महाभियोग: सभापति नायडू के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

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नई दिल्ली, 07 मई (हि.स.)। राज्यसभा के दो सांसदों ने आज सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू द्वारा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया शुरु करने संबंधी नोटिस को खारिज करने को चुनौती दी है। आज जब इस याचिका को वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने जस्टिस चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मेंशन किया तो जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि आप इसे कल हमारे समक्ष मेंशन कीजिए। जब जस्टिस चेलमेश्वर ने मेंशनिंग के बारे में चीफ जस्टिस के हालिया निर्देश के बारे में पूछा तो सिब्बल ने कहा कि ये केवल मौखिक आदेश था। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर इस आशय का कोई सर्कुलर नहीं है। उन्होंने कहा कि चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर के अधिकार को रजिस्ट्रार को डेलीगेट नहीं कर सकते हैं। आप इसे न्यायिक रुप से देखिए। इस याचिका को अभी तक नंबर नहीं मिला है। हमारी मांग केवल इतनी है कि इसे लिस्ट किया जाए। उसके बाद कोर्ट ने कहा कि आप कल यानि 8 मई को सुबह साढ़े दस बजे मेंशन कीजिए। जिन राज्यसभा सदस्यों ने याचिका दायर की है वे हैं अमी याग्निक और प्रताप सिंह बाजवा। याचिका में कहा गया है कि वेंकैया नायडू का फैसला गैरकानूनी, मनमाना और संविधान की धारा 14 का उल्लंघन है। याचिका में वेंकैया नायडू द्वारा महाभियोग के नोटिस को खारिज करने के लिए बताए गए कारणों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने के लिए संविधान की धारा 124 राज्यसभा सभापति को अर्ध-न्यायिक अधिकार नहीं देता है । याचिका में कहा गया है कि सभापति द्वारा लिया गया फैसला इस आधार पर लिया गया है कि उन्हें नोटिस पर फैसला करने और उसे स्वीकार करने या अस्वीकर करने का अर्ध न्यायिक अधिकार है। सभापति को ये देखना चाहिए कि राज्यसभा के 50 सदस्य और लोकसभा के 100 सदस्यों के हस्ताक्षर हैं कि नहीं। उसके बाद उन्हें उसे धारा 3(2) के तहत कमेटी को भेज देना चाहिए। राज्यसभा सभापति नोटिस में दिए गए आरोपों पर कोई कानूनी फैसला नहीं कर सकते हैं। याचिका में जजेज इन्क्वायरी एक्ट 1968 की धारा 3 का उल्लेख किया गया है जिसमें कहा गया है कि किसी जज के दुर्व्यवहार या अक्षमता की जांच तीन सदस्यीय कमेटी करेगी।


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