यूपी में स्थानीय मुद्दे गायब, जातिवाद व सम्प्रदायवाद होता जा रहा हावी!
यूपी लोकसभा चुनाव वर्ग विशेष से खुद को जोड़ने में लगी हैं राजनीतिक पार्टियां
लखनऊ,09 अप्रैल (लखनऊ)। यूपी के लोकसभा चुनाव से मुद्दे गायब होते जा रहे हैं और जातिवाद तथा संप्रदायवाद हावी होता जा रहा। इसकी शुरूआत बसपा सुप्रीमो मायावती ने देवबंद की जनसभा से कीं। उन्होंने मुद्दों को धार देने के बजाय जातीय और एक धर्म विशेष से गठबंधन के पक्ष में वोट देने की अपील से की हैं। इस अपील के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इशारे-इशारे में हिन्दू मतदाताओं को सचेत करते हुए दिख रहे हैं।
इतना ही नहीं भाजपा जहां देश की 125 करोड़ जनता के विकास की बात कर रही है, वहीं सपा-बसपा और रालोद गठबंधन अपनी जाति बिरादरी के साथ मुस्लिम मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने के लिए दिन रात एक कर रहा है। इन सबके बीच यूपी में बमुश्किल आधा दर्जन सीटों पर टक्कर दे रही कांग्रेस भी महासचिव प्रियंका वाड्रा के जरिए अपनी जमीन तलाश रही है, जिससे आने वाले समय में कुछ सुधार हो सके।
अब जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, यह तो 23 मई को ही पता चलेगा लेकिन इतना जरूर है कि पाकिस्तान पर किए गये एयर स्ट्राइक के बाद मतदाताओं में बहुत हद तक राष्ट्रवाद की भावना ज्यादा जागृत हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों में तो हर वक्त विकासवाद का ही मुद्दा रहता है लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भाषण में हर जगह इशारों ही इशारों में मुस्लिम समाज पर कुछ न कुछ कटाक्ष किया जाना हिंदू मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोशिश के रूप में ही देखा जा रहा है। वहीं बसपा-सपा और रालोद यादव, जाट, वंचित वर्ग के साथ ही मुसलमान मतदाताओं पर टकटकी लगाए हुए हैं।
रविवार को बसपा प्रमुख मायावती ने देवबंद(सहारनपुर) में मुसलमान मतदाताओं को आगाह करते हुए कहा कि अपने मत को कहीं भटकने न देना। एकजुट होकर गठबंधन को ही वोट देना। खुले मंच से इस बात को कहने में कोई गुरेज न करना, यह बताता है कि बसपा प्रमुख की निगाह खुद के कट्टर समर्थकों पर भरोसा है। उनके भाषण के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने तुरंत प्रतिक्रिया दी कि गठबंधन हरे रंग के वायरस से संक्रमित है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह बयान देकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गठबंधन को सिर्फ मुस्लिम समाज तक सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं।
इसके अलावा भी मुख्यमंत्री और प्रदेश के दूसरे अधिकांश मंत्री अपने हर भाषण में कुछ न कुछ ऐसा जरूर कहते हैं, जिसे हिंदू मतों के ध्रुवीकरण करने की कोशिश के रूप ही देखा जा सकता है। विपक्ष के हर साम्प्रदायिक कदम में भाजपा अपना फायदा देख रही है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि इस समय हिंदू मतदाताओं को लग गया है कि बीजेपी ही उनका भला कर सकती है। इस कारण इसे और धार देने पर पार्टी विचार कर रही है। वहीं सपा अपने पुराने जाति विशेष के मतदाताओं को एकजुट करने की कोशिश कर रही है।
सपा नेताओं का मानना है कि सपा और बसपा का वोट बैंक के साथ ही मुस्लिम मतदाताओं का साथ मिल जाएगा तो पार्टी भाजपा को शिकस्त देने में कामयाब हो जाएंगी।
इस जातिवाद और सम्प्रदायवाद की राजनीति पर राजनीतिक विश्लेषक हर्षवर्धन त्रिपाठी का कहना है कि इसकी शुरूआत वामपंथी विचारकों एक षड्यंत्र के तहत मेडल को लौटाकर ही कर दी थी। इसमें कांग्रेस का भी हाथ था। इसका नफा नुकसान चाहे जिसको हो लेकिन भविष्य के लिए यह खतरनाक है। उन्होंने बताया कि नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा पाकिस्तान की भाषा बोलने के बाद भी कांग्रेस द्वारा कोई कार्रवाई न करना भी मुस्लिम तुष्टीकरण की ही एक कोशिश है। यदि ऐसा रहा तो भविष्य में तुष्टीकरण के लिए पार्टियां देश की संप्रभुता का भी ख्याल नहीं करेंगी।