शिल्पग्राम उत्सव: रंगमंचीय लोक कला प्रस्तुतियों को देखने उमड़ी भीड़
उदयपुर, 28 दिसम्बर (हि.स.)। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से लोक कला व शिल्प कलाओं के प्रोत्साहन के उद्देश्य से आयोजित दस दिवसीय ‘शिल्पग्राम उत्सव’ में एक ओर जहां हाट बाजार अपना यौवन रूप धारण कर चुका है, वहीं रंगमंचीय लोक कला प्रस्तुतियों को देखने हजारों लोग दर्शक दीर्घा में जमे रहे। दर्शक ने सिद्दी धमाल, लावणी और मयूर नृत्य के सौन्दर्य और लावण्य का आनन्द उठाया। रंगमंच पर फोक सिम्फनी ‘झंकार’ का आयोजन शनिवार से होगा।
शिल्पग्राम उत्सव के आठवें दिन हाट बाजार अपने यौवन पर नजर आया। कलात्मक वस्तुओं की खरीदारी करने वाले लोग मेला शुरू होते ही शिल्पग्राम आना शुरू हो गए हैं तथा हाट बाजार में खरीदारी करने में मशगूल हैं। मेले में आर्टिफिशियल ज्वैलरी में कान के बूंदे, ब्रेसलेट, इयररिंग्स, नेकलेस, मोती के हार, लाख की चूड़ी, लेदर के जैकेट्स, पर्स, नमदे की बनी चप्पलें, वॉल हैंगिंग्स, कारपेट, वूलन कारपेट, डोरमेट, कॉटन के सलवार-सूट, अन्य प्रकार के ड्रेस मेटीरियल, बनारसी साड़ी, चिकनकारी के परिधान, कॉटन के शर्ट, कश्मीरी शॉल, कच्छी शॉल, बाड़मेरी पट्टू, पट्टू के जैकेट्स, कच्छी बांदरवाल, सूती चद्दरें, मिट्टी की कलात्मक वस्तुएं, लकड़ी का फर्नीचर, फोटो फ्रेम आदि उल्लेखनीय हैं।
इसके अलावा खुरजा पॉटरी, केन बेम्बू के लैम्प शेड्स, तीर कमान, कॉटन डॉल्स, पेपर बैग्स, राजस्थानी पेन्टिंग्स, कांच की झालर, कोटा डारिया साड़ी, पटोला साड़ी, मणिपुरी वूलन वियर, ब्रास आर्टीकल, जयपुका ब्रास मेटल वर्क के बने नमूने, कच्छ के पंच धातु के बने डेकोरेटिव, सीप शिल्प आदि की दुकानों पर खरीदारों का तांता लगा रहा।
शाम को मुक्ताकाशी रंगमंच पर कार्यक्रम मांगणियार गायकों के गायन से प्रारम्भ हुआ। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण असम का बिहू और गुजरात का सिद्दी धमाल नृत्य रहा। पूर्वोत्तर से आई असमी बालाओं ने बिहू के रोमांटिक पर्व को पेंपा की टेर और गोगो व ढोल की की थाप पर अपनी थिरकन से दर्शकों पर अपने लावण्य का जादू सा कर दिया। गुजरात से आए अफ्रीकी मूल के सिद्दी कलाकारों ने अपने पीर बाबा गौर के उर्स के मौके पर की जाने वाली धमाल में मुगरवान, शंख की थाप पर अपनी थिरकन और जिस्मानी फड़कन से दर्शकों को आल्हादित कर दिया। धमाल में लयकारी के चरम पर कलाकारों ने हवा में नारियल उछाल कर सिर से फोड़ने के करतब दिखाए तो दर्शकों ने तालियां बजा कर कलाकारों का अभिवादन किया।
आठवें दिन महाराष्ट्र का लावाणी दर्शकों को खूब भाया। उत्तर प्रदेश का मयूर नृत्य लोक और भक्ति के मिश्रण की स्मरणीय मिसाल बन सका। इसमें भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं मयूर बन कर गोपियों के साथ रास खेला। इससे पहले कावड़ी कडगम नृत्य दर्शकों को खूब रास आया, जिसमें कावड़ी नृत्यांगनाओं के करतब दर्शनीय थे। दस दिवसीय उत्सव में राजस्थान का कालबेलिया नृत्य को दर्शकों ने खूब पसन्द किया। पंजाब का भांगड़ा, मणिपुर का पुंग ढोल चोलम, कश्मीर का रौफ, ओडीशा का संबलपुरी व गोवा का देखणी नृत्य सहित अन्य प्रस्तुतियां भी रहीं।
दस दिवसीय उत्सव के नौवें दिन शनिवार को मुक्ताकाशी रंगमंच पर कला प्रेमियों को देश के विभिन्न राज्यों लोक वाद्य यंत्रों की ध्वनियों से सजी फोक सिम्फनी ‘झंकार’ देखने को मिलेगी।