सामान्य वर्ग के आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को आरक्षण पर रोक नहीं

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नई दिल्ली, 25 जनवरी (हि.स.)। सामान्य वर्ग के आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को दस फीसदी आरक्षण दिए जाने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने फिलहाल इसको लेकर बनाए कानून पर रोक लगाने से इनकार किया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को 3 हफ्ते में जवाब देने का निर्देश दिया है।

इस मामले में तीन याचिकाएं दायर की गई हैं। एक याचिका तहसीन पूनावाला ने दायर की है। गुजरात के रहने वाले विपिन कुमार और यूथ फॉर इक्वलिटी ने भी याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि इस फैसले से इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 50 फीसदी की अधिकतम आरक्षण की सीमा का उल्लंघन होता है।

याचिका में कहा गया है कि संविधान का 103वां संशोधन संविधान की मूल भावना का उल्लघंन करता है। याचिका में कहा गया है कि आर्थिक मापदंड को आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता है। याचिका में इंदिरा साहनी के फैसले का जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया है कि आरक्षण का एकमात्र आधार आर्थिक मापदंड नहीं हो सकता है। याचिका में संविधान के 103वें संशोधन को निरस्त करने की मांग की गई है।

याचिका में कहा गया है कि संविधान संशोधन में आर्थिक रुप से आरक्षण का आधार केवल सामान्य वर्ग के लोगों के लिए है और ऐसा कर उस आरक्षण से एससी, एसटी और पिछड़े वर्ग के समुदाय के लोगों को बाहर रखा गया है। साथ ही आठ लाख के क्रीमी लेयर की सीमा रखकर संविधान की धारा 14 के बराबरी के अधिकार का उल्लंघन किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि इंदिरा साहनी के फैसले के मुताबिक आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं की जा सकती है। वर्तमान में 49.5 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है जिसमें 15 फीसदी आरक्षण एससी समुदाय के लिए, 7.5 फीसदी एसटी समुदाय के लिए और 27 फीसदी ओबीसी समुदाय के लिए है।


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