यूपी में राष्ट्रवाद के आगे जातिवाद का आधार पड़ रहा कमजोर!
सामान्य और कमजोर वर्ग के भावना प्रधान होने का फायदा उठाती रहीं क्षेत्रिय पार्टियां
इस बार वही भावना क्षेत्र क्षेत्रीय पार्टियों और कांग्रेस के लिए पड़ सकता है भारी
लखनऊ, 08 अप्रैल (हि.स.)। लोकसभा चुनाव में यूपी में जिस तरह की बयार चल रही है। उसे देखकर लगता है कि इस बार भी 2014 की तरह ही जातिवाद का बंधन टूटेगा और जाति के आधार पर जो जीत-हार के आंकलन किए जा रहे हैं, वह ध्वस्त होगा।
इस बीच गांव-गांव में हो रही चर्चाओं को देखकर यही लगता है कि इस बार राष्ट्रवाद के आगे जातिवाद का आधार कमजोर पड़ गया है। अब बहुत लोग मुफ्तखोरी के खिलाफ भी अपनी प्रतिक्रिया देने लगे हैं।
ये स्थितियां बालाकोट हमले के बाद पैदा हुईं। विपक्ष ने लोगों का ध्यान इस ओर से हटाने का भी प्रयास किया, लेकिन समय-समय पर अब भी कुछ नेताओं के अटपटे बोल लोगों की मानसिकता को बदलने का काम कर रही है। 07 अप्रैल को सहारनपुर में बसपा सुप्रिमो मायावती ने गठबंधन की संयुक्त रैली के मंच से एक विशेष वर्ग से बीजेपी को हराने की अपील की। इस पर गाजीपुर जिले के युवा फिरोज अंसारी का कहना है कि उनके बयान के बाद ‘माया मिले न राम’ वाली कहावत चरितार्थ होगी।
इलाहबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ईश्वर शरण डिग्री कॉलेज के प्राचार्य और राजनीति में विशेष पकड़ रखने वाले डा.आनंद शंकर सिंह का कहना है कि कुछ पार्टियां खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेती हैं और कुछ पार्टी के नेता पार्टी में रहते हुए विपक्ष को फायदा पहुंचाने का काम कर देते हैं। इस तरह के नेता कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू, दिग्विजय सिंह, शशि थरूर, प्रो.रामगोपाल यादव आदि मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि नवजाेत सिंह सिद्धू द्वारा पाकिस्तान की भाषा बोलने के बावजूद कार्रवाई ताे दूर कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा उनको मना भी नहीं किया जाना, कांग्रेस के लिए घातक सिद्ध होगा।
उनका कहना है कि सिद्धू के बयान पर कांग्रेस द्वारा खंडन न किया जाना कांग्रेस की मौन स्वीकृति को दर्शाता है। ऐसे में लोगों की भावनाएं बदलीं। लोगों में यह विचाराधारा घर कर गई है कि पाकिस्तान द्वारा बार-बार आतंकवादी हमला करवाए जाने के बावजूद कांग्रेस द्वारा कोई ठोस कदम न उठाया जाना, अपने दुश्मन के प्रति शाफ्ट रवैया ही रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक दिनेश तिवारी के अनुसार राष्ट्रवाद के कारण ही इस बार भी 2014 की तरह जातिवाद की सीमाएं टूट चुकी हैं। अभी चार माह पूर्व तक तो ऐसा लग रहा था कि इस बार बहुत कुछ उल्टा होने जा रहा है लेकिन पाकिस्तान में घुसकर किए गए एयर स्ट्राइक के बाद तो ग्रामीण जनता और वंचित वर्ग में राष्ट्रवाद की भावना ज्यादा जागृत हुई है। इसका कारण है कि अधिकांश गरीब और सामान्य वर्ग ही भावुक होता है। उच्च वर्ग में भावनाएं कम देखने को मिलती है।
शिक्षाविद् और समाजसेवी चिन्तामणी सिंह की मानें तो विकास, सुरक्षा और आतंकवाद को लेकर वर्तमान नेतृत्व पर मतदाताओं का विश्वास बढ़ा है। पूर्वांचल समेत यूपी का युवा सरकारी नौकरी को लेकर एक तरफ तो केन्द्र सरकार को कोस रहा है, लेकिन दूसरी तरफ राष्ट्रवाद, सुरक्षा और आतंकवाद जैसे विषयों पर कठोर निर्णय लेने वाली सरकार को केन्द्र की सत्ता पर बैठाने के लिए बेचैन भी है।
कांग्रेस और क्षेत्रिय पार्टियां अब तक इन्हीं भावनाओं का फायदा उठाती रही हैं। अब इन्हीं पर उल्टा पड़ रहा है। यदि यही स्थिति बनी रही तो राष्ट्रवाद के आगे सभी घोषणाएं मंद पड़ने जा रही है। लोगों को सिर्फ राष्ट्रवाद दिख रहा है।