनावों में केंद्रीय बल की तैनाती के साथ, राजनीतिक दलों, साथ ही मतदाताओं को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद है।” 


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