मतदाताओं की खामोशी के बीच अपने -अपने तुरुप के पत्ते की तलाश जारी
बक्सर ,06 मई (हि.स.)।लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण 19 मई के दिन निकट आते ही अपने -अपने तुरुप के पत्ते की तलाश में जुटे प्रत्याशियों के बीच बेचैनी का मुख्यकारण मतदाताओं की खामोशी है।जहां मतदाताओं को गोलबंद करने की फिराक में प्रत्याशियों द्वारा प्रायः सभी हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।इस लोकसभा चुनाव के दौरान विभिन्न दलों के कुल पन्द्रह प्रत्याशी चुनावी दंगल में हैं।मुख्य मुकाबला भाजपा ,महागठबंधन के बीच ही है ।यह दीगर बात है कि बसपा अपने उमीदवार सुनील कुमार सिंह को मैदान में उतार कर लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने जुटी है ।यूपी के सीमावर्ती बक्सर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत सदर विधान सभा की सीट पर बसपा एक बार अपने बलबूते कब्जा जमा चुकी है।पर यह बहुत पहले की बात है ।वर्तमान परिदृश्य में आमने -सामने की बात करें तो मुख्य मुकाबला भाजपा प्रत्याशी अश्विनी चौबे और राजद प्रत्याशी जगदानंद सिंह के ही बीच होनी है ।भाजपा का अभेद्य किला बन चुका बक्सर सीट पर कमोबेश वह अनवरत काबिज है ।वर्ष 96 से अब तक भाजपा ने सिर्फ 2009 के चुनाव में राजद प्रत्याशी जगदानंद सिंह से मामूली अंतर से शिकस्त खाई थी ।पर पुनः 2014 में मोदी लहर के बीच भाजपा इस सीट पर अश्विनी चौबे के रूप में काबिज होने में सफल रही।बीते समीकरणों से दीगर इस बार भाजपा प्रत्याशी अश्विनी चौबे के पक्ष में जो मूल बाते जाती दिख रही हैं वे ये हैं कि केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री के रूप में स्वास्थ्य ,शिक्षा समेत विकास के पैमाने पर आमजनों में संतुष्टि है ।थोड़ी बहुत नाराजगी की बात छोड़ दी जाए तो मौजूदा हालात में चुनाव सिर्फ और सिर्फ जातिगत समीकरणों को लेकर ही लड़ा जा रहा है।विशेष बात यह है कि चुनाव के शुरूआती क्षणों में अगड़ी जाति के मतदाता भाजपा प्रत्याशी चौबे से नाराज दिखे पर वह मान मनौअल के बीच क्षणिक साबित हुई ।राजपूत धड़े के दो स्तंभ डुमराँव महाराजा कमल सिंह (प्रथम लोकसभा के एक मात्र जीवित सदस्य )और बिहार व् केरल उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायधीश उदयप्रताप सिंह जिस मजबूती के साथ भाजपा खेमे का साथ दे रहे हैं ,वह राजद खेमे के प्रत्याशी जगदानन्द के लिए शुभ संकेत नही है।वे अबतक अपने स्वजातीय समीकरण को साधने में नाकाम दिख रहे हैं।वैसे पिछड़ी जातियों समेत पुनः मुस्लिम- यादव समीकरणों के सहारे राजद प्रत्याशी जगदानन्द इस लड़ाई को कांटे की लड़ाई में तब्दील कर रहे हैं। दूसरी सबसे अहम बात यह है कि दोनों ही प्रत्याशियों को भीतरघात का भय सता रहा है। डुमराँव से जदयू विधायक ददन सिंह यादव के क्रिया कलापों पर दोनों ही प्रत्याशियों की पैनी नजर है।अश्विनी चौबे के नामांकन के दिन इनका ना आना अब भी चर्चा का विषय बना है और लाजमी तौर पर शक के दायरे में है ।तो भाजपा खेमे का गणित स्थानीय सदर विधायक कांग्रेस के संजय तिवारी बिगाड़ सकते हैं ,क्योंकि स्वजातीय गोलबंदी को तितर -बितर कर सकते हैं।इसकी भरपाई 12 मई के दिन प्रधानमंत्री के बक्सर दौरे से की जा सकती है।