राष्ट्र में सकारात्मक परिवर्तन का महापर्व है कुम्भ: आरएसएस
कुम्भ नगरी (प्रयागराज), 17 जनवरी (हि.स.)। कुष्ट रोगियों की सेवा को समर्पित दिव्य प्रेम सेवा मिशन के एक कार्यक्रम में शिरकत करने आये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कुम्भ को सकारात्मक परिवर्तन का महापर्व करार दिया। उन्होंने कहा कि अधिकांश कुम्भ वर्षों में आम जनमानस ने राष्ट्र के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाया है।
वर्ष 2010 से हर कुम्भ में दिव्य प्रेम सेवा मिशन द्वारा आयोजित की जाने वाली व्याख्यान माला की 20वें कार्यक्रम को संबोधित कर रहे भैया जी जोशी ने कहा कि कुम्भ में आस्था रखने वाला एक हिन्दू होने के नाते मैं भी इसमें विश्वास रखता हूं। बिना किसी प्रचार-प्रसार के ही इतना बड़ा आयोजन कुम्भ की सकारात्मकता का सबसे बड़ा द्योतक है। उन्होंने एक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय ने भी इसकी महत्ता और खर्च के बारे में एक विदेशी पत्रकार को बताया था। आयोजन में खर्च संबंधी सवाल का जवाब देते हुए मालवीय जी ने कहा था कि कुम्भ में आयोजन के प्रचार-प्रसार में सिर्फ आधे पैसे खर्च हुए हैं।
उन्होंने बताया था कि पंचांग में लिखे अक्षरों पर होने वाला खर्च ही कुम्भ का बजट है। उन्होंने कुम्भ के आयोजन वर्ष और उस काल में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों की चर्चा की। खगोलीय और आस्था से जुड़ी अमृत की बूदों के छलकने की कथाओं को सुनने के बाद कहा कि कुम्भ के आयोजन वर्षों में अनेक सामाजिक परिवर्तन हुए हैं। इन परिवर्तनों का राष्ट्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
उन्होंने कहा कि कुम्भ आयोजन के समय समाजहित का चिंतन-मंथन होता है। सामर्थ्यवान, वैभवशाली, गरीब, परित्यक्त, महिला, पुरुष, बच्चों में अलावा सृष्टि की अक्षुण्णता के प्रति सहज भाव से नैसर्गिक विचार होना ही कुम्भ की विशेषता है। उन्होंने मुगल काल और अंग्रेजी काल में हुई कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि 800 से 900 वर्ष तक मुगलों और तकरीबन 200 से 250 वर्ष तक अंग्रेजों की अधीनता में भारतीय रहे। बावजूद इसके भारत की अक्षुण्ण रहने वाली एकता आज भी परिलक्षित है। यह कुम्भ के सकारात्मक प्रयास का प्रतिफल है।
कुम्भ वर्षों में राष्ट्र ने देखा सकारात्मक परिवर्तन
उन्होंने कहा कि वर्ष 1857 में क्रांति हुई। देश की आजादी का संघर्ष था। वर्ष 1925 में आरएसएस का गठन हुआ। राष्ट्र के लिए समर्पित और सन्नद्ध रहने वाले स्वयंसेवकों को तैयार करने को हुआ सकारात्मक प्रयास था। वर्ष 1977 में आपातकाल के खिलाफ हुआ जन आंदोलन लोकतंत्र को बचाने को होने वाला सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तन था। वर्ष 1990-91 में अयोध्या राम मंदिर निर्माण में लिए कारसेवकों द्वारा बाबरी ढांचे को गिरना धार्मिक क्षेत्र का सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिला। वर्ष 2001 में पोखरण परीक्षण और वर्ष 2013 में मंगलयान की सफलता कुम्भ वर्ष में होने वाले सकारात्मक परिवर्तन में परिणाम हैं।
एक सवाल में जवाब में उन्होंने कहा कि वर्ष 1952 के सोमनाथ मंदिर निर्माण के साथ ही राष्ट्र और भारतीय समाज में सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं। एक बार फिर कुछ वैसे ही सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं।