सपा-बसपा गठबंधन को प्रियंका पहुंचा सकती हैं नुकसान
लखनऊ, 28 जनवरी (हि.स.)| उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन मजबूत करने के लिए सक्रिय राजनीति में लायी गयी प्रियंका गांधी की वजह से उनकी पार्टी को निश्चित रूप से फायदा होगा| कांग्रेस की रणनीति सफल रही तो लोकसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन को नुकसान पहुंच सकता है।
राजनीतिक दृष्टि से देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में कई वर्षों से हाशिये पर रह रही कांग्रेस के इस राज्य में सरवाइवल को लेकर सवाल उठने लगे थे। कारण चाहे जो रहे हो, लेकिन यह सत्य है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में उसके इतिहास में सबसे कम वोट 6.2 प्रतिशत हासिल हुए थे जबकि सीटें मिली थी मात्र सात।
उससे पहले 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में इस राज्य से कांग्रेस को 7.53 फीसदी वोट हासिल हुए थे। लेकिन वह मात्र दो सीटों अमेठी और रायबरेली ही जीत सकी थी। दोनों सीटों पर कांग्रेस राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने चुनाव लड़ा था। करीब 40 वर्षो तक राज्य की सत्ता संभालने वाली कांग्रेस 2012 के विधानसभा चुनाव में भी कुछ खास नहीं कर सकी थी। उसके मात्र 28 विधायक चुने गये थे। वह 11.65 प्रतिशत वोट हासिल कर सकी थी। कमोवेश इतने ही वोट कांग्रेस को 2009 के लोकसभा चुनाव में मिले थे। हालांकि, 2009 में कांग्रेस के 21 उम्मीदवार जीतने में सफल हो गये थे।
इन चुनाव परिणामों ने कांग्रेस की नींव हिलाकर रख दी थी। वर्ष 1989 से राज्य की सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रियंका गांधी वाड्रा के रूप में अपना तुरूप का पत्ता चल दिया है। इससे कांग्रेस को तो फायदा होगा ही भाजपा को भी लाभ मिल सकता है।
राजनीतिक मामलों के जानकार मानते हैं कि प्रियंका के राजनीति में आने से कांग्रेस को निश्चित रूप से फायदा होगा लेकिन इससे भाजपा को भी लाभ होगा। ज्यादातर लोगों का मानना है कि प्रियंका के आने से अधिकतर सीटों पर चुनाव अब त्रिकोणात्मक होंगे, जिसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। प्रियंका की वजह से कांग्रेस की हवा बनेगी| इससे लड़ाई त्रिकोणात्मक होगी जिसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सत्तारूढ़ भाजपा या कांग्रेस एकदम से आगे बढ़ जाएंगी।
प्रियंका की वजह से सपा-बसपा गठबंधन को नुकसान हो सकता है। खासतौर से मुस्लिम मतदाताओं का रूझान कांग्रेस की ओर भी बढ़ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो गठबंधन को नुकसान होगा। वैसे भी,कांग्रेस के मुस्लिम और दलित पारम्परिक वोट रहे हैं। एक बार वह अपने मूल की और लौटे तो सपा और बसपा दोनों का नुकसान होगा क्योंकि मुसलमान सपा और दलित बसपा का समर्थक माना जाता है।
प्रियंका को उत्तर प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र का प्रभारी बनाया गया है। इसी क्षेत्र में अमेठी,रायबरेली, फैजाबाद, कुशीनगर और इलाहाबाद समेत 42 संसदीय क्षेत्र हैं। फैजाबाद में कांग्रेस से निर्मल खत्री चुनाव लड़ते हैं। कांग्रेस के बुरे दिनों में भी निर्मल खत्री एक लाख से ज्यादा वोट पा ही जाते थे। प्रियंका के आ जाने से इस सीट पर कांग्रेस के वोट में इजाफा हो सकता है।
इलाहाबाद नेहरू गांधी परिवार का गृह जिला है। इलाहाबाद से इस परिवार का भावनात्मक लगाव स्वाभाविक है। प्रियंका की भावुक अपील पर वहां के लोग कांग्रेस के समर्थन में निकल सकते हैं। वैसे भी भारत भावुकता में बसता है। इन्दिरा गांधी की मृत्यु के बाद जनता ने लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को 415 सीटों पर विजय दिलायी थी। आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में उत्तर प्रदेश की सभी 85 सीटों पर कांग्रेस हार गयी थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को भी जनता ने चुनाव हरा दिया था। कमोवेश यही हालत 2014 के चुनाव में भी था| नरेन्द्र मोदी के भाव में बही उत्तर प्रदेश की जनता ने बसपा का खाता ही नहीं खोला और कांग्रेस तथा सपा को हाशिये पर ला खड़ा किया।
आगामी चुनाव में खासतौर पर महिलायें प्रियंका के प्रति भावुक हो सकती हैं। बुजुर्ग महिलायें उनमें इन्दिरा गांधी की छवि देखकर अपना समर्थन कांग्रेस को दे सकती हैं।
हाल ही मेंं तीन राज्यों में कांग्रेस की बनी सरकार के बाद मुसलमानों का झुकाव इस पार्टी की ओर बढ़ता हुआ दिख रहा है। उत्तर प्रदेश में करीब 18 फीसदी यह आबादी यदि कांग्रेस की ओर झुकी तो सपा-बसपा गठबंधन का नुकसान होगा। मुस्लिम वोट बंटने का सीधा लाभ भाजपा को होगा।
इस प्रदेश में सपा और बसपा 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। इस तरह 42-42 सीटों पर इनके प्रत्याशी नहीं होंगे। पांच साल इन सीटों पर चुनाव की तैयारी करने वाले नेता कहां जाएंगे। वे भी किसी न किसी पार्टी का दामन थामेंगे। उनकी पहली पसंद कांग्रेस हो सकती है।
उधर,मुसलमानों में पैठ रखने वाली राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल ने भी सपा बसपा गठबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी के अनुसार सपा-बसपा गठबंधन मुस्लिम राजनीतिक नेतृत्व को समाप्त करने व समाज को गुलाम बनाए रखने की साजिश है। अगर मुस्लिम समाज का वोट चाहिए तो गठबंधन उन्हें हिस्सेदारी दे।
परिणाम कुछ भी हो लेकिन प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आ जाने से चुनाव रोचक और दिलचस्प हो जाएंगे। ज्यादातर सीटों पर लड़ाई सीधे होने की बजाय त्रिकोणात्मक होगी। प्रभारी तो वह केवल 42 सीटों की हैं लेकिन उनका असर और कई सीटों पर रहने की सम्भावना है।