राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। हाल ही में मतदान बाद के जो सर्वेक्षणों में संकेत मिले हैं उससे यही लग रहा है कि देश में एक बार फिर से नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने जा रही है। दूसरी तरफ इस बात को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि पंजाब कांग्रेस में घमासान प्रारंभ हो गया है। यह घमासान भारत में पाकिस्तान प्रेमी के रुप में बदनाम हो चुके पंजाब सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की ओर से प्रारंभ हुआ है। हालांकि इस बार न तो उनके द्वारा पाकिस्तान के प्रति प्रेम का प्रदर्शन किया गया है और न ही कोई अनाप-शनाप बयान दिया गया है। इस बार बड़बोले नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस की पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह को आड़े हाथ लिया है। उनका कहना है कि मेरी पत्नी झूठ नहीं बोलती। उसे मुख्यमंत्री अमरिन्दर के कारण ही कांग्रेस के टिकट से वंचित किया गया है। शायद इसीलिए कांग्रेस के स्टार प्रचारक रहे सिद्धू इस बार पंजाब में पार्टी के प्रचार कार्य से भी दूर रहे। उन्होंने प्रियंका की मौजूदगी में महज एक चुनावी सभा को संबोधित किया था। ज्ञात रहे कि नवजोत कौर सिद्धू ने कहा था कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेस की पंजाब प्रभारी आशा कुमारी की वजह से उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला। इसके बाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने यह कहकर आग में घी डालने का प्रयास किया कि नवजोत सिंह सिद्धू मुझे हटाकर पंजाब का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। कैप्टन की बात का वहां के कई मंत्रियों ने भी समर्थन किया है। यहां यह स्पष्ट किया जा सकता है कि जब नवजोत सिंह सिद्धू भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे, उसी समय से उनके मन में यह सपना उफान मारने लगा था कि वे भी पंजाब के मुख्यमंत्री बन सकते हैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने सिद्धू के इसी सपने को उजागर कर दिया। पंजाब कांग्रेस में अभी तो राजनीतिक स्वार्थ मात्र ही सामने आया है, लेकिन जब बात निकली है तो दूर तक जाएगी। वैसे भी पंजाब कांग्रेस में कैप्टन अमरिन्दर सिंह काफी ताकतवर माने जाते हैं। चर्चा तो यहां तक है कि वे पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की बात भी नहीं मानते। राहुल अपनी मां सोनिया गांधी की मार्फत अपनी बात कैप्टन तक पहुंचाते हैं। राजीव गांधी के दोस्त होने की वजह से कैप्टन सोनिया की बात मानते हैं।
अभी तो यह घमासान पंजाब के अंदर ही शुरु हुआ है, लेकिन यह सच है कि देश में सत्ता परिवर्तन की हार्दिक इच्छा रखने वाली कांग्रेस पार्टी की दशा को मतदान बाद के सर्वेक्षण सही साबित करते हैं तो कांग्रेस के अंदर भूचाल लाने से कोई रोक नहीं सकता। कांग्रेस नेताओं की सबसे बड़ी कमी यही है कि वे कभी लोगों को कांग्रेस से नहीं जोड़ते, बल्कि अपने आपसे जोड़ते हैं। इसलिए आज कांग्रेस के अधिकांश कार्यकर्ता पार्टी से नहीं, बल्कि किसी न किसी नेता के साथ ही जुड़े हैं। कांग्रेस की गुटबाजी का यह अहम कारण है।
पंजाब में भी कांग्रेस दो समूहों में विभाजित होने की कगार पर है। इसमें अमरिन्दर सिंह के विरोधियों को नवजोत सिंह हवा देने का प्रयास कर रहे हैं तो अमरिन्दर सिंह इसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा मान बैठे हैं। खैर, इस बात से यह तो मानना ही पड़ेगा कि पंजाब कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं है। कांग्रेस नेतृत्व भले ही कितनी ही एकता की लाख सफाई दे, लेकिन कांग्रेस का सच यही है कि वह समूहों में इस कदर विभाजित है कि एक-दूसरे के विरोध में राजनीतिक चाल चलते ही रहते हैं। कमोवेश यही हाल अभी हाल ही में सत्तासीन होने वाले राज्य मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी है। चुनाव बाद के सर्वेक्षणों में जिस प्रकार से इन राज्यों की तस्वीर दिखाई गई है, वह इन समूहों का घातक परिणाम कहा जा सकता है। इन राज्यों में भी पंजाब की ही तरह कांग्रेस पार्टी के अंदर ही मुख्यमंत्रियों के विरोध में जबरदस्त वातावरण है। भले ही यह ऊपर से दिखाई न दे, लेकिन जनता सब जानती है। एक-दूसरे के विरोध में जबरदस्त वातावरण तैयार कर निपटाने की योजना बनाई जाती है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की काट ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह कर रहे हैं तो राजस्थान में सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनने का मलाल है। कहा यह भी जाता है कि भोपाल से चुनाव मैदान में उतरे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह भी ऐसी ही राजनीति का शिकार हुए हैं। अभी पंजाब सरकार के विरोध में उनके अपने ही बयानबाजी कर रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद पूरी कांग्रेस में ही असंतोष का धमाका हो जाए।
हम जानते हैं कि 2014 के चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने ही अपने राष्ट्रीय नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। राहुल गांधी को कांग्रेस का सर्वेसर्वा बनाए जाने के बाद पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने तो यहां तक कह दिया था कि अब कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं की कोई कद्र नहीं। अगर इस चुनाव के परिणाम भी कांग्रेस की हालत को सुधारने में असफल होते हैं तो संभवत: सवाल उठाने वालों की संख्या बढ़ सकती है। हालांकि अभी इसकी प्रतीक्षा करनी होगी।