सांप के फ़न’ के बख़ूबी इस्तेमाल में माहिर रहे हैं स्वामी
रायबरेली, 14 जनवरी(हि.स.)। पिछड़े वर्ग के बड़े नेता माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा के बाद अपने बयानों से भाजपा को लगातार घेर रहे हैं, लेकिन आजकल उनका एक बयान ख़ासा चर्चा में है जिसमें उन्होंने ‘आरएसएस को नाग और भाजपा को सांप बताया था और कहा था कि वह नेवला हैं इनको खत्म कर देंगे।’।
उनके इस बयान चौक चौराहों पर चर्चाएं जारी हैं, लेकिन अगर जमीनी हकीकत देखें तो कुछ और ही कहानी सामने आती है। जानकारों का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य इस ‘सांप के फन’ अर्थात सत्ता का उपयोग अपने हित में करने में माहिर रहे हैं।पंचायत चुनावों में उन्होंने इसका बखूबी इस्तेमाल भी किया है। सांप के इसी फ़न के सहारे उन्होंने न केवल अपनी बहू को निर्विरोध ब्लॉक प्रमुख बनवा दिया,बल्कि सत्ता की हनक का भी अहसास करा दिया। यह अलग बात है कि उस दौरान पिछड़े वर्ग की महिला के लोकतांत्रिक अधिकारों की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया।
इसके अलावा उनका और उनके बेटे का चुनाव क्षेत्र रहे ऊंचाहार में भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार खुद का भी वोट नहीं पा सके और स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस मामले में भी अपने सांप के इसी फ़न का बखूबी इस्तेमाल किया।
दरअसल, इसी पंचायत चुनाव में ऊंचाहार विधानसभा के गौरा ब्लॉक में प्रमुख पद का चुनाव होना था और स्वामी प्रसाद मौर्य की बहू भाजपा की अधिकृत उम्मीदवार थी। उन्हें किसी भी कीमत पर यह सीट जीतनी थी। वह प्रदेश के कद्दावर मंत्री थे उन्होंने इसका इस्तेमाल भी किया और विपक्ष की सीमा यादव अपना पर्चा तक नहीं भर सकी। नामंकन स्थल से जिस तरह उनसे पर्चा छीना गया और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। वह किसी से छूपा नहीं है। इसका सीधा फ़ायदा उन्हें मिला और उनकी बहू निर्विरोध निर्वाचित हो गई। हालांकि उस समय सपा विधायक मनोज पांडे ने इस मामले को हवा दी और मौर्य पर कई गंभीर आरोप भी लगाए थे,लेकिन बदलती राजनीति में दोनों एक ही दल में आ गए हैं।
ऊंचाहार ब्लॉक प्रमुख के चुनाव के दौरान की कहानी भी कुछ इसी तरह रही और भाजपा का इस सीट पर बुरी तरह फ़ज़ीहत का सामना करना पड़ा। पार्टी ने जिस अजय मौर्य को अधिकृत उम्मीदवार घोषित किया था,उन्होंने ख़ुद को भी वोट नहीं किया।इस सीट पर भाजपा को एक भी वोट नही मिल सके। हालांकि यह उम्मीदवार भी स्वामी प्रसाद मौर्य का ही समर्थक था लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी और दूसरे समर्थक को जीतने में मदद की।
उल्लेखनीय है कि ये दोनों सीट पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित थी और बाद में कई अति पिछड़े वर्ग के नेताओं ने काफ़ी हो हल्ला भी किया था। वरिष्ठ पत्रकार विजय करन द्विवेदी कहते हैं ‘सत्ता का लाभ किस तरह अपने पक्ष में किया जाए, इसमें मौर्य माहिर हैं। उनका बयान और रणनीति केवल भविष्य को सुरक्षित करने की क़वायद है’।