मताधिकार के प्रयोग से ही मजबूत होगा लोकतंत्र

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लोकतंत्र के महायज्ञ में आहुति देने के लिए शेष बचे तीन चरणों के मतदाताओं को अपने मताधिकार के प्रयोग के लिए आगे आना होगा। आखिर पांच साल बाद हमें लोकतंत्र के मंदिर में अपनी सहभागिता निभाने का अवसर मिलता है। लोकतंत्र के इस यज्ञ में अपनी जिम्मेदारी से भागना गैरजिम्मेदाराना कृत्य है। सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव अब अंतिम चरण की और बढ़ रहे हैं। मतदान के चार चरण पूरे हो चुके हैं। 6 मई को पांचवां, 12 को छठा और 19 मई को अंतिम व सातवां चरण पूरा होने जा रहा है। 23 मई को मतदाताओं का आदेश सामने होगा। लगभग दो तिहाई लोकसभा क्षेत्रों में मतदान की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। अंतिम तीन चरण के लिए मतदान होना शेष है। सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को रिझाने में किसी तरह की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। आरोप-प्रत्यारोप के कीचड़ उछाले जा रहे हैं। खुद को अच्छा और दूसरे को बुरा बताने में कोई दल किसी से कम नहीं हैं। ऐसे में मतदाताओं की जवाबदेही बढ़ जाती है। अभी तक चारों चरणों में मतदान का प्रतिशत फर्स्ट डिविजन रहा है। लेकिन नंबर उतने नहीं आए जितनी की उम्मीद थी। एक मोटे अनुमान के अनुसार 35-40 प्रतिशत मतदाताओं का मतदान के प्रति उत्साह नहीं होना कहीं न कहीं लोकतंत्र के प्रति उदासीनता को दर्शाता है।
पांचवें चरण से लेकर सातवें चरण तक की लोकसभा सीटों के लिए हो रहे मतदान में मतदाताओं को अब अपने दायित्व को समझना होगा। मतदाताओं को संकल्प लेना होगा कि वे मतदान केन्द्र तक जाएं, अपने पसंदीदा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर देश का सजग नागरिक होने के दायित्व को निभाएं। आखिर मतदाताओं का भी दायित्व है। वे भी जिम्मेदार नागरिक हैं। केवल और केवल मात्र सरकारों को कोसने का काम आम नागरिक का नहीं होना चाहिए। हमें अपने दायित्वों को भी समझना होगा। हमारे देश के लोकतंत्र की यह खासियत है कि चुनाव साफ-सुथरे और मतदाताओं के विश्वास पर खरे उतरने वाले हो रहे हैं। यह दूसरी बात है कि राजनीतिक दल देश के विकास के लिए जरूरी बातों पर बहस न कर केवल आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहते हैं। सत्ता पक्ष हो अथवा प्रतिपक्ष दोनों बेजा बातों पर समय बर्बाद करते रहते हैं। पोल खुलने की डर से असली मुद्दों पर कोई आगे नहीं आना चाहता। समाज में जाति-धर्म के नाम पर कटुता फैलाने की पुरजोर कोशिश की जाती है। अच्छी बात है आम नागरिक इन आरोप-प्रत्यारोपों को गंभीरता से नहीं लेता। यही कारण है कि चुनाव प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक दलों के आरोप जनमानस को प्रभावित करने में विफल रहे हैं। केवल और केवल निराशाजनक जो बात है वह शत प्रतिशत मतदाताओं द्वारा मताधिकार का प्रयोग नहीं करना है। यह अपने आप में गंभीर बात है। दुनिया के कुछ देशों में मतदान अनिवार्य है। हमारे यहां भी मतदान की अनिवार्यता को लेकर गाहे-बेगाहे आवाज उठती रहती है पर अभी इस दिशा में ठोस मानस नहीं बन पाया है।
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने एक टिप्पणी में कहा था कि जो व्यक्ति अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करता, उसे सरकार को कोसने या सरकार से किसी तरह की अपेक्षा रखने का हक भी नहीं है। दरअसल हमारी मानसिकता में ही दोहरापन है। हम अधिकारों की बात तो बढ़-चढ़ कर करते हैं पर जब दो कदम जाकर अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अवसर आता है तो पीछे हट जाते हैं। आखिर ऐसा कब तक चलेगा। देश के जिम्मेदार नागरिक होने का दायित्व निभाने के लिए स्वप्रेरित आगे आने की पहल कब होगी, यह अभी तक यक्ष प्रश्न ही बना हुआ है। चुनाव आयोग और मीडिया के सभी माध्यम यहां तक कि सोशल मीडिया तक अति सक्रियता से मतदान के लिए प्रेरित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा। सुरक्षा और शांतिपूर्ण चुनावों की चाक-चौबंद व्यवस्था के बावजूद हम मतदान केन्द्र तक जाने का कष्ट नहीं उठाते हैं तो इससे ज्यादा गैरजिम्मेदाराना काम क्या होगा।
17 वीं लोकसभा के आगामी तीन चरणों में शेष रही लोकसभा सीटों के मतदाताओं को मतदान प्रतिशत बढ़ाने की पहल करनी होगी। मताधिकार का उपयोग करना होगा और एक मिसाल रखनी होगी कि लोकतंत्र के इस यज्ञ में मतदान करके ही हम हमारी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। हमारा प्रयास होना चाहिए कि अब शेष तीन चरणों के प्रत्येक मतदाता को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मतदान केन्द्र तक जाने को प्रेरित करें और मताधिकार के माध्यम से लोकतंत्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाएं। आपका, हमारा एक वोट किसी भाग्य विधाता से कम नहीं है। ऐसे में हमारा दायित्व बढ़ जाता है। यदि हम मतदान करेंगे तो ही अच्छी सरकार चुन पाएंगे और अच्छी सरकार बनाएंगे तो देश का भला होगा। तो देर किस बात की, आइए हम और आप मतदान केन्द्र तक पहुंच कर अपने मताधिकार का प्रयोग कर लोकतंत्र को और अधिक मजबूत करने में भागीदारी निभाएं।


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