भाषा के प्रति भाव का जागरण करें साहित्यकार: स्वांत रंंजन
– ग्रामीण परिवेश में शुरू हुआ साहित्य परिषद का दो दिवसीय 16वां राष्ट्रीय अधिवेशन
हरदोई, 25 दिसंबर (हि.स.)। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के 16वें राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारंभ शनिवार को कन्नड़ के विख्यात उपन्यासकार एस.एल. भैरप्पा ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया। उद्घाटन अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंंजन, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर, साहित्य परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री ऋषि कुमार मिश्र, साहित्य परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ सुशील चन्द्र त्रिवेदी प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। दो दिवसीय अधिवेशन डॉ. राम मनोहर लोहिया महाविद्यालय अलीपुर हरदोई में. ग्रामीण परिवेश में चल रहा है।
अतिथियों ने इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद की वेबसाइट का लोकार्पण किया। अधिवेशन में देशभर के सभी भारतीय भाषाओं के साहित्यकार आए हुए हैं। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उपन्यासकार एस.एल. भैरप्पा ने कहा कि भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा रही है। हमारे पास पौराणिक साहित्य का विपुल भंडार है। रामायण आदि महाकव्य हैं। भैरप्पा ने कहा कि प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू कम्युनिज्म से प्रभावित थे। 15 में से 12 सदस्य सरदार पटेल के पक्ष में थे फिर भी महात्मा गांधी ने पंडित नेहरू को प्रधानमन्त्री का पद पुरस्कार स्वरूप दिया। भैरप्पा ने कहा कि योजनाबद्ध ढंग से सरकारी संस्थाओं पर कम्युनिस्टों ने कब्जा किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांत रंंजन ने कहा कि 1947 में भारत को राजनैतिक दृष्टि से तो स्वतंत्रता मिल गई, लेकिन स्वधर्म, स्वसंस्कृति, स्वभाषा, स्वदेशी और स्वराज्य जो अपेक्षित था वह पीछे छूट गया। उपनिवेशवादी व्यवस्थाएं भारत में वैसी ही चलती रहीं। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने योजनाबद्ध ढंग से भारत एक राष्ट्र नहीं है और आर्य बाहर से आए इत्यादि मनगढ़ंत बातें फैलाईं। आज यह सब बातें असत्य सिद्ध हो चुकी हैं। भारत प्राचीन राष्ट्र है। शहर में रहने वाले, गांव, वनवासी और गिरिवासी सभी मूल निवासी हैं।
स्वांत रंंजन ने कहा कि जैसे राष्ट्र और नेशन अलग है उसी तरह धर्म और रिलीजन अलग है। आज आवश्यकता है इन सब बातों को हम साहित्य के विविध माध्यमों से समाज के सामने रखें। उन्होंने कहा कि इतिहास को विकृत करने का काम किया गया। सालार मसूद गाजी को सेना सहित परास्त कर मौत के घाट उतारने वाले महाराजा सुहेलदेव और अंग्रेजों से संघर्ष करने वाले राजस्थान के गोविंद गुरु और उन्नाव के राणा बेनी माधव सिंह के संघर्ष को इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं दिया गया। स्वांत रंंजन ने साहित्यकारों का आह्वान किया कि वह भाषा के प्रति भाव का जागरण करें। इसके अलावा सभी भारतीय भाषाओं का उन्नयन कैसे हो इस पर काम करने की आवश्यकता।
कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय साहित्य परिषद अवध प्रांत के महामंत्री एवं राष्ट्रधर्म पत्रिका के प्रबंध संपादक डॉ पवन पुत्र बादल ने किया।
साहित्य परिषद का अधिवेशन स्थल पर्यावरण से अनुकूल बनाया गया है। स्वदेशी के भाव से सभी व्यवस्थाएं की गई हैं। देश के सभी प्रांतों से आए प्रतिनिधियों के रुकने के लिए पर्ण कुटी का निर्माण किया गया है। पर्ण कुटी में चारपाई, लालटेन रखी गई है। प्रतिनिधियों को भोजन केले के पत्ते पर और मिट्टी के बर्तन में कराया जा रहा है।