12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती
नई दिल्ली, 04 जून (हि.स.)। 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाओं के दोषियों को फांसी की सजा का केंद्र सरकार द्वारा कानून बनाने को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। कार्यकारी चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस हरिशंकर की बेंच ने केंद्र सरकार को 31 जुलाई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। याचिका अपने आप वुमन वर्ल्डवाइड नामक एनजीओ ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि रेप की बढ़ती घटनाओं से उपजे जनाक्रोश को ध्यान में रखते हुए सरकार ने कानून में बदलाव किया है । कानून में संशोधन रेप पीड़ितों के पूर्वाग्रह को दर्शाता है और खासकर रेप के शिकार लड़कों के प्रति भेदभाव करता है। याचिका में कहा गया है कि रेप की शिकार पीड़िताओं को उम्र के आधार पर कई वर्गों में बांटा गया है । संशोधन के लिए कोई शोध नहीं किया गया है । याचिका में कहा गया है कि 2013 में गठित जस्टिस वर्मा कमीशन की रिपोर्ट को भी नजरअंदाज किया गया है। जस्टिस वर्मा कमीशन ने रेप के आरोपियों को फांसी की सजा देने से साफ इनकार किया है। पिछली 21 अप्रैल को केंद्र सरकार ने 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ रेप के दोषियों को मौत की सजा देने के प्रावधान पर अध्यादेश जारी किया। इस अध्यादेश पर राष्ट्रपति ने अपनी मुहर भी लगा दी। 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से रेप के मामले में न्यूनतम 20 वर्ष कारावास और अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है। ऐसी बच्चियों से गैंगरेप के मामले में न्यूनतम सजा उम्रकैद और अधिकतम फांसी होगी। अब तक 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप के मामले में अधिकतम सजा उम्रकैद थी। अध्यादेश के प्रावधानों के तहत अब 16 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से रेप के मामले में अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। इस उम्र की लड़कियों से बलात्कार के मामले में न्यूनतम सजा 10 वर्ष कैद से बढ़ाकर 20 वर्ष की गई है। ऐसे मामलों में अधिकतम उम्रकैद होगी, यानी स्वाभाविक मौत तक कैद। 16 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से गैंगरेप में न्यूनतम ताउम्र कैद का प्रावधान है। ऐसे मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर फैसले से 15 दिन पहले कोर्ट अभियोजक और पीड़िता के प्रतिनिधि को नोटिस भेजेगा। बलात्कार के सभी मामलों की जांच और ट्रायल फास्ट ट्रैक होगा। दो महीने में जांच और दो महीने में ट्रायल पूरा करना होगा। साथ ही रेप के मामलों में अपील का निपटारा छह महीने में करना होगा। इसके अलावा अभियोजकों के नए पदों का सृजन किया जाएगा और सभी थानों व अस्पतालों को विशेष फॉरेंसिक किट दी जाएगी। हर राज्य में रेप के मामलों से जुड़ी जांच के लिए अलग फॉरेंसिक लैब शुरू की जाएंगी।