लखनऊ : वैल्युचेन बनाने पर जोर, कारपोरेट-कोऑपरेटिव की बढ़ाई समझ

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सहकार भारती के 7वें राष्ट्रीय अधिवेशन का अंतिम दिन
लखनऊ,19 दिसम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 17 दिसम्बर से शुरू हुए सहकार भारती के अंतिम दिन हुई संगोष्ठी में उत्पादन और मार्केटिंग की चर्चा हुई। इस दौरान उत्पादन का लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए वैल्युचेन पर खुलकर चर्चा हुई। बिचौलियों के महत्व और उनसे होने वाली हानियों पर गंभीरता से विचार-विमर्श हुआ। इस दौरान को-ऑपरेटिव और कारपोरेट की कार्यशैली व लाभ-हानि से परिचित कराया गया।

इन सभी के बीच ग्रामीण सहकारी संस्थाओं द्वारा किये जा रहे विशेष कार्यों और उपलब्धियों को बताया गया। सरकारी नीतियों के लागू होने से सहकारिता को भुगतान वाले दुष्परिणामों पर चर्चा हुई। इस दौरान वक्ताओं ने बताया कि वर्ष 2004 में सरकार ने किसानों को दिए जाने वाले ऋण को दोगुना करने का लक्ष्य रखा था और वर्ष 2005-06 तक इसे प्राप्त भी कर लिया गया। उसके कुछ साल बाद ही किसानों के ऋणों को माफ करने का सिलसिला शुरू हुआ। इससे बैंकों ने तो सहन कर लिया, लेकिन सहकारिता पर बहुत बुरा असर पड़ा। सरकार के ऐसे निर्णय और होने वाले नुकसानों का अध्ययन करना भी जरूरी है। पिछले अनुभवों की समीक्षा करने से सकारात्मक राह निकाली जा सकती है।
इस दौरान प्राथमिक सहकारी समितियों के सदस्यों को जागरूक करने पर जोर दिया गया। सदस्यों की जागरूकता ऋण माफी में नहीं बल्कि उसके चुकाने में है, बताने पर जोर दिया गया। वक्ताओं ने कहा कि महिला स्वयं सहायता समूहों की सफलताओं को प्राथमिक सहकारी समितियों के सदस्यों से चर्चा कर उन्हें इस दिशा में आगे बढ़ने को प्रेरित करना होगा।
इस दौरान कोऑपरेटिव और कारपोरेट सेक्टर व उनके कार्य करने के तरीकों में अंतर व आवश्यकता बताया गया। कोऑपरेटिव सेक्टर से जुड़े किसी भी अधिकारी या पदाधिकारी से बात करने की सहजता रूपी विशेषता और कारपोरेट सेक्टर की ”बॉस इज़ ऑलवेज राइट” की नीति की खामियां भी गिनाईं गईं। सहकारिता में बात रखने की स्वतंत्रता और कारपोरेट सेक्टर में पूर्व निर्धारित लक्ष्य व तरीकों पर अमल करने से होने वाले लाभ-हानि पर भी विचार हुआ।


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