असम : हिंदू बहुल गांव के डेढ़ हजार लोगों का नाम एनआरसी से बाहर, लोग परेशान

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हिंदू बहुल गांव में रहने वाले सभी लोग बंगाली हिंदू हैं। एनआरसी की अंतिम सूची में नाम नहीं आने पर गांव के व्यापारी रतन कर ने कहा कि हम बेहद परेशान हैं।



गुवाहाटी, 01 सितम्बर (हि.स.)। राजधानी से महज 43 किलोमीटर दूर पूब मलोईबाड़ी गांव के बाशिंदे राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण(एनआरसी) की अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद भयभीत हैं। इस गांव के लोगों को डर सता रहा है कि उन्हें राज्य सरकार कहीं डिटेंशन कैंप में न भेज दे। इस गांव के लगभग दो हजार लोगों ने एनआरसी में नाम दर्ज कराने के लिए आवेदन किया था, जिसमें से महज पांच सौ लोगों का नाम ही अंतिम सूची में शामिल हुआ है। इस गांव के 75 फीसदी लोगों का नाम एनआरसी में शामिल नहीं हुआ है।

पूब मलोईबाड़ी गांव की स्थिति को देखते हुए भाजपा विधायक शिलादित्य देव की बातें सही प्रतीत हो रही हैं। उन्होंने एनआरसी की अंतिम सूची प्रकाशित होने के बाद कहा है कि एक करोड़ अवैध बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का नाम शामिल हो गया है, जबकि बड़ी संख्या में साजिश के तहत हिंदुओं का नाम बाहर कर दिया गया है। इससे यह साबित होता है कि एनआरसी अद्यतन की प्रक्रिया में बड़ी लापरवाही बरती गई है।

हिंदू बहुल गांव में रहने वाले सभी लोग बंगाली हिंदू हैं। एनआरसी की अंतिम सूची में नाम नहीं आने पर गांव के व्यापारी रतन कर ने कहा कि हम बेहद परेशान हैं। जरूरी दस्तावेज दिए जाने के बाद भी हमारे गांव के ज्यादातर लोगों का नाम एनआरसी की अंतिम सूची में शामिल नहीं हुआ है। दैनिक मजदूरी करने वाले विश्वजीत सरकार ने कहा कि हमारे पूर्वज बांग्लादेश से वर्ष 1962 में आए थे। हमारी दो पीढ़ियों की मौत भारत में रहते हुई है। अब हम भी मरने की कगार पर हैं। ऐसे में हमें बांग्लादेशी साबित किया जा रहा है। कई पीढ़ी से हम इस गांव में रह रहे हैं। हमने जो दस्तावेज दिए थे वे दस्तावेज पर्याप्त थे, लेकिन न जाने किस वजह से नाम नहीं आया। मुझे तो अब ऐसा महसूस हो रहा है कि हिंदू बंगाली होना ही महापाप है। अगर हम दूसरी जाति या धर्म के होते तो शायद हमारा नाम एनआरसी की अंतिम सूची में आसानी से शामिल हो जाता।

इस गांव के शिक्षक हेमंत नंदी ने कहा कि बड़े दुख की बात है कि एनआरसी की अंतिम सूची में बड़ी संख्या में हिन्दु समुदाय के लोगों का नाम नहीं आया है। इसमें ऐसे भी लोग हैं जो सरकारी नौकरी कर रहे हैं। मैं भी सरकारी शिक्षक हूं। इस गांव के लोग बहुत गरीब हैं। अब लोगों को यह डर सता रहा है कि न जाने कितने वर्ष कोर्ट के चक्कर काटने पड़ेंगे।

गांव के चिकित्सक हेमंत बोस ने कहा कि जिस दस्तावेज को हमने कामरूप (मेट्रो) जिले में जमा किया था वही दस्तावेज हमारे रिश्तेदारों ने मोरीगांव, नगांव के अलावा अन्य जिलों में जमा कराया था। उन स्थानों पर एक ही दस्तावेज के आधार पर लोगों का नाम एनआरसी की अंतिम सूची में आ गया है, लेकिन न जाने किस वजह से कामरूप (मेट्रो) जिले में नाम शामिल नहीं किया गया।

सरकारी कर्मचारी प्रमोद कर ने कहा कि हमारे पास खुद की जमीन है, जिसके अहम दस्तावेज हमारे पास हैं। मैं सरकारी नौकरी कर रहा हूं, लेकिन अब एनआरसी की अंतिम सूची में नाम नहीं आने से भारतीय कहने पर खुद को शर्म महसूस हो रही है। भारत में रहकर अब हम बांग्लादेशी नागरिक हो गए हैं जो दुख की बात है।

इस संबंध में गांव की आशाकर्मी पार्वती कर ने कहा कि हमारे घर के ज्यादातर परिवारों का नाम नहीं आया है। इसको लेकर हम मानसिक रूप से परेशान हैं। इसी गांव की पिंकी दास ने कहा कि एक ही दस्तावेज हम लोगों ने अपने रिश्तेदारों को दिया था, जिनका नाम एनआरसी की अंतिम सूची में आ गया, लेकिन हमारे परिवार के ज्यादातर लोगों का नाम नहीं आया है। इस गांव की मीना दत्त और रीना कर ने कहा कि अब हमें डर सता रहा है कि एनआरसी की अंतिम सूची में नाम नहीं आने के बाद राज्य सरकार हमें डिटेंशन कैंप में ना भेज दे।

इस गांव के ज्यादातर लोगों को कहना है कि एनआरसी की अंतिम सूची तैयार करने में एनआरसी कर्मचारियों ने घोर लापरवाही बरती है। क्योंकि, एक ही दस्तावेज अन्य जिलों में वैध माना गया है, तो कामरूप (मेट्रो) जिले में वह दस्तावेज अवैध कैसे हो गया। इसकी जांच होनी चाहिए। इस तरह की लापरवाही में एनआरसी के जो कोई भी कर्मचारी शामिल हैं, राज्य सरकार उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करे।

गांव के ज्यादातर लोगों का कहना है कि एनआरसी की अंतिम सूची को सही तरीके से तैयार नहीं किया गया है। बहुत भारतीय नागरिकों का नाम शामिल नहीं किया गया है। गांव वालों को कहना है कि अगर इस समस्या का समाधान जल्द नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में जोरदार आंदोलन शुरू किया जाएगा।

 

 


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