सीजेआई पर यौन प्रताड़ना के आरोप की आपात सुनवाई को लेकर वकीलों के संगठन बंटे

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नई दिल्ली, 22 अप्रैल (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व कर्मचारी की ओर से चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ यौन प्रताड़ना का आरोप लगाने के मामले पर पिछले 20 अप्रैल को हुई आपात सुनवाई के बाद वकीलों के कुछ संगठन ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई करने के फैसले का विरोध किया है तो कुछ ने चीफ जस्टिस के फैसले पर सहमति जताई है।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट के ताजा नोटिफिकेशन के मुताबिक 23 अप्रैल से चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच नहीं बैठेगी। हालांकि चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच रेगुलर मामलों की सुनवाई करेगी।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने चीफ जस्टिस के खिलाफ लगाए गए आरोपों की आलोचना की है। बीसीआई ने कहा कि चीफ जस्टिस पर आरोप लगाकर उनकी (चीफ जस्टिस की) और हमारे सर्वोच्च न्यायपालिका की छवि को खराब करने की कोशिश की गई है। इसके खिलाफ कुछ वकीलों ने बीसीआई को खुला पत्र लिखकर कहा है कि बीसीआई सभी वकीलों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। उन्होंने कहा है कि देश का कानून ही सर्वोच्च है। उसके ऊपर सुप्रीम कोर्ट के जज भी नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट इंप्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पारित कर चीफ जस्टिस के खिलाफ लगे आरोपों की आलोचना की है। सुप्रीम कोर्ट इंप्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन ने कहा है कि चीफ जस्टिस के खिलाफ लगे आरोप झूठे, बेबुनियाद और तथ्यों से परे हैं। एसोसिएशन ने न्यायपालिका को निशाना बनाने वाली बाहरी ताकतों की कोशिश के खिलाफ एकजुटता व्यक्त की है।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन(एससीबीए) ने अपनी बैठक कर इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि चीफ जस्टिस की ओर से स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई करना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। 20 अप्रैल को सुनवाई के दौरान एससीबीए के अध्यक्ष राकेश कुमार खन्ना ने चीफ जस्टिस के खिलाफ आरोपों को बेबुनियाद बताया था। उसके बाद एससीबीए का ये बयान उसके विपरीत है। एससीबीए ने सुप्रीम कोर्ट की फुल कोर्ट से अपील की है कि वे इस मामले में वे सभी कानूनी कदम उठाएं, जो जरूरी हो सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन ने 20 अप्रैल को आपात सुनवाई पर ऐतराज जताया है। एसोसिएशन ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी की ओर से लगाए गए आरोपों पर कानून के मुताबिक कार्रवाई होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से इस मामले को बिना किसी जांच के कार्रवाई शुरू की है, वह कानून-सम्मत नहीं है। एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट के फुल कोर्ट की ओर से इस मामले की पारदर्शी जांच के लिए कमेटी के गठन की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि पिछले 20 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी की ओर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ यौन प्रताड़ना की खबर प्रकाशित होने से बाद सुप्रीम कोर्ट ने अवकाश के दिन भी उस मामले पर सुनवाई की थी। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।
बेंच के दूसरे सदस्य जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस संजीव खन्ना ने मीडिया से जिम्मेदारी पूर्वक काम करने को कहा था। कोर्ट ने कहा कि हम मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक नहीं लगा रहे हैं लेकिन उम्मीद करते हैं कि मीडिया तथ्यों को जांचे बगैर इस तरह न्यायापालिका को निशाना बनाने वाले फर्जी आरोप नहीं छापेगा। कोर्ट ने कहा कि हम मीडिया पर छोड़ते हैं कि वे न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बरकरार रखें। हम कोई न्यायिक आदेश नहीं पारित कर रहे हैं।


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