महाराष्ट्र वार्षिकी-2018: भाजपा-शिवसेना के बीच चलता रहा प्यार-तकरार का सिलसिला ,भ्रमित विपक्ष

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मुंबई, 27 दिसंबर (हि स )।महाराष्ट्र की सत्ता में शामिल भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना के बीच साल भर प्यार-तकरार का सिलसिला चलता रहा। दोनों दलों के बीच यह प्यार व तकरार किसी प्रायोजित कुशती की तरह रही ,जिससे विपक्ष पूरी तरह भ्रमित रहा है। वर्ष 2018 भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना के लिए काफी पोषक रहा है। यहीं बजह है कि शिवसेना आगामी चुनाव में अपने बल पर मैदान में उतरने के लिए अपने पंख फडफ़ड़ा रही है। लेकिन भाजपा समय की नजाकत को समझते हुए अब भी शिवसेना को आगामी चुनाव मे गठबंधन के लिए समझाने का प्रयास कर रही है। भाजपा -शिवसेना की इस नूरा कुशती से विपक्ष किंकर्तव्यविमुढ़ सा नजर आ रहा था, लेकिन आगामी चुनाव की आहट से विपक्ष चौकन्ना होकर रणनीति बनाने में जुट गया है।
इस वर्ष महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन , किसान आंदोलन, भीमा -कोरेगांव हिंसा मामला प्रमुख रहें ,लेकिन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इन दोनों बड़े आंदोलनों के बाद सकारात्मक निर्णय लेकर खुद को एक सफल प्रशासक के रुप में साबित कर दिया है।
वर्ष की शुरुआत मराठा आंदोलन से हुई थी। मराठा समाज आरक्षण के लिए राज्य के हर जिले में जगह-जगह मूक मोर्चा निकाल रहा था। मराठा मोर्चे की यह विशेषता रही कि मोर्चे में हमेशा लाखों की संख्या में मराठा शामिल होते थे, लेकिन कहीं कानून व्यवस्था नहीं बिगड़ती थी। इसी तर्ज पर मराठा समाज का मुंबई में भी ऐतिहासिक मूक मोर्चा आयोजित किया गया था। यह मोर्चा मुंबई सीएसटी से नवी मुम्बई तक सडक़ों पर उमड़ पड़ा था। लेकिन मुख्यमंत्री ने मोर्चे में शामिल नेताओं को लिखित आश्वासन देकर उन्हें संतुष्ठ कर दिया था।
इसके बाद राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मराठा समाज का विशेष प्रवर्ग बना कर 16 फीसदी आरक्षण की घोषणा कर दी। इससे इस वर्ष मुख्यमंत्री राज्य के लगभग 34 फीसदी समाज को उनका हक देने में सफल रहे हैं। इस मुद्दे पर विपक्ष सरकार विरोधी आक्रोश को भुना पाने में असफल ही रहा । यह बात और है कि राज्य सरकार की ओर दिए गए मराठा आरक्षण को कोर्ट में चुनौती दी गई है। राज्य सरकार ने भी मराठा समाज की पैरवी के लिए वकीलों की नियुक्ति की है। लेकिन मराठा समाज भारतीय जनता पार्टी की सरकार से संतुष्ठ नजर आ रहा है।
इसी प्रकार राज्य में आदिवासी किसानों ने कृषि उत्पाद का उचित मूल्य मिलने , आदिवासी समाज को जोत- जमीन का पट्टा मिलने आदि मुद्दों पर नासिक से मुंबई तक पैदल लांग मार्च निकाला था । इस आंदोलन को भी मुख्यमंत्री ने उनकी मांगों को पूरा कर शांत कर दिया। यहां भी विपक्ष की दाल नहीं गल सकी। पुणे में एक जनवरी 2018 को हुई हिंसा मामले में राज्य सरकार ने हिंसा की साजिश की तह तक जाने का आदेश पुणे पुलिस आयुक्त कार्यालय को दे रखा है। इस मामले में पूरे देश में साजिशकर्ताओं का गिरोह पहली बार पुलिस की गिरफ्त में आ सका है। यह गिरोह अस्तित्व में रहने वाली सरकार को गिराने व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी हत्या करने की साजिश रच रहा था। मुख्यमंत्री की ओर से खूली छूट मिलने की वजह से पुणे पुलिस इस मामले की तह तक जा सकी है और इनके द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली गोपनीय भाषा को डिकोड दिया जा सका है। पूरे तथ्य सबूत के साथ की जा रही पुणे पुलिस की कार्रवाई को हाईकोर्ट ने सही करार दिया है। इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबड़े ने पुणे पुलिस की कार्रवाई को चुनौती देते हुए खुद पर दर्ज मामले को रद्द किए जाने के लिए याचिका दायर किया था। हाईकोर्ट ने पुणे पुलिस की कार्रवाई को सही ठहराते हुए आनंद तेलतुंबड़े की विनती को अमान्य कर दिया था,जिससे राज्य सरकार की भूमिका सही ऐसा आभास लोगों को हुआ है।
भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना राज्य की सत्ता में शामिल होने के बाद एक साथ ही मंत्रिमंडल की बैठक में निर्णय लेते रहे हैं। लेकिन शिवसेना इन निर्णयों की चीड़-फाड़ विपक्ष से पहले ही सार्वजनिक रुप से करती रही है। इससे विपक्ष की भूमिका ही नगण्य हो गई है। भारतीय जनता पार्टी को राज्य सरकार व केंद्रसरकार की जनहित की योजनाओं का लाभ मिलता रहे, इसलिए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राव साहेब दानवे ने हर स्तर संगठन को गांव स्तर ले जाने का प्रयास जारी रखा है। इसका लाभ भाजपा को इस साल हुए हर चुनाव में नंबर वन बनते हुए मिला है। इस वर्ष पालघर संसदीय का चुनाव भी भाजपा ने जीत लिया है। इस सीट पर संयुक्त विपक्ष को पराजय झेलनी पड़ी और सत्ता में सहभागी शिवसेना दूसरे क्रमांक पर रही। शिवसेना ने आगामी चुनाव को देखते हुए भाजपा पर निशाना साधने का कोई भी अवसर नहीं गवाया है।
शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने दशहरा सम्मेलन में राममंदिर का मुद्दा तेजी से उछाला है और पहले मंदिर फिर सरकार का नारा दिया है। इसी क्रम में उद्धव ठाकरे ने अयोद्धा दौरा भी किया,जहां उनका जोरदार स्वागत किया गया । हालही में शिवसेना अध्यक्ष ने राममंदिर के लिए पंढऱपुर में जोरदार कार्यक्रम किया और महाआरती भी की है। आम जनमानस में शिवसेना भी राममंदिर व विकास कार्यों के दम पर अपनी अलग पहचान बनाने में सफल रही है। यही वजह है कि शिवसेना आगामी चुनाव में अपने दम पर उतरने का मन बना रही है। शिवसेना का लक्ष्य है कि आगामी मुख्यमंत्री शिवसेना का ही हो। इसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ही शिवसेना सावधानी से अपनी रणनीति तय करनेवाली है।
राज्य में विपक्ष में कांग्रेस व राकांपा की ओर से आगामी चुनावों में भाजपा को घेरने की जोरदार तैयारी की जा रही है। कांग्रेस व राकांपा की ओर से सरकार की नाकामियों को भुनाने के लिए अलग-अलग राज्यव्यापी यात्रा का आयोजन किया गया है। इसी प्रकार विधानसभा के हर सत्र में कांग्रेस व राकांपा ने सदन का कामकाज स्थगित करने का प्रयास किया है। राकांपा अध्यक्ष शरद पवार , राकांपा नेता अजीत पवार , प्रदेश राकांपा अध्यक्ष जयंत पाटील राकांपा को अगले चुनाव अधिक से अधिक लाभ हो , इसे देखते हुए प्रचारतंत्र के साथ पार्टी को ग्रामीण स्तर पर मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। इतना ही नहीं राकांपा महाआघाड़ी को मजबूत करने के लिए स्वाभिमानी शेतकरी पक्ष व शेकाप को अपने साथ रखने का जोरदार प्रयत्न कर रहे हैं।
इसी प्रकार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण , पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण , विधानसभा के विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटील भी वर्ष 2018 में कांग्रेस पार्टी की खोई ताकत को वापस पाने के लिए प्रयास करते रहे हैं। कांग्रेस की ओर से इस संदर्भ में संपर्क यात्रा, जनसंघर्ष यात्रा का भी आयोजन किया गया । हाल ही में मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ व राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की हुई सत्ता वापसी से कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है। इसकी धार बरकरार रखने का प्रयास कांग्रेस पार्टी की ओर से किया जा रहा है। इसी प्रकार कांग्रेस पार्टी आगामी चुनाव में महाआघाड़ी में शामिल करने के लिए भारिप बहुजन महासंघ के प्रकाश आंबडेकर व वसई -विरार विकास आघाड़ी के हितेंद्र ठाकुर , जोगेंद्र कवाड़े के संपर्क में है।
कुल मिलाकर इस वर्ष राज्य की राजनीति में एक अलग तरह की रणनीति के तहत भाजपा व शिवसेना आपस में लड़ते भी रहे हैं और मौके पर साथ मिलते भी रहे हैं, तो विपक्ष खुद अपनी उपस्थिति का अहसास कराने का प्रयत्न करते रहा है। इन राजनीतिक दलों की इस वर्ष की मेहनत ही अगले साल होने वाले चुनावों में अपना रंग दिखाने वाली है।


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