सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को शीर्ष कोर्ट की हरी झंडी
नई दिल्ली, 26 सितम्बर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में कोर्ट सबके लिए खुला रखने की व्यवस्था है। अब लोगों को कोर्ट आने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करने के लिए ज़रूरी नियम बनाने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे न्यायपालिका की जवाबदेही बढ़ेगी। इससे लोगों को मामलों की सुनवाई के बारे में फर्स्ट हैंड इंफॉर्मेशन मिलेगी। पिछले 24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था ।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुझाव दिया था कि शुरुआत चीफ जस्टिस की कोर्ट में सुने जाने वाले अहम मामलों से की जाए। इस पर कोर्ट ने कहा था कि अगर सब देखेंगे तो ज़रूरी है कि वकील कोर्ट में अनुशासन बनाए रखें । तब वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि वकीलों को अनुशासन बनाए रखने के लिए दिशानिर्देश जारी करना चाहिए।
सुनवाई के दौरान इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का एक चैनल होना चाहिए ताकि इसकी ऑथेंसिटी बनी रहे। चीफ जस्टिस ने पूछा था कि क्या हम बार लाइब्रेरी में कुछ रख सकते हैं ताकि लोग सीधे देख सकें। तब अटार्नी जनरल ने कहा था कि ये लाउंज में किया जा सकता है लेकिन पत्रकारों को भी जगह देनी होगी। तब इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि कई स्थानों पर मल्टी स्क्रीन लगाना हो सकता है।
अटार्नी जनरल ने कहा था कि कोर्ट को ये फैसला करना होगा कि कौन मामला राष्ट्रीय महत्व का है और कौन नहीं लेकिन वैवाहिक मामलों और बच्चों से जुड़े मसलों का सीधा प्रसारण नहीं होना चाहिए। सीधा प्रसारण को दोबारा दिखाना या प्रकाशित नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा था कि ब्रिटेन की कोर्ट की कार्यवाही का प्रसारण 70 सेकंड देर से किया जाता है ताकि अगर कोर्ट जिस भाग को नहीं दिखाना चाहते उसे रोक दे। उन्होंने कहा था कि कैमरा वकीलों के दस्तावेजों पर फोकस नहीं करें।
23 जुलाई को अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को सुझाव दिया था कि सभी मामलों के लाइव प्रसारण की अनुमति की बजाय कोर्ट को केवल संवैधानिक मामलों के लाइव प्रसारण की अनुमति देनी चाहिए। इसकी शुरुआत कोर्ट नंबर एक यानी चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच से ही करनी चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने सुझाव दिया था कि कोर्ट रूम में भीड़ न हो, इसके लिए कार्यवाही का लाइव प्रसारण दिखाने के लिए, कैंटीन, हॉल और कोर्ट की अन्य सार्वजनिक जगहों पर बड़ी स्क्रीन लगवा दी जाएं।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि कोर्ट को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लाइव प्रसारण का न तो व्यावसायिक इस्तेमाल हो और न ही उसका दोबारा इस्तेमाल किया जा सके, क्योंकि आजकल सोशल मीडिया की वजह से चीजें ज्यादा जल्दी ओर गलत दिशा में वायरल होती हैं। वकील विराग गुप्ता ने कहा था कि कोर्ट में सभी जनहित याचिकाओं और महत्वपूर्ण मामलों की भी वीडियो रिकॉर्डिंग होनी चाहिए।
पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने की अनुमति देने की मांग का समर्थन किया था। सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल ने कहा था कि संवेदनशील मामलों की सुनवाई के सीधा प्रसारण पर कोर्ट कभी भी रोक लगा सकती है। तब कोर्ट ने अटार्नी जनरल और याचिकाकर्ता से कहा था कि वे इस मामले में अपने सुझाव हमें दें। कोर्ट का ये मानना था कि सीधा प्रसारण से पक्षकारों को अपने केस का स्टेटस जानने में मदद मिलेगी। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि इससे लॉ के छात्रों को भी काफी मदद मिलेगी।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह और मैथ्यू नेदुम्पारा ने अलग-अलग याचिका दायर कर मांग की है कि राष्ट्रीय महत्व वाले मसलों की सुनवाई के सीधे प्रसारण से लोग कोर्ट की कार्यवाही सीधे देख सकेंगे और लोगों को जानकारी के लिए दूसरे स्रोत पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा । उन्होंने इसे न्याय पाने के अधिकार का एक हिस्सा बताया । उन्होंने ट्रिपल तलाक का उदाहरण देते हुए कहा है कि रियल टाइम में प्रसारण होने से कोर्ट में रखे गए पक्षों पर लोग अपनी राय बना सकेंगे ।
अक्सर ऐसा होता है कि लोग तीसरे पक्ष द्वारा दी गई सूचना के आधार पर अपनी राय बनाते हैं । अगर सुप्रीम कोर्ट अहम मसलों का सीधा प्रसारण करने की अनुमति देता है तो लोगों को फर्स्ट हैंड इंफॉर्मेशन उपलब्ध होगा। याचिका में कहा गया है कि सरकार जब तक इसके लिए धन मुहैया कराये तब तक कोर्ट सुनवाई का वीडियो यू-ट्यूब चैनल पर भी अपलोड कर सकता है ।