समलैंगिक संबंधों को अपराध करार देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस
नई दिल्ली, 23 अप्रैल (हि.स.)। समलैंगिक संबंधों को अपराध करार देने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के खिलाफ द ललित सूरी हॉस्पिटैलिटी ग्रुप के कार्यकारी निदेशक केशव सूरी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। केशव सूरी ने अपनी याचिका में सेक्सुअल पसंद को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक अधिकार घोषित करने की मांग की है। अपनी याचिका में उन्होंने मांग की है कि आपसी सहमति से दो समलैंगिक वयस्कों के बीच यौन संबंध से अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होने के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट समाप्त करे। सूरी ने वकील मुकुल रोहतगी के माध्यम से यह याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा 377 गैर कानूनी है। सूरी ने अपनी याचिका में कहा है कि वह आपसी सहमति से पिछले एक दशक से अपने एक वयस्क सहयोगी के साथ रह रहे हैं और वे देश के समलैंगिक, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर समुदाय के अंग हैं। सूरी ने अपनी याचिका में कहा है कि अपनी यौनिक पसंद की वजह से उन्हें भेदभाव झेलना पड़ रहा है। इस बारे में नवतेज सिंह की भी एक याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। याचिका में कहा गया है कि देश में भारी संख्या में लोगों के साथ भेदभाव नहीं होने दिया जा सकता और उनको उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता| समलैंगिकों का अपराधीकरण का आधार कलंक है और इसी कलंक को देश की विधि व्यवस्था आगे बढ़ा रही है। सूरी का यह कहना है कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के बहिष्कार का मतलब है उनको नौकरी और संपत्ति के निर्माण से दूर रखना है जो उनके स्वास्थ्य के साथ-साथ जीडीपी को प्रभावित करता है। विश्व बैंक का आंकड़ा बताता है कि एलजीबीटी समुदाय को आर्थिक गतिविधियों से दूर रखने की कीमत जीडीपी में 0.1 से 1.7 प्रतिशत की कमी है और ऑफिस में काम करने वाले 56 प्रतिशत एलजीबीटी को भेदभाव का सामना करना पड़ता है।