1857 की क्रांति 10 मई पर विशेष: मेरठ से गूंजा था ‘दिल्ली चलो’ का नारा

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मेरठ, 09 मई (हि.स.)। 10 मई 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम। अंग्रेजों के अत्याचार और उत्पीड़न के खिलाफ पहला स्वर मेरठ की क्रांतिधरा से उठा। 10 मई की शाम को अंग्रेजी सेना के भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और विक्टोरिया पार्क जेल पर हमला करके अपने 85 साथियों को मुक्त करा लिया। इसके बाद 11 मई को मेरठ से ही ‘दिल्ली चलो’ का नारा बुलंद हुआ। आजादी की यह छोटी की चिंगारी धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गई।
वरिष्ठ इतिहासकार डाॅ. कृष्णकांत शर्मा का कहना है कि 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, बल्कि इसकी तैयारी लंबे समय से चल रही थी। देश के प्रमुख छावनियों में जा-जाकर इसका प्रचार गुप्त रूप से किया जा रहा था। मेरठ छावनी क्षेत्र में आकर एक साधु कमल का फूल और चपाती के जरिए यहां के सैनिकों को क्रांति का संदेश देते थे। इसका उल्लेख मेरठ के ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी है। धीरे-धीरे अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय सैनिकों में आक्रोश पनपता चला गया।
गाय-सूअर की चर्बी लगे कारतूस से भड़के सैनिक
क्रांति की तैयारियां तो धीरे-धीरे चल ही रही थी। उसे भड़काने में अंग्रेजों के बनाए एक कानून ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजों ने गाय व सूअर की चर्बी से बना नया कारतूस लागू किया। इस कारतूस को चलाने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था। इससे अंग्रेजों की देशी पलटन के हिंदू व मुस्लिम सैनिकों की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंची और उन्होंने इन कारतूसों को मुंह से खोलने से इनकार कर दिया। इस पर अंग्रेजों ने इन 85 सैनिकों को बंदी बना लिया और नौ मई को उनका कोर्ट मार्शल करके जेल में बंद कर दिया। इससे भारतीय सैनिकों में आक्रोश फैलता चला गया।
नगर वधुओं ने सैनिकों पर तंज कसे
महात्मा बुद्ध राजकीय संग्रहालय गोरखपुर के उप निदेशक व इतिहासकार डाॅ. मनोज गौतम का कहना है कि 85 सैनिकों के कोर्ट मार्शल की खबर तेजी से पूरे मेरठ शहर में फैल गई। जिस समय भारतीय सैनिक बाजार में घूम रहे थे तो वहां की नगर वधुओं ने इन सैनिकों पर तंज कसे। नगर वधुओं ने सैनिकों के पौरुष को ललकारते हुए कहा कि उनके साथियों ने तो अंग्रेजों का विरोध किया, लेकिन वह बेशर्मी से बाजार में घूम रहे हैं। इससे भारतीय सैनिक आक्रोश से भर गए और उन्होंने दस मई को क्रांति का आगाज कर दिया।
सबसे पहले सैनिकों को मुक्त कराया
देशी पलटन के भारतीय सैनिकों ने दस मई को सबसे पहले विक्टोरिया जेल पर हमला करके अपने 85 सैनिकों को मुक्त कराया। इसके बाद केसरगंज की पुरानी जेल पर हमला करके 700 से ज्यादा भारतीय बंदियों को भी मुक्त कराया गया। यह बंदी भी भारतीय सैनिकों के साथ मिल गए। धीरे-धीरे पूरे मेरठ में क्रांति का समाचार फैल गया और ग्रामीण भी उनके साथ आकर मिल गए। भारतीय सैनिकों ने सेंट जोंस चर्च पर हमला कर दिया। रजबन, सदर बाजार, लालकुर्ती क्षेत्रों में 50 से ज्यादा अंग्रेजों को मार दिया गया।
‘दिल्ली चलो’ का नारा देकर कूच कर गए सैनिक
क्रान्ति का आगाज होते ही मेरठ में सैनिकों ने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया और यमुना के रास्ते दिल्ली के लिए कूच कर गए। रास्ते में उनके साथ किसान, मजदूर आदि वर्गों के लोग भी मिलते चले गए और उन्होंने दिल्ली के लाल किले पर कब्जा कर लिया। वहां पर अंग्रेजों के शस्त्रागाार पर भी भारतीयों ने कब्जा कर लिया। इसके बाद क्रांति की चिंगारी पूरे देश में फैलती चली गई।
क्रांति का जनक उपेक्षा का शिकार
दस मई 1857 को मेरठ से क्रांति का आगाज होने के बाद भी यह क्षेत्र पूरी तरह से सरकारी उपेक्षा का शिकार है। पूरे विश्व में मेरठ की क्रांतिधरा का नाम होने के बाद भी स्थानीय स्तर पर क्रांति से जुड़े स्थलों को संवारने का काम नहीं किया गया। कई बार योजनाएं बनाई गई, लेकिन सरकारी फाइलों में ही कैद होकर रह गई। मेरठ में शहीद स्मारक पर लाइट एंड साउंड कार्यक्रम करने का प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो पाया। मेरठ कमिश्नर का मेरठ के ऐतिहासिक स्थलों से लोगों को रूबरू कराने का हैरिटेज वाॅकिंग प्लाजा का प्लान भी अधूरा ही रह गया।
लाॅकडाउन के कारण नहीं होंगे कार्यक्रम
लाॅकडाउन के कारण इस बार प्रशासन और सामाजिक संगठनों द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रम नहीं होंगे। शहीद धन सिंह कोतवाल संस्थान की ओर से क्रांति दिवस पर वेबिनार के जरिए शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाएगी।
 इसी तरह से एमएम पीजी काॅलेज मोदीनगर के इतिहास विभाग द्वारा भी एक परिचर्चा का आयोजन होगा। जिसमें कई इतिहासकार भाग लेंगे। स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय के अध्यक्ष पतरु मौर्य ने अनुसार, मेरठ के इतिहास को लेकर एक शाॅर्ट वीडियो बनाई जा रही है। इसमें मेरठ का गौरवशाली इतिहास, क्रांति की घटनाएं, शहीदों का बलिदान आदि शामिल होगा।

 


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