यूपी में गायब दिखते कांग्रेसी नायक, उम्मीदवारों ने खुद संभाली प्रचार की कमान
भदोही, 06 मई(हि.स.)। यूपी में पांचवें चरण के लिए सोमवार को वोट डाले जा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस का प्रचार बेहद कमजोर दिख रहा है। वह पीएम मोदी के मुकाबले कहीं टिकती नहीं दिख रही है। पार्टी के स्टॉर प्रचारकों को उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार करने के लिए वक्त नहीं मिल रहा है। पार्टी उम्मीदवार बगैर नायक के अपनी रणनीति बनाते दिख रहेे हैं।
प्रियंका वाड्रा का अधिकांश सयम अमेठी का गढ़ बचाने में जाया हो रहा है, जबकि दूसरी सीटों पर अच्छे उम्मीदवार के बाद भी कांग्रेस लड़ाई से गायब दिखती है। पूर्वांचल और विशेष रुप से भदोही में अभी तक किसी बड़े नेता का कार्यक्रम नहीं लगा है। पार्टी की नीति और नीयति को लेकर कार्यकर्ता हैरान हैं। जबकि यूपी में तकरीबन एक दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस उम्मीदवार भाजपा, सपा और बसपा के लिए मुसीबत बने हैं। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व चुनाव की जिस रणनीति पर काम कर रहा है, वह पार्टी कार्यकर्ताओं के पाले नहीं पड़ रहा है।
पूर्वांचल की भदोही संसदीय सीट पर महागठबंधन और भाजपा ने 2019 के महासमर को ‘करो और मरो’ का सवाल बना लिया है। भाजपा जहां अपनी दूसरी पारी के लिए बेताब दिखती है वहीं सपा-बसपा एक बार फिर अपनी जमींन हथियाने को बेताब हैं। महागठबंधन की तरफ से भाजपा उम्मीदवार रमेश बिंद को कड़ी चुनौती मिल रही है।
भदोही में जंग का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव प्रचार में आना पड़ा है। पूर्व सीएम अखिलेश यादव और मायावती का मंगलवार को संयुक्त रैली का कार्यक्रम है। लेकिन कांग्रेस का कोई नेता अभी तक भदोही नहीं पहुंचा है। जबकि पार्टी ने पूर्वांचल के बाहुबली नेता रमाकांत यादव को यहां चुनाव मैदान में उतारा है। आजमगढ़ में वह चार बार सांसद और उतनी ही बार विधायक रह चुके हैं। यादव विरादरी में सेंध लगाने में काफी हद तक कामयाब हो गए हैं। अगर राहुल गांधी या प्रियंका भदोही के चुनावी रण में कूदती तो कांग्रेस यहां मुस्लिम और ओबीसी मतों के आधार पर भाजपा और महागठबंधन के लिए चुनौती खड़ी कर सकती थी। जिसकी वजह से मुकाबला त्रिकोणीय हो जाता। लेकिन अभी तक यहां किसी बड़े नेता का कार्यक्रम नहीं लग पाया है। 2009 में यहां कांग्रेस उम्मीदवार सूर्यमणि तिवारी 95 हजार मत पाकर तीसरे नम्बर पर थे।
यूपी में कांग्रेस की यह नीति है या फिर गबठबंधन धर्म निभाने की मजबूरी। क्योंकि अगर राहुल गांधी या प्रियंका यहां आती तो कांग्रेस की स्थिति मजबूत बनती, जिसका सीधा लाभ भाजपा को जाता और नुकसान महागठबंधन के उम्मीदवार रंगनाथ मिश्र को उठाना पड़ता क्योंकि वह बसपा से उम्मीदवार हैं। हालांकि रमाकांत यादव खुद के बाहुबल पर चुनाव लड़ रहे हैं।
कांग्रेस के एक युवा नेता ने नाराजगी जाहिर करते हुए बताया कि कांग्रेस संगठन को रमाकांत यादव घास नहीं डाल रहे हैं। चुनाव के मौसम में जिलाध्यक्ष डा. नीलम मिश्र बाहर हैं। कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय से जब संपर्क किया गया तो कार्यालय प्रभारी चैधरी ने बताया कि भदोही में किसी बड़े लीडर का कोई चुनावी कार्यक्रम नहीं लगा है। कांग्रेस उम्मीदवार रमाकांत यादव से संपर्क किया गया तो वह बैरीबीसा में एक चुनावी जनसभा को संबोधित कर रहे थे मोबाइल उनके पीए लालबहादुर ने रिसीव किया। उन्होंने कहा फिलहाल अभी कोई कार्यक्रम नहीं लगा है। 10 मई तक संभावना है। इससे यह साबित होता है कि यूपी में कांग्रेस किस संजीदगी से चुनाव लड़ रही है। जबकि मायावती और अखिलेश उस पर हमलावर हो चुके हैं। प्रियंका और राहुल गांधी ने भी सपा-बसपा पर हमला बोल चुके हैं, फिर किस दोस्ती को संजोने में तीनों दल लगे हैं यह कहा नहीं जा सकता है। भदोही में बाहुबली रमांकात यादव सिर्फ अपनी ताकत पर चुनावी महौल खड़ा किए हैं। जबकि प्रधानमंत्री मोदी एक-एक सीट की अहमियत को ध्यान में रखते हुए भदोही पहुंच चुके हैं। इससे यह साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस भदोही में गठबंधन धर्म निभा रही है।