110,000 लोग प्रभावित फ्रांस के परमाणु परीक्षण के प्रदूषण से
पेरिस, 10 मार्च (हि.स.)। फ्रांस सरकार द्वारा 1960 से 1990 के दशक तक प्रशांत महासागर में किए परमाणु परीक्षणों के वास्तविक दुष्परिणामों को दुनिया से छिपाया गया है। यह खुलासा फ्रांस के सैन्य दस्तावेजों की गहन पड़ताल और लोगों से बातचीत के बाद सामने आया है। जिसमें पता चला है कि फ्रेंच पोलिनेशिया के 110,000 लोग रेडिएशन से प्रभावित हुए है। जो उस समय की पूरी आबादी का हिस्सा रहे होंगे।
फ्रांस के पोलिनेशिया सहित सैकड़ों द्वीपों पर पिछले 30 वर्षों में दर्जनों परमाणु परीक्षण किये गये थे। पिछले दो साल के शोध में फ्रांसीसी सेना द्वारा जारी 2000 दस्तावेजों का विश्लेषण किया गया जिसमें 1966 से 1974 के बीच किए परमाणु परीक्षणों के सबसे दूषित प्रभाव का पता लगाया गया। यह शोध फ्रांसीसी समाचार वेबसाइट डिस्कोल, प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश फर्म इंटरप्रिट के संयुक्त संयोजन में किया गया।
41वां परमाणु परीक्षण 17 जुलाई 1974 को मुरुरोआ एटोल में हुआ
मुरुरोआ एटोल में 41 वां परमाणु परीक्षण 17 जुलाई 1974 को हुआ था, सेंटोर कोड नाम वाले इस परीक्षण के बाद परमाणु बादल ने भयावह तस्वीर पेश की। परीक्षण के 42 घंटे के बाद तिहाती पर्यावरण और विंडवर्ड द्वीप समूह के आसपास रेडिएशन का दुष्प्रभाव सामने आया था। रिपोर्ट के अनुसार इसके विकिरण फैल गया था। इससे आसपास के 110,000 लोगों और तिहाती मुख्य शहर के 80,000 हजार आबादी प्रभावित हुई थी।
वर्ष 2006 की फ्रांस परमाणु ऊर्जा आयोग (सीईए) की रिपोर्ट के अनुसार परमाणु परीक्षणों में विकिरण दो से 10 गुना अधिक था।
सीईए के शोध में पता चला है यहां का पेयजल और वर्षाजल प्रदूषित है। विकिरण की गणना कभी नहीं की गई। कैथरीन सेरदा के अनुसार परीक्षण के समय वो छोटी थीं। उनके परिवार के आठ सदस्यों को कैंसर हुआ जो किसी तरह से सामान्य बात नहीं है। हमारे यहां इतना कैंसर क्यों है।
सीईए ने उन्हीं लोगों को अध्ययन में शामिल किया है जो लोग सरकारी मुआवजे के पात्र थे। परमाणु विकिरण से पीड़ित क्षतिपूर्ति समिति के प्रमुख एलेन क्रिसनाट ने मीडिया को बताया कि ताहित क्षेत्र में पहले ही प्रदूषण की बात मान ली गई थी और बड़ी संख्या में मुआवजे के लिए सहमति बन गई है। मुआवजे के लिए सहमति बनी थी, लेकिन अभीतक सिर्फ 63 लोगों को ही मुआवजा मिला है।