सिंहावलोकन : ममता बनर्जी के लिए उपलब्धियों से भरा रहा साल 2021
कोलकाता, 29 दिसंबर (हि.स.)। कोरोना की असहनीय पीड़ा और कई कटु यादें देकर विदा हो रहा वर्ष 2021 भले ही कई मामलों में पूरी दुनिया के लिए अभिशप्त रहा हो लेकिन बंगाल में तृणमूल पार्टी और ममता बनर्जी के लिए राजनीतिक रूप से बेहद खास रहा है। अग्नि कन्या के उपनाम से जानी जाने वाली इस संघर्षशील नेत्री के लिए वर्ष 2021 में उनकी पार्टी तृणमूल ने विधानसभा चुनाव में न केवल तीसरी बार सबसे बड़ी जीत दर्ज बल्कि पार्टी का चार राज्यों में विस्तार कर राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा।
दरअसल, 37 साल पहले एक गैर राजनीतिक परिवार से बिना वित्तीय समर्थन के 29 वर्षीय युवा कांग्रेसनेत्री के रूप में ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अपने पहले ही 1984 के लोकसभा चुनाव में माकपा के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को करारी शिकस्त दी थी। तब से लेकर आज तक सफेद साड़ी, हवाई चप्पल और सामान्य जीवन जीने वाली इस महिला ने लगभग अकेले ही अपने दम पर राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को बदल द
महज 23 सालों में तृणमूल का सुनहरा सफर
ममता ने दिसंबर 1997 में कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का गठन किया। ममता के तेवर को देखकर उस समय के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने उनका साथ दिया और उनकी पार्टी में शामिल हो गए। महज एक दशक की राजनीतिक यात्रा में ही पार्टी ने राज्य में 33 सालों तक शासन करने वाली अति शक्तिशाली वाममोर्चा सरकार को 2011 में उखाड़ फेंका। यह उनके जीवन की पहली सबसे बड़ी खुशी और जीत थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी ने महज दो सीटों से बढ़कर राज्य की 42 में से 18 सीटों पर कब्जा जमा लिया था, तब ऐसा लग रहा था कि भाजपा 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता को सत्ता से बेदखल कर देगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वैश्विक पटल पर दिग्गज नेताओं में शामिल नरेन्द्र मोदी से लेकर अमित शाह तक और राजनाथ सिंह से लेकर जेपी नड्डा तक ने अपनी पूरी ताकत लगा दी लेकिन ममता ने सबको फेल कर दिया। इतना ही नहीं इसी साल अप्रैल-मई महीने में संपन्न बहुचर्चित चुनाव में 294 में से 213 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली तृणमूल राज्य के इतिहास में अब तक सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी बनी। उसके बाद सितंबर से अक्टूबर के बीच हुए उपचुनाव में तीनों सीटें भी जीतने में सक्षम रही है।
उसके बाद दिसंबर महीने के अंतिम सप्ताह में संपन्न कोलकाता नगर निगम चुनाव में भी 90 फ़ीसदी से अधिक सीटें जीतकर तृणमूल ने रिकॉर्ड कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस के 23 साल के कार्यकाल में वर्ष 2021 ममता के लिए राजनीतिक उपलब्धि का ऐसा साल रहा कि आज वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोम, जर्मनी, फ्रांस, ईटली, नेपाल समेत अन्य देशों से वैश्विक मंच पर संबोधन के लिए आमंत्रित हो
चार राज्यों में मजबूत राजनीतिक अस्तित्व वाली पार्टी बनी तृणमूल
यह ममता बनर्जी का रुतबा है कि इसी साल गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियो, मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा, असम की दिग्गज कांग्रेस नेत्री देवस्मिता देव और त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी रही कांग्रेस के कई विधायकों ने तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ले ली है। आज बंगाल में सत्ता हासिल करने के साथ ही तृणमूल कांग्रेस त्रिपुरा, असम, मेघालय और गोवा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है। देश को आजादी दिलाने वाली सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के सामने एक अकेली महिला ने अपने राजनीतिक सफर में ऊंचा मुकाम हासिल क
भाजपा को मायूस करने वाला रहा साल
बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के लिए यह साल मायूस करने वाला रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतने से उत्साहित भाजपा ने 2021 के विधानसभा चुनाव में बंगाल से ममता बनर्जी के शासन को उखाड़ फेंकने के आत्मविश्वास से लबरेज थी। शुभेंदु अधिकारी जैसे पुराने विश्वासपात्र के पार्टी का साथ छोड़ने के बाद भी तृणमूल ने भाजपा के बंगाल में सत्ता पाने के सपने को चकनाचूर कर दिया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी, उनके राज्य में राजनीतिक शक्ति हासिल करने की कवायद में जुटी भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त मिली। फिर भी भाजपा ने राज्य में 77 सीटों पर कब्जा कर लिया। विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के पांच विधायक पार्टी छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं।
नंदीग्राम में हार के लिए ममता को याद रहेगा यह साल
ऐसा नहीं है कि वर्ष 2021 केवल भारतीय जनता पार्टी के लिए झटका रहा है बल्कि ममता को भी हल्का झटका दे गया है। भले ही इस साल वह राजनीतिक तौर पर देश की सबसे मजबूत नेत्री के तौर पर उभरी हैं लेकिन अपने ही राज्य में उनके राजनीतिक जीवन की सबसे अहम जगह नंदीग्राम से उन्हें हार का भी मुंह देखना पड़ा। वह भी अपने ही सिपहसालार शुभेंदु अधिकारी के हाथों।
ममता को राष्ट्रीय स्तर पर उभारने में प्रशांत किशोर की बड़ी भूमिका
साल 2021 में बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने और राष्ट्रीय स्तर पर ममता को उभारने में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भी भूमिका बड़ी रही है। उन्होंने बंगाल में बिहार वाली जातिगत, भाषागत और क्षेत्रवार राजनीति का बीज बोया, जिसकी वजह से विधानसभा चुनाव में भाजपा बंगाल के मूल निवासियों के बीच बाहर वालों की पार्टी बन गई। इसके अलावा उन्होंने तृणमूल छोड़ने वाले दिग्गज नेताओं की घरेलू राजनीति को भी ममता सरकार के बेहतरीन कार्यों को लोगों तक पहुंचा कर नाकाम किया। यह प्रशांत किशोर की रणनीति ही है कि चुनाव संपन्न होने के बाद तृणमूल कांग्रेस के साथ देशभर के दिग्गज नेता जुड़ रहे हैं जिनमें कांग्रेस,भाजपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के कद्दावर नेता शामिल रहे हैं।
कुल मिलाकर देखें तो 2021 साल ममता के लिए ऐसा रहा है कि वह राज्य में कहीं भी कमजोर नजर नहीं आई हैं और हर चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त देकर लगातार ताकतवर होकर उभरी हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी बंगाल में खुद को स्थापित करने से अपने बहुप्रतीक्षित सपने से दूर हुई है।