वार्षिकी 2019 : हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का नहीं रहा कोई खेवनहार

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लोकसभा चुनाव में चारों सीटों पर रिकाॅर्ड मतों से मिली हार के बाद दो सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस चारों खानें चित हो गई।



शिमला, 29 दिसम्बर (हि.स.)। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए साल 2019 ठीक नहीं रहा। लोकसभा चुनाव में चारों सीटों पर रिकाॅर्ड मतों से मिली हार के बाद दो सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस चारों खानें चित हो गई। धर्मशाला सीट पर तो कांग्रेस उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए।
भाजपा उम्मीदवारों को एकतरफा जीत दिलाकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया तथा उनका सिसायी कद और बढ़ गया। धर्मशाला में ग्लोबल इन्वेस्टर मीट में पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयराम ठाकुर की पीठ थपथपाई तो राजधानी शिमला में सरकार के दो साल पूरा होने पर आयोजित रैली में अमित शाह ने भी जयराम सरकार के कामों की प्रशंसा की।
मई महीने में हुए लोकसभा चुनाव जयराम ठाकुर के लिए पहली परीक्षा थी। चारों सीटों पर उम्मीदवारों के चयन में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व से मुख्यमंत्री को फ्री हैंड मिला। मुख्यमंत्री ने कांगड़ा से तत्कालीन मंत्री किशन कपूर की टिकट की पैरवी की तो शिमला से विधायक सुरेश कश्यप पर दांव खेला। हमीरपुर और मंडी से निवर्तमान सांसद अनुराग ठाकुर और रामस्वरूप शर्मा फिर मैदान में उतरे।
सबसे रोचक मुकाबला मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र वाली मंडी सीट पर था। जहां जयराम सरकार में मंत्री रह चुके अनिल शर्मा के बेटे आश्रय शर्मा को कांग्रेस ने टिकट दे दिया। चूंकि बेटे के चुनाव में उतरने के बाद अनिल शर्मा ने भी हिमाचल सरकार से इस्तीफा दे दिया था, लिहाजा मुख्यमंत्री के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई। मंडी सहित चारों लोकसभा क्षेत्रों में जयराम ठाकुर ने जमकर रैलियां कीं और इसका परिणाम यह रहा कि भाजपा ने विशाल अंतर से क्लीन स्वीप कर कांग्रेस को धूल चटा दी।
इसके बाद धर्मशाला और पच्छाद विस उपचुनाव में भी मुख्यमंत्री का कुशल नेतृत्व देखने को मिला। दोनों सीटों पर मुख्यमंत्री ने युवाओं को टिकट दिया, जिसका भाजपा में खूब विरोध हुआ। भाजपा ने पच्छाद से रीना कश्यप और धर्मशाला से विशाल नैहरिया को उम्मीदवार बनाया। भाजपा में बगावत भी हुई लेकिन अंततः भाजपा उम्मीदवारों की जीत हुई और इसका श्रेय मुख्यमंत्री को मिला।
राजनीति के जानकारों ने लोकसभा के साथ-साथ विस उपचुनाव में कांग्रेस की हार का श्रेय कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व को भी दिया और कांग्रेस पार्टी की रणनीति पर भी सवाल खड़े हुए। कांगड़ा-चंबा संसदीय सीट से भाजपा उम्मीदवार किशन कपूर को देश में सबसे अधिक मार्जिन से जीत मिली।
चारों सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की हार का आंकड़ा तीन से साढ़े चार लाख तक रहा। प्रदेश कांग्रेस के कदावर नेता भी अपने इलाके में पार्टी को बढ़त नहीं दिला पाए। सभी 68 विस क्षेत्रों में भाजपा ने बढ़त बनाई। इसके बाद जब विधानसभा उपचुनाव की बारी आई तो कांग्रेस को राठौर से फिर करिश्मे की उम्मीद थी लेकिन इन चुनाव में कांग्रेस की हार ने नया रिकार्ड ही बना दिया। धर्मशाला में कांग्रेस उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया।
अहम बात यह भी रही कि कांग्रेस में साल भर गुटबाजी पूरे चरम पर रही। साल 2019 में राजनीतिक क्षेत्र में कांग्रेस कुछ ऐसा नहीं कर पाई, जिसके चलते कांग्रेस को इस साल को याद रखना चाहेगी। साल के शुरू में कांग्रेस आलाकमान ने छह साल से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बने सुखविंद्र सिंह सुक्खू को हटाकर कुलदीप सिंह राठौर को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया तो राठौर के समक्ष कांग्रेस को सशक्त करने की चुनौती थी।
अध्यक्ष बनने के बाद कुलदीप राठौर ने संगठन को जमीनी स्तर से दोबारा खड़ा करने की कवायद की लेकिन इसका फायदा पार्टी को नहीं दिला सके। कांग्रेस के एक गुट ने लगातार राठौर के खिलाफ मोर्चा खोले रखा। राठौर द्वारा बुलाई गई अधिकांश बैठकों से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का नदारद रहना खूब चर्चा में रहा। अहम बात यह रही कि नेताओं की गुटबाज़ी को देखते हुए हाईकमान ने प्रदेश कांग्रेस की समस्त कार्यकारिणी को ही भंग कर दिया।

 


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